tag:blogger.com,1999:blog-39162164965720015812024-02-20T17:07:11.922-08:00Polity ParivimarshPolity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-75850676895225892852019-10-01T10:12:00.001-07:002019-10-01T10:13:22.427-07:00आज का भारत देश<p dir="ltr"><br>
महगांई दिन रात बढ़ती हैं मेरे देश में<br>
संचालक सोये रहते हैं सफेद ड्रेस में<br>
हर इंसान जीना चाहता है,<br>
छल कपट और द्वेष में ।<br>
भ्रष्टाचारी मिलता हैं,<br>
हर रंग के भेष में।<br>
शैतान घूमते रहते साधुओं की ड्रेस में<br>
फिर भी कानून चुप है,<br>
लाचारी के इस देश में<br>
इंसानियत बस चंद सांसे<br>
गिन रही इस परिवेश में।<br>
मूल्य नीति, संस्कार<br>
पहले ही दम तोड़ चुके<br>
पश्चिम के आगोश में<br>
कितना मुश्किल है<br>
लेकिन सच है ये कहना<br>
आज भी चुप्पी साधे हुए है<br>
लोग मेरे देश में।<br>
अर्चना<br>
बी.ए.३</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-39049602589406206232018-09-04T05:36:00.001-07:002018-09-04T05:36:40.651-07:00सकारात्मक सोच - सफ़लता का मार्ग<p dir="ltr">'सकारात्मक सोच- सफलता का मार्ग'</p>
<p dir="ltr"> साथियों,<br>
सकारात्मक सोच सफलता की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। जब भी आपके सामने कोई लक्ष्य है और आप सफलता के ऊँचे शिखर को छूने का प्रयास कर रहे हो तो आपके पास सबसे जरूरी हो और महत्वपूर्ण शस्त्र होना चाहिए- `सकारात्मक सोच`| सकारात्मक सोच अर्थात अंधेरे में भी राह बनाने की कला, दुःख को भी सुख में बदल देने का गुर। </p>
<p dir="ltr"> सकारात्मक सोच के साथ ही आत्मविश्वास का होना सफलता को दोगुना कर देता है। सकारात्मक सोच वह ताकत है,जो असंभव को भी संभव में बदल देती है।<br>
शोधकर्ता बताते हैं कि हमारे दिमाग में हर दिन साठ हजार विचार आते हैं,पर साठ हजार विचारों में से अधिकांश विचार नकारात्मक प्रवृत्ति के होते हैं। इनमें सकारात्मक विचारों की संख्या कम होती है । जब हम सकारात्मक सोच रहे होते हैं तब हम सफलता की ओर बढ़ रहे होते हैं, जब हम नकारात्मक सोच रहे होते हैं तब हम नाकामी की ओर बढ़ रहे होते हैं।</p>
<p dir="ltr"> हमारा मानव-मस्तिष्क भूमि के टुकड़े के समान है। जिस प्रकार भूमि को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि इसमें क्या बोया जा रहा है उसी प्रकार मानव-मस्तिष्क को भी इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि उसमें किस प्रकार के विचार बोये जा रहे हैं? यदि हम सकारात्मक विचारों की खेती करते हैं तो सफलता की फसल काटते हैं और यदि हम नकारात्मक विचारों की खेती करते हैं तो हम नाकामी की फसल काटते हैं ।<br>
साथियों, जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ व संघर्ष क्यों ना आएं, सकारात्मक सोच बनाए रखें क्योंकि सकारात्मकता हमेशा ही सफलता की ओर अग्रसर करती है <br>
यदि आप नकारात्मक सोचते हैं,<br>
तो परिणाम नकारात्मक आएंगे ।<br>
यदि आप सकारात्मक सोचते हैं,<br>
तो परिणाम सकारात्मक ही होंगे।।</p>
<p dir="ltr">स्वामी विवेकानंद ठीक ही कहा है -</p>
<p dir="ltr"> अपने जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करो।<br>
अपने पूरे शरीर को एक लक्ष्य से भर दो,<br>
और हर दूसरे विचार को अपनी जिंदगी से निकाल दो , <br>
क्योंकि यहीं सफलता की कुँजी है।</p>
<p dir="ltr"> ~ नोट- मेरे द्वारा लिखित यह लेख 'सकारात्मक सोच-सफलता का मार्ग' परिष्कार कॉलेज द्वारा प्रकाशित अगस्त माह की परिष्कार स्पंदन में प्रकाशित हो चुका है ।</p>
<p dir="ltr"> ~ सुरेश कुमार पटेल 'जिज्ञासु'<br>
बी. ए. तृतीय वर्ष<br>
परिष्कार कॉलेज ऑफ़ ग्लोबल एक्सीलेंस, जयपुर</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-60820396228986459082018-08-21T02:28:00.001-07:002018-08-21T02:28:55.732-07:00आत्महत्या<p dir="ltr"><br>
आत्महत्या,<br>
एक ऎसा हथियार या यूँ कहो कि रामबाण औषधि किसी मुसीबत से बचने का, खुद को निकाल कर अपने परिवारजन को दुःख देने का या फिर वास्तविकता कहूँ तो हिम्मत हार जाना।<br></p>
<p dir="ltr">एक सभ्य परिवार में रहते हुए, एक प्रगतिशील राष्ट्र के कर्तव्यनिष्ठ नागरिक होकर जो कि इस राष्ट्र को प्रगतिशील बनाने मे अहम भागीदारी निभा रहा है, एक ऎसा राष्ट्र जो हज़ारों परेशानियों से जूझ रहा है। किंतु फिर भी एक घायल जवान की भांति सीमा पर इसी उम्मीद में खड़ा हुआ है कि कभी ना कभी तो उसकी प्रजा बदलेगी, परंतु इस घायल जवान रूपी राष्ट्र को मिलता क्या है? सिर्फ "निराशा".... वो भी आत्महत्या के रूप में, बलात्कार के रूप में, भ्रष्टाचार के रूप में,अमानवता के रूप में.... न जाने कितने ही अनेको रूप है इस निराशा के। परंतु सभी समस्या को एक किनारे कर मैं बात करू "आत्महत्या " की तो आंकड़े आपको अंदर तक झकझोर देने वाले हैं। जी वास्तव में यही हाल है भारतीय सभ्य समाज का, एक ऎसे समाज का जिसे युवाओं का समाज कहा जा सकता है। लेकिन क्या इस सभ्य समाज का युवा इतना कमजोर है? या फिर इस युवा में सिर्फ निराशा भरी हुई है?</p>
<p dir="ltr">क्योंकि प्रत्येक छोर पर निराशा का अनंत समुद्र दीख पड़ता है।<br>
और सवाल है क्यों.......? ये निराशा क्यों है, क्या समाज खुद अपने युवाओं में ये निराशावादी विचारधारा उत्पन्न कर रहा है? परंतु जहां तक मेरा मानना है तो ये युवा ही तो समाज है, तो क्यों युवा खुद से सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है?<br>
क्या अब कोई उपाय दिखाई देता है इसका.......?<br>
जी, जरूर! उपाय है, और वो मै हूँ, आप स्वयं है, आपका परिवार है और सबसे महत्वपूर्ण आपके और आपके परिवार के विचार है।<br>
नहीं, नहीं मै आपको जागरूक नहीं कर रहा हूँ, बिल्कुल भी नहीं।<br>
मैं तो सिर्फ एक बच्चा हूँ, जो खुद दुखी है इस "जागरूकता" से।<br>
क्या वो 35 साल की महिला जागरूक नहीं थी जो IRS जैसे पद पर अधीनस्थ थी?<br>
नहीं, नहीं मै समझदारी की भी बात नहीं कर रहा हूँ। अरे! मै तो सिर्फ एक बच्चा हूँ...... जो दुखी है ऎसी "समझदारी" से<br>
परंतु क्या वो IAS अधिकारी भी समझदार नहीं था, जिसने ये कदम उठाने के लिए मजबूर किया।<br>
विडम्बना देखिए जनाब इस समाज कि जब "जागरूकता" और "समझदारी" का मिलन होता है तो उत्पन्न होती है, "आत्महत्या"।</p>
<p dir="ltr">इतनी असभ्यता इस सभ्य कथित समाज में, जिसकी महानता के नारे लगाये जाते रहे है।<br>
परंतु विचार करने वाली बात यह है कि आज की युवा सभ्यता आने वाली युवा सभ्यता के लिए किस प्रकार का इतिहास छोड़ कर जाएगी ? क्या असर होगा आने वाले युवाओं पर जो अपने जीवन के प्रारंभिक सफर में इन घटनाओं से सामना करने पर मज़बूर है।<br>
इसलिए आवश्यक है कि जो जागरूकता और समझदारी आपके अंदर दबी पड़ी है उसे अमल में लाया जाये, साझा किया जाये, इसका सही उपयोग एवं सही तरीका समझाया जाये। ताकि जब इनका मिलन हो तो आत्महत्या नहीं बल्कि "आत्म सुरक्षा" उत्पन्न हो सके।<br>
क्योंकि इस "आत्म सुरक्षा" से ना सिर्फ आपका अपितु आपके परिवार का, आपके समाज का आने वाली युवा पीढ़ी का भी भला हो सकेगा और शायद उस घायल जवान के घावों पर भी मल्हम लग जाये जो खड़ा हुआ है सीमा पर अपनी प्रजा के बदलने के इंतज़ार में..... याद तो है ना आपको!<br></p>
<p dir="ltr">एक चिन्तनशील एवं विचारणीय भावना.....</p>
<p dir="ltr"> ~ तुषार स्वर्णकार<br>
~ बी.ए. प्रथम वर्ष<br>
