भारत देश में किसानों पर हो रहे अत्याचार कोई नई बात नहीं है। भारतीय किसान अंग्रेजो के समय से ही अन्याय और जुल्म के शिकार हो रहे हैं | मैं बात करता हूं उस समय की जब महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे | उस समय संपूर्ण भारत देश के किसान ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण कानून से ग्रस्त थे | कुछ ऐसा ही हाल बिहार के चंपारण जिले का भी था | उस क्षेत्र में ब्रिटिश शासन द्वारा किसानों पर एक 'तीन कथिया' नामक दमनकारी कानून लागू किया गया था | जिसके तहत किराएदार किसानों को अपनी भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करने के लिए मजबूर किया गया था जिसका बहुत ही कम मूल्य किसानों को दिया जाता था | इस कारण कई बार किसानों को खेती करने के लिए ऋण लेना भी पड़ जाता था | किसानों द्वारा उगाए हुए अन्न का एक बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में देना पड़ता था| किसानों के छोटे बच्चों से सरकार अपने खेतों में मुफ्त काम करवाती थी उस समय गांव की महिलाओं को ब्रिटिश रानियों की चाकरी करने को बाध्य किया जाता था |
इन सब कारणों से किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी |
महात्मा गांधी के किसानों की स्थिति के बारे में विचार:-
महात्मा गांधी अपने संपूर्ण जीवन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसानों के साथ जुड़े हुए थे | उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता कुछ गिने चुने शहरों की बजाए भारत के 7 लाख गांव में रहती है | भारत एक कृषि प्रधान देश है| अगर इस देश के अन्नदाता 'किसानों' के साथ अन्याय और अत्याचार होते हैं तो यह बड़ा ही दुखद विषय है तथा मैं इसका विरोध कर किसानों को न्याय दिलाऊँगा | गांधी जी का उपर्युक्त कथन हमें देखने को मिलता है बिहार के 'चंपारण आंदोलन' के रूप में|
महात्मा गांधी ने जितने भी आंदोलन किए उनके केंद्र में 'किसान' था|
वर्तमान किसानों की स्थिति का विश्लेषण :-
वर्तमान समय में और उस समय की किसानों की स्थिति जून में 19-20 का ही अंतर आया है |
आज भारत की 70% आबादी गांवो में रहती है जो प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है|
61% कृषि वर्षा पर निर्भर करती है | सरकार द्वारा नहरे एवं भंडारण सुविधाएं (झीलो, बांधो आदि) के निर्माण के तहत है लेकिन वर्तमान स्थिति सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं हैं |
महाराष्ट्र में भारत सरकार द्वारा निर्मित 40% बांध हैं परंतु वे उन स्थानों पर नहीं है जहां उनकी आवश्यकता है जिस कारण इसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है |
आज के समय भारतीय किसानो की स्थिति अत्यंत दयनीय हैं जिसके बहुत से प्रमुख कारण हैं-
खेती करने के लिए बैंकों द्वारा लिए गए ऋण को चुकाने में असमर्थता, सुखे एवं बाढ जैसे अनियमित मौसम की स्थिति के कारण फसलों को नुकसान, अप्रिय सरकारी नीतियां, जीएम फसलें, परिवार की मांग पूरी न कर पाना आदि ऐसे प्रमुख कारण है |
भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा किसानों के बिना कृषि संभव नहीं हैं| वर्तमान में हमारे अन्नदाताओं की ऐसी परिस्थितियां देखकर आंखों में पानी आ जाता है |
आज भारतीय किसान गरीबी, भुखमरी, ऋण आदि से इतना त्रस्त हो गए हैं कि वे आत्महत्या पर उतारू हो गए हैं| एनसीआरबी के एक शोध के अनुसार भारत में `46 किसान' प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं |
वर्ष 2004 में सबसे अधिक किसानों (18241) ने आत्महत्या की थी |
वहीं पिछले वर्ष की बात करें तो लगभग 16000 किसानों ने इन समस्याओं से तंग आकर आत्महत्या की थी|
पिछले कुछ दिनों से भारत के विभिन्न राज्यों में किसानों द्वारा कर्ज माफी के लिए जगह-जगह आंदोलन किए जा रहे हैं | राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में भी किसान अपने 11 सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं|
वर्तमान की किसानों संबंधी ये स्थितियां किस प्रकार सुधारी जाए यह एक विचारणीय मुद्दा है |
मेरे विचार - भारतीय किसानों की जो वाजिब मांगे हैं उन्हें सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाना चाहिए | किसानों की हालत सुधारने के लिए उन्हें खेती की आधुनिक विधियां सिखाई जानी चाहिए| उन्हें साक्षर बनाना चाहिए | उनके शिक्षित होने के नाते उन्हें बहुत मदद मिलती है वे प्रयोगशाला में अपने खेतों की मिट्टी का परीक्षण करवा लेंगे जिससे वे समझ जाएंगे कि उनके क्षेत्र में सर्वाधिक फसल किसकी होगी | कुछ राज्यों में फसल चक्र प्रणाली और अनुबंध फसल प्रणाली शुरू कर दी गई है | इस तरह के कदम किसानों को सही दिशा में ले जाते हैं और लंबे समय तक कृषि करने में मदद मिलती है| वर्तमान में कुछ दिनों से किसानों द्वारा जगह-जगह आंदोलन किए जा रहे हैं | वे अपनी मांगे मनवाने के लिए चक्काजाम, धरना, रैली निकाल रहे हैं |
उनका ये आंदोलन सही भी है, मैं उनका समर्थन करता हूं लेकिन आज मुद्दा धीरे-धीरे राजनीतिक बन रहा है जो गलत है | कुछ स्थानों पर चक्काजाम, धरने आदि के लिए लोगों को पैसे देकर लाया जा रहा है , कुछ ऐसे भी किसान हैं जो अपने कुछ ऐसे भी किसान हैं जो अपने आलीशान बंगलों से अपनी लग्जरी गाड़ियो में बैठकर आंदोलन, धरने के लिए आते हैं| क्या यही वे किसान हैं? या फिर वे लोग जो वास्तव में भुखमरी, बीमारी, गरीबी से जूझ रहे हैं वे किसान हैं | ये भी एक सोचने वाली बात है | मेरे विचार यह है कि सरकार को जो किसान वास्तव में कर्ज माफी या किसानों की अन्य जो मांगे हैं , के हकदार हैं , उनकी मांगे सरकार को पूरी कर देनी चाहिए |
आयुष
बी. ए. प्रथम वर्ष
परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस , जयपुर