परिष्कार कॉलेज ऑफ़ ग्लोबल एक्सीलेंस, जयपुर</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-52274468069487381782017-11-23T10:44:00.001-08:002017-11-23T10:44:43.143-08:00स्वच्छ भारत अभियान बापू के 'स्वच्छ भारत' के सपने को पंख दे रहा है<p dir="ltr">देश इस वर्ष महात्मा गांधी की जन्मशती मना रहा है। इस साल प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के फ्लैगशिप स्वच्छता अभियान-स्वच्छ भारत अभियान के तीन वर्ष पूरे हो रहे हैं। सरकार के लिए यह सर्वेक्षण का समय है। मोदी सरकार ने महात्मा गांधी की 150वीं जन्मशती के अवसर पर दो अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच से मुक्त भारत का महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। तीन वर्ष की लघु अवधि में इस दिशा में सफलता दिखने लगी है। सरकार को 2019 तक हर घर में शौचालय उपलब्ध कराने का लक्ष्य पूरा करना है। स्वच्छ भारत अभियान के तहत दो अक्टूबर 2014 तक 4.90 करोड़ शौचालय बन चुके थे। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार 24 सितंबर 2017 तक 2.44 लाख गांव और 203 जिले खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिए गए हैं। इस कार्यक्रम की विशेषता यह है कि बहुत से सार्वजनिक क्षेत्रों के साथ-साथ निजी संस्थानों ने भी सरकार की इस अहम योजना में मिलकर काम किया है और इसे सफल बनाया है। कई औद्योगिक घरानों ने कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के तहत कई गांवों को गोद लिया है और वहां शौचालय बनाने की जिम्मेदारी ली है। 2012 में केवल 38 प्रतिशत क्षेत्र स्वच्छता कवरेज से जुड़े थे। अब यह बढ़कर 68 प्रतिशत हो गया है। लेकिन अब भी बहुत कुछ करना बाकी है।</p>
<p dir="ltr">इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक पखवाड़े के लिए स्वच्छता ही सेवा “क्लीनलिनेस इज सर्विस” अभियान आरंभ किया है। इसका समापन गांधी जयंती पर अगले महीने होगा। इस अभियान के तहत देश भर में स्वच्छता मुहिम को प्रोत्साहित करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए हैं। इसका उद्देश्य तीन वर्ष पहले राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में आरंभ किए गए स्वच्छ भारत अभियान को बल देना है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय इस अभियान का प्रचार प्रसार कर रहा है। इसके साथ इस अभियान में अन्य मंत्रालय, सरकारी विभाग, गैर-सरकारी संगठन भी स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के कार्य में जुटे हैं।</p>
<p dir="ltr">दो अक्टूबर 2014 इतिहास की पुस्तकों में स्वच्छ भारत अभियान के रूप में दर्ज होगा। इस दिन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में स्वच्छता के लिए खुद झाडू लगाई थी। प्रधानमंत्री ने स्वच्छता का बिगुल बजाया और लोगों ने इस महत्ती कार्य में उनका साथ दिया, क्योंकि यही महात्मा गांधी के लिए सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलि है। महात्मा गांधी एक शती पूर्व ही भारत के लिए स्वच्छता को पहली प्राथमिकता देना चाहते थे। इस अभियान का उद्देश्य स्वच्छता के अन्य लक्ष्यों के साथ खुले में शौच की आदत को समाप्त करना है और अधिक शौचालयों का निर्माण एवं कूड़े-कचरे के प्रबंधन में सुधार लाना है।</p>
<p dir="ltr">स्वच्छता के महत्व पर बल देते हुए प्रधानमंत्री ने कई बार कहा है कि स्वच्छ भारत के विचार का राजनीति से कोई लेनादेना नहीं है। यह देश भक्ति से प्रेरित है। हमें स्मरण होना चाहिए कि गांधी जी ने कहा था कि स्वच्छता, स्वाधीनता से अधिक महत्वपूर्ण है।</p>
<p dir="ltr">राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी स्वच्छता खुद करने को कहा था। वे चाहते थे कि हम अपनी सफाई स्वयं करें और छूआछूत की इस घृणित परिपाटी को समाप्त कर दें। यह आंदोलन स्वाधीनता के बाद धीमा पड़ गया। हालांकि विभिन्न सरकारों ने इस दिशा में कई कार्यक्रम चलाए, लेकिन यह दुखद है कि स्वच्छता और अस्पर्शता दोनों विषय बापू के निधन के लगभग 70 साल बाद भी देश में विद्यमान हैं। अपर्याप्त स्वच्छता स्वास्थ्य संबंधी कई बीमारियों और असमय मृत्यु का कारण बनती है। एक स्वयंसेवी संगठन वॉटर ऐड ने 2014 की अपनी एक रिपोर्ट में इस गंभीर स्थिति के बारे में जिक्र किया था। इसने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि भारत में 1.2 बिलियन लोगों में से एक तिहाई से कम लोगों की पहुंच स्वच्छता तक है। पांच साल की उम्र तक के 1,86,000 से भी अधिक बच्चे हर साल असुरक्षित जल और दयनीय स्वच्छता सेवाओं के वजह से डायरिया रोगों के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। इससे भारत की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है। अनुमान लगाया गया है कि देश में हर साल स्वच्छता की दयनीय स्थिति के कारण बीमारियों और असमय मृत्यु से देश अपनी जीडीपी का 6.4 प्रतिशत खो देता है। अब स्थिति बदल रही है और विभिन्न सरकारी एजेंसियां स्वच्छता की चुनौती का सामना करने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य कर रही है।</p>
<p dir="ltr">विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा है कि पूर्व में स्वच्छता और निजी स्वच्छता की कमी के कारण भारत में अनुमानतः प्रति व्यक्ति साढ़े छह हजार रुपये बर्बाद होते हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छ भारत अभियान जन-स्वास्थ्य पर अपना विशिष्ट प्रभाव छोड़ेगा। इससे निर्धनों की आय की बचत होगी और अंततः राष्ट्र की आर्थिक स्थिति सुधरेगी। उन्होंने कहा कि स्वच्छता को राजनीतिक हथियार के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसे राष्ट्रभक्ति और जन-स्वास्थ्य की प्रतिबद्धता से जोड़ा जाना चाहिए।</p>
<p dir="ltr">संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने एक सर्वेक्षण किया है, जिसमें स्वच्छ भारत मिशन के लाभों के बारे में एक अनुमान लगाया गया है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वच्छता के सुधार के कार्य में निवेश किये गये एक रुपया से साढ़े चार रुपये की बचत होगी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि खुले में शौच से मुक्त समाज का निर्माण होता है तो चिकित्सा खर्च कम होगा, समय की बचत होगी और जलजनित रोगों से होने वाली मृत्यु दर को रोका जा सकेगा, जिससे प्रति वर्ष हर घर में लगभग 50,000 रुपये की बचत हो सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इससे निर्धनतम लोगों को सर्वाधिक फायदे होंगे।</p>
<p dir="ltr">लेकिन इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए स्थानीय निकायों और राज्य सरकारों को दोगुने प्रयत्न करने होंगे और जागरूकता के प्रसार तथा निजी स्वच्छता और शुद्धता के बारे में लोगों के पुरातन दृष्टिकोण को बदलना होगा। सरकार के अथक प्रयासों के बावजूद कई स्थानों पर बड़ी संख्या में आज भी लोगों का मिथक है कि घर में शौचालय का इस्तेमाल करना उस स्थान को अशुद्ध करना है। सरकार और औद्योगिक घराने शौचालय का निर्माण करवा सकते हैं, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि लोगों को खुले स्थानों में शौच के नुकसान के प्रति जागरूक करके शौचालयों की परिधि में लाया जाए। उन्हें स्वच्छता के स्वास्थ्य संबंधी और आर्थिक लाभों के बारे में जानकारी दी जाए और यह एहसास दिलाया जाए कि स्वच्छता उनके लिए कितनी आवश्यक है। इस कार्यक्रम की सफलता जनभागीदारी पर निर्भर है। इसलिए यह अत्यावश्यक है कि लोग स्वच्छ और स्वस्थ भारत के निर्माण के लिए जागृत हों।<br></p>
<p dir="ltr">                    सुरेश कुमार पटेल <br>
                           सचिव<br>
             राजनीति विज्ञान विषय परिषद<br>
परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस ,जयपुर</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-56172027026942396672017-11-15T05:48:00.001-08:002017-11-15T05:48:34.144-08:00भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उदय एवं उसके कारण<p dir="ltr"><b>राष्ट्रीय आंदोलन का उदय एवं उसके कारण</b></p>
<p dir="ltr">भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का उदय 19 वीं शताब्दी की एक प्रमुख घटना थी मैकडोनाल्ड के शब्दों में, ‘‘ भारतीय राष्ट्रवाद राजनीतिक मण्डलों का नहीं अपितु इससे बहुत कुछ अधिक रहा है। यह एक ऐतिहासिक परम्परा का पुनरूज्जीवन है, एक राष्ट्र की आत्मा की मुक्ति है।‘‘ भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के उदय के पीछे एक नहीं अपितु अनेक कारण रहे जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-</p>
<p dir="ltr"><b>1. 1857 का स्वतंत्रता संग्राम:- </b>1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है। उसे अधिकांश ब्रिटिश लेखकों ने सैनिक विद्रोह की संज्ञा दी है जो उचित नहीं है। यह सैनिक विद्रोह नहीं बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु भारतीयों का प्रथम जन-विद्रोह था। इस आंदोलन को दबाने के लिये अंग्रेजों ने अत्यधिक अमानवीयता से काम किया जिसका वर्णन करते हुये सर चाल्र्स डिस्के ने अपनी पुस्तक ग्रेटर इंडिया में लिखा है-<br>
‘‘ अंग्रेजों ने अपने कैदियों की हत्या बिना न्यायिक कार्यवाही के इस ढंग से कर दी जो सभी भारतीयों की दृष्टि में पाश्विकता की चरम सीमा थी..........दमन के दौरान गाँव जला दिये गये। निर्दोष ग्रामीणों का वह कत्ले आम किया गया कि उससे मुहम्मद तुगलक भी शरमा जायेगा ।“ यह सत्य है कि योग्य नेतृत्व का अभाव, संचार एवं सैन्य व्यवस्था की कमी, तालमेल का अभाव जैसी कमियों के कारण यह आंदोलन सफल भले ही न हो पाया हो पर आंदोलन को दबाने में अंग्रेजों ने जिस अमानवीयता का परिचय दिया उससे भारतीय जनता भयभीत होने के स्थान पर स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु और अधिक कटिबद्ध हो गयी।<br>
<b>2. पश्चात शिक्षा का प्रभाव:-</b> पश्चात शिक्षा से भी भारतीय राष्ट्रवाद को बल मिला क्योंकि शिक्षित होने के पश्चात भारतीयों को अन्य देशों के नागरिकों की तुलना में अपनी दीनता-हीनता का आभास हुआ और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इसका प्रमुख कारण है विदेशियों का उनके ऊपर शासन। यद्यपि लार्ड मैकाले ने भारत में अंग्रेजी शिक्षा को लागू करवाने हेतु इसलिये बल दिया ताकि उसे शासन व्यवस्था में कम वेतन पर क्लर्क प्राप्त हो सकें। अर्थात् ऐसे व्यक्ति जो खून और वर्ण से तो भारतीय हो किंतु रूचि, विचार,शब्द और बुद्धि से अंग्रेज हों। <br>
मैकाले इस बात से भी भली भाँति परिचित था कि अंग्रेजी शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात भारतीय ब्रिटिश लोकतांत्रिक शासन पद्धति की माँग करेंगे। इसीलिए उसने 1833 में कहा था-‘‘ अंग्रेजी इतिहास में वह गर्व का दिन होगा जब पश्चात ज्ञान में शिक्षित होकर भारतीय पश्चात संस्थानों की माँग करेंगे।’’ इस अंग्रेजी शिक्षा का भारतीयों पर मिला जुला प्रभाव हुआ। यह प्रभाव बुरा इस अर्थ में था कि अनेक भारतीय अपनी सभ्यता, संस्कृति, भाषा रीति-रिवाज और परम्पराओं को भूलकर अंग्रेजी सभ्यता और संस्कृति का गुणगान करने लगे इसके विपरीत भारतीयों को इस शिक्षा व्यवस्था से अनेक-नेक लाभ हुए। अंग्रेजी के प्रचार प्रसार से भारत के बाहर बसे लोगों के बीच भाषा की एकता स्थापित हो गयी इसके अतिरिक्त उन्हें मिल, मिल्टन तथा बर्क जैसे महान व्यक्तियों के विचारों का ज्ञान हुआ। उनमें स्वतंत्रता, लोकतंत्र और राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत हुई। इसे अपने लिए वे आवश्यक मानने लगे। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में पश्चिमी शिक्षा के प्रभाव की चर्चा करते हुए ए.आर.देसाई ने लिखा है ‘‘ शिक्षित भारतीयों ने अमरीका, इटली और आयरलैण्ड के स्वतंत्रता संग्रामों के संबंध में पढ़ा। उन्होंने ऐसे लेखकों की रचनाओं का अनुशीलन किया जिन्होंने व्यक्तिगत और राष्ट्रीय स्वाधीनता के सिद्धान्तों का प्रचार किया है। ये शिक्षित भारतीय भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के राजनीतिक और बौद्धिक नेता हो गये।</p>
<p dir="ltr">पश्चात शिक्षा का स्पष्ट प्रभाव 1885 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में दृष्टिगोचर हुआ जहाँ अंग्रेजी भाषा के द्वारा ही भारत के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने एक दूसरे के विचारों को समझा। राजा राममोहन राय, गोपालकृष्ण गोखले, दादा भाई नौरोजी, व्योमेश चन्द्र वनर्जी आदि इस अंगे्रजी शिक्षा की ही देन थे। इन्होंने देश को स्वतंत्र कराने में महती भूमिका अदा की । अंग्र्रेजी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात जब भारतीय ब्रिटेन एवं अन्य देशों के भ्रमण पर गये तो वहाँ की व्यवस्था देखकर अवाक रह गये। तत्पश्चात उन्होंने अपने लिए भी स्वशासन की माँग की। इस दृष्टि से डॉ. जकारिया का यह कथन सत्य है कि ‘‘अंग्रेजों ने 125 वर्ष पूर्व शिक्षा का जो कार्य आरम्भ किया उससे अधिक हितकर और कोई कार्य उन्होंने भारत वर्ष में नहीं किया।’’</p>
<p dir="ltr"><b>3. राजनीतिक एकता:- </b>भारत प्राचीन एवं मध्यकाल में सांस्कृतिक दृष्टि से एक था पर यह एकता सर्वथा अस्थिर थी अशोक, समुद्र गुप्त, अकबर एवं औरंगज़ेब ने भारत के एक बड़े भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया पर वे उसे स्थिर नहीं रख सके। प्रो. विपिन चन्द्र ने इसे स्वीकार करते हुये अपनी पुस्तक‘‘ भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’’ में लिखा है। ‘‘........दादा भाई नौरोजी, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी और तिलक से लेकर गाँधीजी और जवाहर लाल नेहरू तक राष्ट्रीय नेताओं ने स्वीकार किया कि भारत पूरी तरह से सुसंगठित राष्ट्र नहीं है। यह एक ऐसा राष्ट्र है जो बनने की प्रक्रिया में है।“ भारत में राजनीतिक एकता स्थापित करने में अंग्रेज बड़े सहायक सिद्ध हुए। अंग्रेजों ने भारत में शासन की एकता स्थापित करके उसे एक राजनीतिक इकाई का रूप दिया।</p>
<p dir="ltr">यातायात के साधनों के विकास के फलस्वरूप देश के विभिन्न कोनों के लोग सुविधा पूर्वक एक दूसरे के संपर्क में आए जिससे उनकी स्थानीय भक्ति का स्थान राष्ट्रीय भक्ति ने ले लिया। हालांकि अंग्रेजों ने भारत में यातायात का विकास अत्यधिक आर्थिक दोहन एवं सेना के सुदृढ़ीकरण के उद्देश्य से किया था पर जैसा कि जवाहर लाल नेहरू का कथन है ‘‘ब्रिटिश शासन द्वारा स्थापित भारत की राजनीतिक एकता सामान्य एकता की अधीनता थी लेकिन उसने सामान्य राष्ट्रीयता की एकता को जन्म दिया’’8 इस प्रकार एकता की भावना ने राष्ट्रीयता के विकास की भावना का मार्ग प्रशस्त किया।</p>
<p dir="ltr"><b>4. सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलन:-</b>राष्ट्रीय भावना की उत्पत्ति में 19 वीं शताब्दी के सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलनों का मुख्य स्थान है। राजा राममोहन राय एवं ब्रह्म समाज, स्वामी दयानंद सरस्वती एवं आर्य समाज, स्वामी विवेकानन्द एवं रामकृष्ण मिशन, श्रीमती एनी बेसेन्ट एवं थियोसोफिकल सोसाइटी ने अपने विचारों एवं आंदोलनों के माध्यम से भारतीय जनता को यह सन्देश दिया कि उनका धर्म एवं संस्कृति श्रेष्ठ है। इन विचारों ने भारतीयों को उनके धर्म एवं समाज में व्याप्त दोषों और कुरीतियों के प्रति आगाह किया। इसका परिणाम यह हुआ कि समाज में व्याप्त सती-प्रथा, विधवा-विवाह तथा बाल-विवाह जैसी कुरीतियों के विरूद्ध जनमत तैयार हुआ, जिससे इन पर रोक लग सकी। इन सुधार आंदोलनों के परिणाम स्वरूप सामाजिक कुरीतियों एवं अन्धविश्वासों का विनाश होने से भारतीयों में नव जागरण का सूत्र पात हुआ और नवोत्साह से वे देश की स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु प्रयास करने लगे।</p>
<p dir="ltr"><b>5. शिक्षित भारतीयों में असंतोष:- </b>पश्चात शिक्षा के फलस्वरूप भारतीयों में एक नवीन शिक्षित वर्ग का उदय हुआ जो शासन व्यवस्था में भागीदार बनने हेतु उद्यत था। परन्तु 1833 के अधिनियम एवं 1850 के ब्रिटिश सम्राज्ञी की इस स्पष्ट घोषणा के बावजूद कि भारतीयों को वर्ण, जाति, भाषा या धर्म आदि के आधार पर कोई पद प्रदान करने से वंचित नहीं किया जायेगा, शिक्षित भारतीयो को उच्च पदों से दूर रखने की हर संभव कोशिश की जाती रही। इससे शिक्षित भारतीय असंतुष्ट हो गये। <br>
      अंग्रेजों की इस कथनी और करनी का अंतर अनेक भारतीयों को प्रतिष्ठित ‘भारतीय नागरिक सेवा ञ परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात उन्हें सेवा का अवसर न देना या किसी छोटी सी गलती के फलस्वरूप उन्हें नौकरी के लिए अयोग्य घोषित कर देना ऐसी ही घटनाएँ थी। अरविन्द घोष को परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात घुड़सवारी में प्रवीण न होने का आरोप लगाकर नौकरी से वंचित कर दिया गया। जब 1877 में इसी प्रतियोगी परीक्षा हेतु परीक्षार्थियों की न्यूनतम आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 कर दी गई तो शिक्षित भारतीय नवयुवकों में अत्यधिक अंसतोष फैला क्योंकि योग्यता रखते हुये भी उन्हें उच्च पदों से वंचित रखने की यह एक चाल थी। ब्रिटिश शासन के इस अवांछनीय कदम से भारतीय नवयुवक राष्ट्रीय आन्दोलन हेतु कटिबद्ध हो गये। ब्रिटिश शासन के इस कदम का विरोध करने के लिये सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने भारत का दौरा किया और जनता को इन अन्यायों का विरोध करने के लिये प्रेरित किया। भारत की इन शिकायतों को ब्रिटिश सरकार के समक्ष रखने हेतु लाल मोहन घोष को इंग्लैण्ड भेजा गया। इस प्रकार इस आंदोलन ने राष्ट्रीय जाग्रति फैलाने में अपना योगदान दिया।</p>
<p dir="ltr"><b>6.  भारत का आर्थिक शोषण:- </b>अंग्रेज भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आये थे और यहाँ के शासकों की कमजोरी का फायदा उठाकर वे राजनीतिक क्षेत्र में भी सर्वेसर्वा बन गये। राजनैतिक क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित होने से उन्हें भारत का आर्थिक शोषण करने में भी सरलता हुई। अंग्रेजों के इस आर्थिक शोषण से भारत के उद्योगों एवं कृषि का नाश तो हुआ ही साथ ही व्यापार पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। बर<br>
     प्रतिबन्धों के बावजूद भारतीय अखबारों से देशभक्ति और स्वतंत्रता प्राप्ति की धारा फूटती थी। अखबारों पर अंग्रेजों का कितना दबाब था और इसके लिये ’स्वराज’ द्वारा अपने लिये प्रकाशित सम्पादक के विज्ञापन का उल्लेख भर करना पर्याप्त होगा । इस विज्ञापन के अनुसार, ‘‘चाहिए स्वराज के लिये एक सम्पादक, वेतन दो सूखी रोटियाँ, एक ग्लास ठंडा पानी और हर सम्पादकीय के लिये दस साल जेल ।“<br>
        ब्रिटिश बर्बरता का जबाव अपनी कलम के माध्यम से देने वालों में प्रमुख समाचार पत्र थे-हिन्दू पैट्रियाट, अमृत बाजार पत्रिका, इंडियन मिरर, बंगालीसोम, प्रकाश,संजीवनी एडवोकेट, आजाद, हिन्दुस्तानी, रास गोफ्तार, पयामे आजादी, नेटिव ओपेनियन, इंदु प्रकाश, मराठा, केसरी, हिन्दू,स्वदेश मिलन, आंध्रप्रकाशिका, केरल पत्रिका, ट्रिब्यून कोहेनूर आदि। इन अखबारों की भूमिका का उल्लेख करते हुए डा. धर्मवीर भारती कहते हैं-‘‘स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता की परम्परा और भी परवान चढ़ती गयी। वह चाहे क्रांतिकारियों का सशस्त्र आंदोलन हो या गाँधीजी का सत्याग्रह, ये अखबार उनके माध्यम थे। जन जागरण के अग्रदूत थे, रोज जमानत माँगी जाती थी रोज-रोज पुलिस छापे मारती थी। सम्पादक का एक पाँव जेल में रहता था।“<br>
         इन समाचार पत्रों के अतिरिक्त अनेक लेखकों ने अपनी लेखनी के माध्यम से भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना भरी। इनमें बंकिमचंन्द्र की ‘आनंदमठ‘ और उनका गीत ‘वन्दे मातरम्‘ विशेष उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त मधुसूदन दा ने बंगाली में, भारतेन्दु हरीशचंद्र, माखनलाल चतुर्वेदी एव मैथिलीषरण गुप्त ने हिन्दी में, चिपलूणकर ने मराठी में, भारती ने तमिल में तथा अन्य लेखकों ने राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत श्रेष्ठ साहित्य का सृजन करके राष्ट्रीय आंदोलन में जोश भरा। भारतेन्दु हरिष्चन्द्र ने अपने प्रसिद्ध नाटक ‘भारत-दुर्दशा‘ (1876) में भारत की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण किया है। ’कवि वचन सुधा’ में उन्होनें अनुरोध किया है कि भारतीयों! अब किसी हाल में भारत का धन विदेशों में मत जाने दो। इन सबके आधार पर प्रो0 विपिन चन्द्र के इस कथन को स्वीकार करने में तनिक भी संशय नहीं रह जाता कि ‘‘ प्रेस ही वह मुख्य माध्यम थी जिसके जरिए राष्ट्रवादी विचारधारा वाले भारतीयों ने देशभक्ति के सन्देश और आधुनिक आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विचारों को प्रसारित किया और अखिल भारतीय चेतना का सृजन किया।“</p>
<p dir="ltr"><b>7. विदेशों से सम्पर्क:-</b> अंग्रेजों द्वारा शिक्षा को प्रोत्साहन दिये जाने का एक सुखद परिणाम यह हुआ कि भारतीयों का विदेशों से संपर्क स्थापित हुआ। यह बात अलग है कि यह विदेश भ्रमण शिक्षा, नौकरी एवं भ्रमण जैसे कई उद्देश्यों के तहत होता था। परन्तु सभी भारतीयों ने वहाँ जाकर स्थानीय लोकतांत्रिक विचारों, सिद्धांतों एवं संस्थाओं का अध्ययन किया और उनके व्यावहारिक पक्षों से भी अवगत हुए। फलस्वरूप उन्हें स्वतंत्रता, समानता और प्रजातंत्र के विषय में जानकारी हुई। श्री गुरूमुख निहालसिंह लिखते हैं कि-‘‘ इग्लैण्ड में उन्हें स्वतंत्र राजनीतिक संस्थाओं की कार्य विधि का गहरा ज्ञान प्राप्त हो जाता था। वे स्वतंत्रता और स्वाधीनता का मूल्य समझ जाते थे तथा उनके मन में जगी हुई दासता की मनोवृत्ति घट जाती थी।“ इस प्रकार भारतीयों का विदेश भ्रमण उनकी स्वतंत्रता प्राप्ति में सहायक बना।</p>
<p dir="ltr"><b>8. विदेशी घटनाओं का सकारात्मक प्रभाव:</b>-इसी समय विदेशों में कई घटनाएँ घटी जिनसे भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इन घटनाओं में इंग्लैण्ड में सुधार कानूनों का पारित होना, अमेरिका में दास प्रथा समाप्त होना, फ्रांस में तृतीय गणतंत्र की स्थापना, इटली, जर्मनी, रूमानिया तथा सर्विया के राजनीतिक आंदोलन शामिल थे। इन आंदोलनों से भारतीयों को प्रेरणा मिली और उनके अंदर एक विश्वास जागा कि वे भी अंग्रेजों के खिलाफ एक सफल आंदोलन चलाकर उन्हें भारत से खदेड़ सकते हैं। आर. सी. मजूमदार के शब्दों में ‘‘ भारतीय सीमा से बाहर घटित इन घटनाओं ने स्वभावतः भारतीय राष्ट्रवाद की धारा को प्रभावित किया ।“ </p>
<p dir="ltr"><b>9. सामाजिक परिवर्तन:-</b> पश्चात संस्कृति एवं आधुनिक शिक्षा नीति से परिचित होने के पश्चात भारतीय समाज में भी काफी परिवर्तन हुए। पश्चात प्रभाव एवं ब्रिटिश शासन द्वारा लागू सुधारों के फलस्वरूप भारतीयों के दिमाग में पुरानी कुरीतियों एवं अन्ध विश्वासों का स्थान एक नये प्रकाश ने ले लिया और अब वे हर बात को विज्ञान की कसौटी पर परखने लगे। सती प्रथा की समाप्ति, स्त्रियों एवं समाज के अन्य वर्गों के प्रति नया दृष्टिकोण, बाल विवाह का विरोध जैसे सुघारात्मक कार्यों से भारतीय समाज के कदम भी आधुनिकीकरण की दिशा में बढ़ चले। इससे समाज में एक नयी चेतना उत्पन्न हुई जिसने राष्ट्रीय चेतना को मजबूत किया। इन सुधारों में सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों का भी प्रमुख हाथ रहा है। जिसे स्वीकार करते हुए डा0 अनिल सील कहते है,‘‘ धर्म निरपेक्ष राजनीतिक विचारधारा के पनपने के पहले ही इन सभाओं द्वारा शिक्षित भारतीयों को राष्ट्रीय आधार पर सोचने और संगठित होने की आदत पड़ी।“ </p>
<p dir="ltr"><b>10. जापान द्वारा रूस की पराजय:- </b>1940 के युद्ध में जब एशिया के एक छोटे से देश जापान ने यूरोप के एक बड़े देश रूस को पराजित किया तो भारतीयों के नैतिक साहस में भरपूर वृद्धि हुई। क्योंकि उस समय यूरोपीय राष्ट्र अजेय समझे जाते थे और इस सोच के चलते एशियाई देशों के नागरिक स्वयं को हीन समझते थे। इस युद्ध ने एक तरफ यूरोपीय जातियों के दम्भ को तोड़ा तो दूसरी ओर एशिया के लोगों को उनकी क्षमता का भान कराया। भारतीयों के लिए भी अपनी क्षमता और साहस में वृद्धि करने का यह अच्छा साधन सिद्ध हुआ।</p>
<p dir="ltr"><b>11.शासकों का जातीय अहंकार:-</b>अंग्रेज सदैव स्वयं को श्रेष्ठ एवं भारतीयों को निम्न जाति का समझकर व्यवहार करते थे जिससे भारत के लोगों में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ। 1957 के विद्रोह के बाद तो अंग्रेज भारतीयों को ‘आधे वन मानुष आधे जंगली कहने लगे इससे दोनों के मध्य कटुता बढ़ी। भारतीयों के प्रति अंग्रेजों द्वारा अपनायी गयी इन नीतियों का कारण बताते हुए मि. गैरेट लिखते हैं-‘‘ उन्होनें अपने लिये एक विचित्र व्यवहार नीति अपनायी, जिसके तीन महत्वपूर्ण सिद्धांत थे, प्रथम यह है कि एक यूरोपियन का जीवन अनेक भारतीयों के जीवन के बराबर है। द्वितीय प्राच्य देशवासियों पर केवल भय के आधार पर ही शासन किया जा सकता है। तृतीय वे यहाँ लोकहित के लिये नहीं ‘वरन् अपने निजी लाभ एवं ऐश्वर्य के लिये आये हैं। “ अंग्रेजों की इस निम्न कोटि की सोच का परिणाम यह हुआ कि भारतीयों के स्वाभिमान एवं आत्म सम्मान पर आये दिन आक्रमण होने लगे। भारतीयों को जान से मार देने पर भी किसी कठोर दण्ड की व्यवस्था नहीं थी, बल्कि वे सस्ते में ही छूट जाया करते थे। जातीय अहंकार का एक उदाहरण जी0ओ0 टेवेलियन के इस कथन में भी है, ‘‘कचहरी में उनके एक भी साक्ष्य का वजन असंख्य हिन्दुओं के साक्ष्य से अधिक होता है। यह ऐसी परिस्थिति है, जो एक बेईमान और लोभी अंग्रेज के हाथों में सत्ता का एक भयंकर उपकरण रख देती है। “अंग्रेजों के इस जातीय अहंकार के कारण भारतीयो के साथ उनके सम्बंघ बद से बदतर होते गये।</p>
<p dir="ltr"><b>12. लार्ड लिटन की दमनकारी नीति:-</b> लिटन सन् 1876-80 के दौरान भारत का वायसराय था। उसके शासनकाल में कई ऐसी घटनाएं हुई जिनसे भारतीय राष्ट्रवाद को बल प्राप्त हुआ। प्रो0 विपिन चन्द्र के शब्दों में, ’‘उन्नीसवीं शताब्दी के आठवें दशक तक यह स्पष्ट हो गया था कि भारतीय राजनीतिक रंगमंच पर एक प्रमुख शक्ति के रूप में आने के लिये भारतीय राष्ट्रवाद ने पर्याप्त ताकत का संवेग प्राप्त कर लिया है पर लार्ड लिटन के प्रतिक्रियावादी शासन ने उसे स्पष्ट स्वरूप प्रदान किया। “लिटन के शासनकाल में ब्रिटेन से आने वाले कपड़ों पर से आयात कर को हटा दिया गया इससे भारतीय कपड़ा उद्योग पर बुरा असर पड़ा। अफगानिस्तान के साथ एवं एवं लम्बे युद्ध ने भी ब्रिटिश शासन के प्रति भारतीयों की नाराजगी बढ़ायी क्योंकि इस युद्ध में भारतीय धन के अपव्यय से रुष्ट थे। इन सबसे बढ़कर सन् 1877 में दिल्ली के दरबार का आयोजन भारतीयों को अपने जले पर नमक छिड़कने के समान लगा। जिस समय यह आयोजन हुआ उसी समय दक्षिण भारत में भीषण अकाल पड़ा था। उस समय ब्रिटिश सरकार द्वारा राहत उपाय करने के स्थान पर ऐसे आयोजन करना जिनका उद्देश्य महारानी विक्टोरिया को ‘ भारत की सम्राज्ञी ‘ घोषित करना था, भारतीयों के गले नहीं उतरा। अंग्रेजों के इस कृत्य की आलोचना में भारतीयों का साथ समाचार पत्रों ने भी दिया। एक समाचार पत्र की टिप्पणी थी-‘‘ जब रोम जल रहा था तब नीरो बाँसुरी बजा रहा था ।‘‘ भारत के जन आंदोलन को समाप्त करने के उद्देश्य से ’वर्नाकुलर प्रेस एक्ट’ एवं शस्त्र कानून’ पारित किये गये पर इतिहास गवाह है कि इन कानूनों ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के बिखराव में नहीं बल्कि उसे संगठित करने में सहायता पहुँचायी। जातीय अहंकार की सोच से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने शस्त्र कानून’ पारित किया जिसके अनुसार बिना लाइसेंस के भारतीय शस्त्र नहीं रख सकते थे पर अंग्रेजों पर इस तरह का कोई बन्धन नहीं था। सुरेन्द्र नाथ बनर्जी के शब्दों में, ’’इस अधिनियम ने हमारे माथे पर जातीय हीनता की छाप लगा दी थी। “ इण्डियन सिविल सर्विस की परीक्षा के उम्मीदवारों की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष करने के कृत्य से अंग्रेजों ने शिक्षित भारतीयों के एक बड़े वर्ग को अपने विरोधियों की जमात में खड़ा कर दिया था। इस प्रकार लिटन के कार्यों ने ब्रिटिश शासन के पतन को अवश्यम्भावी बना दिया। सुरेन्द्र नाथ बनर्जी का यह कथन ठीक है कि, ‘‘लार्ड लिटन के प्रतिक्रियावादी प्रशासन ने जनता को उसकी उदासीनता के दृष्टिकोण से जगाया है और जनजीवन को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। राजनीतिक प्रगति के उद्भव में बहुधा खराब शासक आशीर्वाद होते हैं। वे समुदाय को जगाने में मदद करते हैं। जिसमें वर्षों का आंदोलन भी असफल हो जाता हैं। “</p>
<p dir="ltr"><b>13. इलबर्ट बिल पर विवाद:-</b> इलवर्ट बिल के विवाद से कम से कम भारतीयों को एक बात तो स्पष्ट हो गयी कि अब बिना संगठित आंदोलन के कुछ होने वाला नहीं है इलबर्ट बिल लार्ड रिवन के शासनकाल में तत्कालीन विधि सदस्य मि.इलबर्ट ने रखा था जिसमें भारतीय मजिस्ट्रेटों एवं जजों को अंग्रेजों के मुकदमे की सुनवाई और दण्ड देने के अधिकार का प्रस्ताव था पर अंग्रेजों का जातीय अहंकार यहाँ भी आड़े आया अंग्रेज इस बात की कल्पना करके सहर उठे कि काली चमड़ी वाले भारतीय अदालत में उन्हें खड़ा करके दण्डित करेंगे। इस स्थिति से बचने के लिये अंग्रेजों ने आंदोलन किया। फलस्वरूप बिल संशोधित हो गया अब यह प्रावधान किया गया कि भारतीय जज अंग्रेजों के मुकदमे की सुनवाई उसी जूरी की सहायता से कर सकते है जिसके कम से कम आधे सदस्य अंग्रेज हों। इस संबंध में हेनरी काटन ने कहा,‘‘ इस विधेयक और इसके विरोध में किये गये आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीयता पर जो प्रभाव डाला वह प्रभाव विधेयक के मूल रूप में पारित होने पर कभी नहीं हो सकता था।“</p>
<p dir="ltr">उपर्युक्त सभी कारण भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को पुष्पित और पल्लवित करने में सहायक रहे, इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता है। यह बात अवश्य है कि इनमें से कुछ ने सीधे सीधे राष्ट्रवादी भावना को उभारा तो कुछ ने ऐसी परिस्थितियाँ उपस्थित की जिनमें इन भावनाओं को विकसित होने का सुअवसर मिल सका। अंग्रेजों ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को जितना दबाने की कोशिस की वह उतना ही उग्र से उग्रतर होता गया। इस आंदोलन को अखिल भारतीय बनाने में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बहुत बड़ा योगदान था ।</p>
<p dir="ltr">सुरेश कुमार पटेल<br>
बी.ए. द्वितीय वर्ष<br>
परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस , जयपुर </p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-89427280754003732172017-10-29T02:04:00.001-07:002017-10-29T02:04:41.942-07:00भारतीय किसानों की स्थिति एवम् गाँधीजी के अनुसार इसका मूल्यांकन<p dir="ltr"><br>
भारत देश में किसानों पर हो रहे अत्याचार कोई नई बात नहीं है। भारतीय किसान अंग्रेजो के समय से ही अन्याय और जुल्म के शिकार हो रहे हैं | मैं बात करता हूं उस समय की जब महात्मा गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे | उस समय संपूर्ण भारत देश के किसान ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण कानून से ग्रस्त थे | कुछ ऐसा ही हाल बिहार के चंपारण जिले का भी था | उस क्षेत्र में ब्रिटिश शासन द्वारा किसानों पर एक 'तीन कथिया' नामक दमनकारी कानून लागू किया गया था | जिसके तहत किराएदार किसानों को अपनी भूमि के 3/20 भाग पर नील की खेती करने के लिए मजबूर किया गया था जिसका बहुत ही कम मूल्य किसानों को दिया जाता था | इस कारण कई बार किसानों को खेती करने के लिए ऋण लेना भी पड़ जाता था | किसानों द्वारा उगाए हुए अन्न का एक  बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में देना पड़ता था| किसानों के छोटे बच्चों से सरकार अपने खेतों में मुफ्त काम करवाती थी उस समय गांव की महिलाओं को ब्रिटिश रानियों की चाकरी करने को बाध्य किया जाता था | <br>
इन सब कारणों से किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई  थी | </p>
<p dir="ltr">महात्मा गांधी के किसानों की स्थिति के बारे में विचार:- </p>
<p dir="ltr">महात्मा गांधी अपने संपूर्ण जीवन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसानों के साथ जुड़े हुए थे | उन्होंने कहा था कि भारतीय जनता कुछ गिने चुने शहरों की बजाए भारत के 7 लाख  गांव में रहती है | भारत एक कृषि प्रधान देश है| अगर इस देश के अन्नदाता 'किसानों' के साथ अन्याय और अत्याचार होते हैं तो यह बड़ा ही  दुखद विषय है तथा मैं इसका विरोध कर किसानों को न्याय दिलाऊँगा | गांधी जी का उपर्युक्त कथन हमें देखने को मिलता है बिहार के 'चंपारण आंदोलन' के रूप में| <br>
महात्मा गांधी ने जितने भी आंदोलन किए उनके केंद्र में 'किसान' था| </p>
<p dir="ltr">वर्तमान किसानों की स्थिति का विश्लेषण :-<br>
वर्तमान समय में और उस समय की किसानों की स्थिति जून में 19-20 का ही अंतर आया है |<br>
आज भारत की 70% आबादी गांवो में रहती है जो प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है| <br>
61% कृषि वर्षा पर निर्भर करती है | सरकार द्वारा नहरे एवं भंडारण सुविधाएं (झीलो, बांधो आदि) के निर्माण के तहत है लेकिन वर्तमान स्थिति सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं हैं | <br>
महाराष्ट्र में भारत सरकार द्वारा निर्मित 40% बांध हैं परंतु वे उन स्थानों पर नहीं है जहां उनकी  आवश्यकता है जिस कारण इसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है |</p>
<p dir="ltr"> आज के समय भारतीय किसानो की स्थिति अत्यंत दयनीय हैं जिसके बहुत से प्रमुख कारण हैं- <br>
खेती करने के लिए बैंकों द्वारा लिए गए ऋण को चुकाने में असमर्थता, सुखे एवं बाढ जैसे अनियमित मौसम की स्थिति के कारण फसलों को नुकसान, अप्रिय सरकारी नीतियां,  जीएम फसलें, परिवार की मांग पूरी न कर पाना आदि ऐसे प्रमुख कारण है | </p>
<p dir="ltr">भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा किसानों के बिना कृषि संभव नहीं हैं| वर्तमान में हमारे अन्नदाताओं की ऐसी परिस्थितियां देखकर आंखों में पानी आ जाता है | <br>
आज भारतीय किसान गरीबी, भुखमरी, ऋण आदि से इतना त्रस्त हो गए हैं कि वे आत्महत्या पर उतारू हो गए हैं| एनसीआरबी के एक शोध के अनुसार भारत में `46 किसान' प्रतिदिन आत्महत्या कर रहे हैं | <br>
वर्ष 2004 में सबसे अधिक किसानों (18241) ने आत्महत्या की थी | <br>
वहीं पिछले वर्ष की बात करें तो लगभग 16000 किसानों ने इन समस्याओं से तंग आकर आत्महत्या की थी| <br>
पिछले कुछ दिनों से भारत के विभिन्न राज्यों में किसानों द्वारा कर्ज माफी के लिए जगह-जगह आंदोलन किए जा रहे हैं | राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में भी किसान अपने 11 सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं| <br>
वर्तमान की किसानों संबंधी ये स्थितियां  किस प्रकार सुधारी जाए यह एक विचारणीय मुद्दा है | <br></p>
<p dir="ltr">मेरे विचार - भारतीय किसानों की जो वाजिब मांगे हैं उन्हें सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाना चाहिए | किसानों की हालत सुधारने के लिए उन्हें खेती की  आधुनिक विधियां सिखाई जानी चाहिए|  उन्हें साक्षर बनाना चाहिए | उनके शिक्षित होने के नाते उन्हें बहुत मदद मिलती है वे प्रयोगशाला में अपने खेतों की मिट्टी का परीक्षण करवा लेंगे जिससे वे समझ जाएंगे कि उनके क्षेत्र में सर्वाधिक फसल किसकी होगी | कुछ राज्यों में फसल चक्र प्रणाली और अनुबंध फसल प्रणाली शुरू कर दी गई है | इस तरह के कदम किसानों को सही दिशा में ले जाते हैं और लंबे समय तक कृषि करने में मदद मिलती है| वर्तमान में कुछ दिनों से किसानों द्वारा जगह-जगह आंदोलन किए जा रहे हैं | वे अपनी मांगे मनवाने के लिए चक्काजाम, धरना, रैली निकाल रहे हैं | <br>
उनका ये आंदोलन सही  भी है,  मैं उनका समर्थन करता हूं लेकिन आज मुद्दा धीरे-धीरे राजनीतिक बन रहा है जो गलत है | कुछ स्थानों पर चक्काजाम, धरने आदि के लिए लोगों को पैसे देकर लाया जा रहा है , कुछ ऐसे भी किसान हैं जो अपने कुछ ऐसे भी किसान हैं जो अपने आलीशान बंगलों से अपनी लग्जरी गाड़ियो में बैठकर आंदोलन, धरने के लिए आते हैं| क्या यही वे किसान हैं? या फिर वे लोग जो वास्तव में भुखमरी, बीमारी, गरीबी से जूझ रहे हैं वे किसान हैं | ये भी एक सोचने वाली बात है | मेरे विचार यह है कि सरकार को जो किसान वास्तव में कर्ज माफी या किसानों की अन्य जो मांगे हैं , के हकदार हैं , उनकी मांगे सरकार को पूरी कर देनी चाहिए |</p>
<p dir="ltr"> आयुष<br>
बी. ए. प्रथम वर्ष<br>
परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस , जयपुर </p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-82500503636230876052017-10-12T22:29:00.001-07:002017-10-12T22:29:22.703-07:00लोकतंत्र और सतत् विकास<p dir="ltr">लोकतंत्र (डेमोक्रेसी) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक मूल शब्द डेमोस से हुई है जिसका अर्थ है 'जनसाधारण' और इस शब्द में 'क्रेसी' शब्द जोड़ा गया है जिसका अर्थ 'शासन' होता है| इस प्रकार डेमोस + क्रेस= डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ होता है 'जनता का शासन' |<br>
<br>
अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए कहा कि लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन है | लोकतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिससे लोक सहमती की आवश्यकता होती है| इसमें निर्णय जनता की सहमति से लोकहित में लिए जाते हैं, जिसमें जनता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन में भागीदारी करती है| जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी में शासन संबंधी सभी निर्णय स्वयं जनता द्वारा लिए जाते हैं, जबकि अप्रत्यक्ष भागीदारी में जनता के प्रतिनिधि शासन संबंधी निर्णय करते हैं | ये प्रतिनिधि समय-समय पर जनता के बीच जाकर अपना विश्वास हासिल करते हैं ताकि उनके प्रति विश्वास की निरंतरता का स्पष्टीकरण हो सके|<br>
<br>
लोकतंत्र में राजनीतिक व्यवस्था के बारे में सोचने पर लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएं ध्यान में आती है -<br>
१. जनता की इच्छा की सर्वोच्चता <br>
२.जनता द्वारा चुनी हुई सरकार <br>
३.निष्पक्ष आवधिक चुनाव <br>
४.वयस्क मताधिकार<br>
५. उत्तरदायी सरकार<br>
६. सीमित तथा संवैधानिक सरकार<br>
७. सरकार के हाथ में राजनीतिक शक्ति जनता की अमानत के रूप में<br>
८.सरकार के निर्णयो में सलाह, दबाव तथा जनमत के द्वारा जनता का हिस्सा<br>
९. जनता के अधिकारों एवं स्वतंत्रता की हिफाजत करना सरकार का कर्तव्य <br>
१०.निष्पक्ष न्यायालय<br>
११. कानून का शासन<br>
१२. विभिन्न राजनीतिक दलो तथा दबाव समूहो की उपस्थिति <br>
लोकतंत्र में विकास एक सतत् प्रक्रिया है , इसे रुकना नहीं चाहिए|</p>
<p dir="ltr">सतत् विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट) मूलतः दो शब्दों 'सस्टेनेबल' व 'डेवलपमेंट' से मिलकर बना है | हिंदी भाषा में इनका अर्थ क्रमश: स्थायी, सतत व विकास होता है | <br>
ब्रंटलेंड कमीशन के अनुसार सतत विकास वह अवधारणा है जिसमें भविष्य की पीढियो की जरूरतों में किसी तरह के समझौते किए बगैर वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करना है |<br>
संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों ने 25 सितंबर 2015 को आयोजित 'सस्टेनेबल डेवलपमेंट समिट' में सतत विकास के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए 'एजेंडा फॉर 2030' को स्वीकार किया | इसके तहत वर्ष 2030 तक गरीबी, असमानता व अन्याय के खिलाफ संघर्ष और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से निपटने के लिए17 सतत विकास लक्ष्य क्या है , जो इस प्रकार है-<br>
1.गरीबी से मुक्ति <br>
2.भुखमरी से मुक्ति <br>
3.बेहतर स्वास्थ्य <br>
4.गुणवत्तापूर्ण शिक्षा<br>
5.लैंगिंग समानता <br>
6. स्वच्छ जल व स्वच्छता <br>
7.सुलभ एव स्वच्छ ऊर्जा <br>
8. उचित रोजगार तथा आर्थिक विकास <br>
9. उद्योग ,नवोन्मेष और बुनियादी ढांचा <br>
10. समानता उन्मूलन <br>
11. स्थायी शहर और समुदाय <br>
12.स्थायी खपत और उत्पादन <br>
13. जलवायु <br>
14.जल में जीवन <br>
15.भूमि पर जीवन <br>
16.शांति अन्याय एवं मजबूत संस्थान <br>
17. लक्ष्यो के लिए भागीदारी l</p>
<p dir="ltr">वर्तमान में भारत के समक्ष सतत विकास से जुड़ी बहुत सी चुनौतियां है जैसे -<br>
> सतत विकास के लक्ष्यों के लिए धन उपलब्ध कराना- एक अध्ययन के अनुसार 2030 तक लक्ष्य को पूरा करने के लिए भारत को 14.4 अरब डॉलर खर्च करना होगा |<br>
> आर्थिक वृद्धि और संपत्ति का समुचित वितरण में संतुलन न होना - वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन में बताया गया था कि 2010 तक दुनिया के1.2अरब बेहद गरीब लोगों में से एक तिहाई संख्या भारत में बसती है| <br>
> निगरानी और जिम्मेवारी -उचित संख्यनात्मक तंत्र अभी तक नहीं बनाया जा सकता है | <br>
> प्रगति का मापन- उपलब्धियों का आंकलन और मापन करना भी जरूरी है|<br>
<br>
भारत सरकार द्वारा क्रियान्वित किए जा रहे अनेक कार्यक्रम सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप है जिसमें -मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण और शहरी दोनों, डिजिटल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल है l </p>
<p dir="ltr">आयुष <br>
बी.ए. प्रथम वर्ष <br>
परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस,जयपुर</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-82315574622237409042017-09-25T07:28:00.001-07:002017-09-25T07:28:52.449-07:00डिजिटल इंडिया<p dir="ltr">डिजिटल इंडिया भारत सरकार का यह प्रोजेक्ट है जिसके जरिए सभी ग्राम पंचायत को इंटरनेट ब्रॉडबैंड  के जरिए जोड़ा जाएगा| जिसके तहत ई प्रकाशन को बढ़ावा देने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था सुधारने का लक्ष्य है | इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत 335 गांव को हाई स्पीड इंटरनेट के जरिए जोड़ा जाएगा| डीआईपी का विमोचन 1 जुलाई 2015 को इंदिरा गांधी स्टेडियम में किया गया डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट के कार्यक्रम में कई कंपनियों के सीईओ ने भाग लिया| इसमें मुकेश अंबानी, साइरस मिस्त्री, अजीज प्रेमजी, सुनील मित्तल आदि सम्मिलित हुए|</p>
<p dir="ltr">डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट के लाभ :-<br>
सभी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट से जोड़ा जाएगा| शहरों में इंटरनेट को बहुत अच्छे से समझ चुके हैं लेकिन फिर भी ई-शॉपिंग, ई स्टडी, ई टिकट, ई बैंकिंग की तरफ  रुझान केवल महानगरों में हैं | छोटे शहर इस तरह की सुविधाओं के प्रति अभी जागरुक नहीं है जबकि यह सब डिजिटलाइजेशन के लिए बहुत जरूरी है| अगर गांव का सोचे तो वह अब तक कंप्यूटर और लैपटॉप खरीदने में असमर्थ है|सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम जनता को डिजिटल दुनिया के प्रति जागरूक करेगा|</p>
<p dir="ltr">* ई-हॉस्पिटल पोर्टल- इसके द्वारा जनता आसानी से डॉक्टर से कंसल्ट कर सकेगी| संकट के समय किसी भी रोग के रोगी के बारे में सभी जानकारी आसानी से पोर्टल के माध्यम से दी जाएगी|</p>
<p dir="ltr">*ई-बस्ता पोर्टल- इसमें छात्रों को पुस्तकें उपलब्ध कराई जाएगी| इसका इस्तेमाल कोई भी कहीं भी कर सकता है | गवर्नमेंट द्वारा संचालित पोर्टल लॉन्च किए जाएंगे जिसमें नौकरियों की सभी महत्वपूर्ण जानकारियां इंटरनेट पर उपलब्ध कराई जाएगी |</p>
<p dir="ltr">*डिजिटल लॉकर- व्यक्ति अपने जरूरी दस्तावेज इसमें सुरक्षित रख सकते हैं | डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट के कारण सभी कार्यों में पारदर्शिता बढ़ेगी| इसके कारण रिश्वत जैसे कार्य कम हो जाएंगे|</p>
<p dir="ltr">*डीआईपी के कारण  सभी कार्य  आसानी से  बिना तकलीफ  के  घर बैठे हो जाएंगे |</p>
<p dir="ltr">*डीआईपी के कारण  देश में  रोजगार बढ़ेगा  तो  देश विकसित बन सकेगा|  </p>
<p dir="ltr">*डीआईपी के कारण लोगों का विकास कई गुना तेजी से बढ़ेगा |</p>
<p dir="ltr">डिजिटलाइजेशन से लोगों के प्रति कार्ड पेमेंट नेटबैंकिंग के प्रति नकारात्मक सोच कम होगी जिससे उनका प्रयोग बढ़ेगा और कालाबाजारी भी कम होगी साथ ही अर्थव्यवस्था में तेजी से विकास होगा|गांव को इस डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट में अहम रखने से इसकी नींव मजबूत होगी| जो कि बहुत जरूरी है क्योंकि शहरी लोग आसानी से स्मार्ट दुनिया को अपनाते हैं लेकिन सुविधा की कमी के कारण गांव के लोग पीछे रह जाते हैं | इस तरह डिजिटल इंडिया इवेंट मै रोज एक नई योजना लाई जाएगी|  जो जनता को इसका महत्व बताएगी | डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट  एक अच्छी शुरुआत है  जिससे देश का विकास एक्सप्लेनेशन ग्राफ की तरह होगा| लेकिन इसके लिए हमें इस तरह की व्यवस्थाओं से जुड़ना होगा | उन्हें सीखना होगा | डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट के तहत कई एडवांस टेक्नोलॉजी तेजी से देश में लाई जाएगी| जिसके लिए रिलायंस विप्रो एवं टाटा जैसी कंपनिया इन्वेस्ट करेगी| इन सभी दिग्गजों का मानना है  इससे देश का बहुत अधिक विकास होगा | रोजगार में वृद्धि होगी | साथ ही  पढ़ाई के लिए भी दूर दूर तक  भटकना नहीं पड़ेगा | भारत का नवनिर्माण का सपना  सच होता दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि देश में बहुत ही कम लोग डिजिटल दुनिया से जुड़े हैं  और यह बहुत बड़ी कमी है जिसके कारण  देश के विकास की गति कम है|</p>
<p dir="ltr">भुवनेश कुमावत<br>
बी.ए. प्रथम वर्ष<br>
परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस, जयपुर </p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-53076043072643446892017-09-20T00:55:00.001-07:002017-09-20T00:58:54.926-07:00भारतीय राजनीति: कल और आज <p dir="ltr">भारतीय राजनीति की यात्रा काफी पुरानी हैं, जो अनेक उतार-चढ़ाव भरे रास्ते से गुजरते हुए वर्तमान तक पहुंची है। भारतीय राजनीति मनु, कौटिल्य, शुक्र से होते हुए वर्तमान तक पहुंची है, लेकिन मैंने इस लेख में आजादी के बाद की भारतीय राजनीति के परिदृश्य को लेखबद्ध करने का प्रयास किया है।<br>
1947 के बाद भारतीय राजनीति में प्रारंभ के दशक में भारतीय समाज मे व्याप्त आर्थिक-सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए प्रयास की राजनीति अहम थी। 1947 के बाद लगभग 17 वर्षों तक के कार्यकाल में <b>पं. जवाहरलाल नेहरू</b> ने भारत को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय हर स्तर पर ऊपर उठाने का प्रयास किया। साथ ही भारत को उस समय सशक्त और सुदृढ़ समाज की स्थापना करने की आवश्यकता थी, जिससे भारत आजादी से पूर्व लगभग 200 साल तक चले अंग्रेजों के शोषण से वापसी करने का प्रयास करें। 17 वर्षों के कार्यकाल में नेहरू द्वारा अनेक स्तर पर प्रयास किए गए। <br>
उस समय भारतीय राजनीति की एक खास विशेषता यह थी कि ना तो उस वक्त मजबूत विपक्ष था और जो था तो वह भी समाज कल्याण के लिए सरकार के साथ या सरकार के खिलाफ जाने से जरा भी नहीं हिचकिचाता था। उस वक्त विपक्ष जनता के लिए था, वर्तमान की तरह विपक्ष केवल 'विपक्ष' नहीं था।<br>
लगभग 17 साल के कार्यकाल में जहां नेहरू अपनी मृत्यु तक देश के प्रधानमंत्री बने रहे तो वह उनकी लोकप्रियता और साथ ही 1885 से कार्यरत कांग्रेस के के कार्यों का मधुर फल था। नेहरू ने इस दौरान जहां एक तरफ <b>गुटनिरपेक्षता</b> जैसी समयानुकूल सफल नीति का प्रतिपादन किया, पालन किया। वहीं दूसरी ओर उनके द्वारा चीन एवं पाकिस्तान के प्रति अपनाई गई विदेश नीति वर्तमान में कश्मीर एवं सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश आदि राज्यों से संबंधित सीमा विवादों की जड़ बनी, जो कि उनकी विदेश नीति की असफलता को दर्शाती है। विदेश नीति के संबंध में ऐसी ही लचरता भारत के दूसरे प्रधानमंत्री <b>लाल बहादुर शास्त्री</b> ने भी दिखाई।<br>
1966 से भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री <b>इंदिरा गांधी</b> का कार्यकाल प्रारंभ हुआ। उनके कार्यकाल में अनेक सशक्त एवं मजबूत फैसले लिए गए। परंतु इसी दौरान कांग्रेस में बिखराव शुरू हो गया और साथ ही साथ वक्त के साथ कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई और इससे भारतीय राजनीति में राजनीतिक दलों की संख्या में इजाफा हुआ। 1971 के युद्ध के बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने <b>शिमला समझौते </b>के समय गजब की दृढ़ता दिखाई। <b>1974</b> के <b>परमाणु परीक्षण</b> से भारत की शक्ति का पूरे विश्व को एहसास दिलाया। <b>1977</b> तक आते-आते भारत को <b>आपातकाल</b> से गुजरना पड़ा। इस आपातकाल का परिणाम यह हुआ कि 1980 तक 3 वर्ष में भारत को गठबंधन सरकार के बल पर 2 गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री(<b>मोरारजी देसाई </b>और <b>चौधरी चरणसिंह</b>) मिले। उस समय गठबंधन सरकारें भारतीय राजनीति के लिए एक प्रयोग के अतिरिक्त कुछ भी नही थी। इस अभिनव प्रयोग में सहज विश्वास की कमी थी। इसी का परिणाम यह हुआ कि दोनों सरकार ही अपना कार्यकाल पूरा नही कर सकी। परन्तु यह भारतीय राजनीति में इस बात का संकेत था कि अब कांग्रेस के विकल्प बनने की क्षमता अन्य दलों में भी हैं, हाँ इसमे थोड़ा वक्त लग सकता है लेकिन यह असंभव नहीं है।<br>
1980 में पुनः एक बार इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई। 1984 में उनकी हत्या के साथ ही भारतीय राजनीति के एक युग का अंत हुआ। 1984 में इंदिरा गांधी के पुत्र <b>राजीव गांधी</b> भारत के प्रधानमंत्री बने। 1984 के आम चुनावों में भारी बहुमत के साथ राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। लेकिन <b>बोफोर्स घोटाले</b> ने भारतीय राजनीति की जड़ों को हिला दिया, नतीजन 1989 के आम चुनावों के बाद कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा।<br>
1989 से 1991 तक भारतीय राजनीति पुनः अस्थिरता के दौर से गुजरी। इन 2 वर्षों में भारत को पुनः 2 गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री (<b>वी.पी. सिंह</b> और <b>चंद्रशेखर</b>) मिले। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद जनसहानुभूति के बल पर <b>पी.वी. नरसिंहराव</b> के नेतृत्व में कांग्रेस की सत्ता में फिर से वापसी हुई। इस दौरान आर्थिक खुलेपन को भारत मे जगह दी गई, इसके अलावा 'लाइसेंस राज' की समाप्ति हुई। इसके साथ ही उथल-पुथल के दौर में मई 1996 से मार्च 1998 तक इन 22 महीनों में<b> </b>3 गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों (क्रमशः अटल बिहारी वाजपेयी, एच.डी. देवगौड़ा और आई.के. गुजराल) की सरकार बनी, परंतु टिक नहीं सकी।<br>
इसके बाद एक बार पुनः अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में <b>राजग</b> (<b>राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन</b>) सरकार सत्ता में आई। इस दौरान <b>1998</b> में <b>पोकरण</b> में <b>5</b> <b>परमाणु परीक्षण</b> किए गए। जिससे पूरे विश्व भर का ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ। साथ ही विश्व की महाशक्तियों जिन में <b>अमेरिका</b> ने प्रमुख रुप से विरोध जताते हुए भारत पर कुछ प्रतिबंध लगाए। इसके अतिरिक्त भारत को कई देशों की आलोचना का शिकार होना पड़ा। 1999 में भारत को पाकिस्तान के साथ एक और युद्ध का सामना करना पड़ा। <b>1999</b> के <b>कारगिल</b><b> युद्ध</b> में भारत में एक बार फिर से पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। लेकिन इस युद्ध के परिणाम स्वरुप भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयीजी को उनकी पाकिस्तान को लेकर विदेश नीति पर आलोचनाओ से मुखातिब होना पड़ा। साथ ही उन्हें पूरे विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ा और 13 महीने की सरकार चलाने के बाद पुनः चुनावों से सामना हुआ। लेकिन इन चुनावों में फिर से राजग सरकार की सत्ता में वापसी हुई और इस बार स्थिरता के साथ सरकार ने 5 वर्ष पूरे किये। अटल बिहारी वाजपेयीजी ने भारतीय राजनीति इतिहास में लगभग निर्विवाद रुप से सरकार का संचालन किया और इस बात का प्रमाण यह है कि आज भी भारतीय राजनीति में उनका स्थान अग्रणी हैं।</p>
<p dir="ltr"><b>2004</b> में लोकसभा के चुनाव में <b>संप्रग</b> (<b>संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन</b>) सरकार का गठन हुआ। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने स्वयं प्रधानमंत्री बनने के बजाए <b>डॉ. मनमोहन सिंह </b>को देश का प्रधानमंत्री बनाया। वास्तव में यह एक आश्चर्यजनक फैसला था, परंतु इसके पीछे गहन राजनीतिक सोच थी। डॉ. मनमोहन सिंह वास्तव में एक विद्वान अर्थशास्त्री थे, जिन्हें एक तरीके से प्रधानमंत्री पद से नवाजा गया था।अपने लगातार 2 कार्यकाल में से प्रथम कार्यकाल में अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया। 2008  मुम्बई पर आतंकी हमला हुआ, जिससे भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहानुभूति प्राप्त हुई और पाकिस्तान की हर मंच पर किरकिरी हुई। पाकिस्तान को लेकर विदेश नीति उनके कार्यकाल में भी कुछ अस्पष्ट ही रही। परन्तु इसके अलावा उनका प्रथम कार्यकाल ठीक ठाक रहा।<br>
2009 में उनका दूसरा कार्यकाल शुरू हुआ। यह कार्यकाल उनकी छवि के लिए बेहद घातक सिद्ध हुआ। <b>रामदेव के द्वारा कालेधन वापसी के लिए किया गया आंदोलन और उस दौरान सरकार द्वारा दमन के लिए उठाये गए कदम, अन्ना हजारे द्वारा किया गया लोकपाल आंदोलन, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, 2G घोटाला और इसमें ए. राजा की गिरफ्तारी</b> आदि सब ने भारतीय राजनीति और जनता दोनो को सोचने पर विवश कर दिया। <br>
शायद भारतीय जनमानस को यह समझ आ गया था कि गठबंधन सरकारे देश के लिए घातक हो गई हैं और इसी के चलते भारतीय जनता ने राजनीति में एक भारी परिवर्तन करने की ठान ली। यह परिवर्तन अगले ही आम चुनावों में परिलक्षित हुआ।</p>
<p dir="ltr">2014 के चुनाव परिणामों ने भारतीय राजनीति में 1989 के बाद किसी एक राजनीतिक दल को एक बार पुनः स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ। शायद इसकी उम्मीद भारतीय जनता पार्टी को भी नही थी। खैर अकेले भाजपा ने 282 सीटों पर जीत दर्ज की और उसके सहयोगी दलों ने 54 सीटों पर जीत दर्ज की। इस प्रकार कुल 336 सीटों के साथ राजग सरकार बनी। इसका नेतृत्व किया <b>नरेन्द्र मोदी</b> ने। 26 मई, 2014 को शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों को आमंत्रित करने के साथ ही मोदी ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया। कूटनीतिक दृष्टिकोण से भी उनका शानदार कदम था। इसके बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के भूटान जाना इस बात का संकेत था कि भारत के लिए एक छोटे से देश का भी उतना ही महत्व है जितना कि एक महाशक्ति का।<br>
इसके बाद उन्होंने चीन, अमेरिका, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन आदि सभी देशों के साथ मधुर संबंध स्थापित करने के प्रयास किया। यहाँ तक कि पाकिस्तान की अचानक यात्रा, इज़रायल यात्रा आदि सब से अपनी गहन विदेश नीति का संकेत दिया। <br>
परंतु बारबार पाकिस्तान के आतंकी हमलों और चीनी घुसपैठ के बावजूद पाकिस्तान और चीनी के प्रति अपनाई जा रही नरमी ने विश्लेषकों को चिंता में डाल रखा है।<br>
घरेलू राजनीति में स्वच्छ भारत अभियान, कौशल विकास योजना, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप एंड स्टैंड अप योजना उनके सराहनीय प्रयास रहे है। परंतु नोटबन्दी की योजना की वास्तविक लाभ-हानि की गणित अब भी लोगों के लिए रहस्य बनी हुई हैं। क्योंकि वास्तव में यह जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लायी गयी उनको पूरा नही कर पाई, क्योंकि ना इस से सीमा पार से होने वाले घुसपैठ और आतंकी हमलों में कमी आयी, ना जाली नोटों की सप्लाई बंद हुई, ना भ्रष्टाचार में कमी आयी और ना ही गरीबों को कोई लाभ हुआ।<br>
हाँ, इस से जो परिणाम सामने आए वो एक दम उलट रहे, जो निम्नलिखित है-<br>
1. देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और विकास दर नीचे गई, जो 2017-18 कि प्रथम तिमाही में 5.7% रही।<br>
2. भारतीय रिज़र्व बैंक अब नोटबन्दी से प्राप्त नोटों की गिनती कर पाया।<br>
3. देश के सभी छोटे-बड़े उद्योगों पर असर पड़ा, खासकर छोटे उद्यमी इस से परेशान हुए।<br>
4. बैंक कर्मियों ने इसे अवसर के तौर पर देखा और नोटों को अवैध रूप से बदलकर भ्रष्टाचार को कम करने के बजाय इसको बढ़ा दिया।</p>
<p dir="ltr">कालेधन की वापसी की प्रक्रिया भी अब तक रेंग ही रही है। कहते है अगर आलोचनाओ पर गौर फरमाया जाए तो सुधार जल्दी आता है। मुझे हर सरकार की बस एक बात ही समझ नही आती की, वो हमेशा अपनी पूर्ववर्ती सरकार को क्यो कोसती रहती है। अगर हमारे देश की सरकार अपने से पूर्व की सरकार द्वारा की गई गलतियों का रोना रोने के बजाय सुधार करने पर ध्यान देती तो भारतीय राजनीति का आज स्थान ही कुछ अलग और ऊंचे स्तर पर होता। क्योंकि यह तो सहज कार्य है कि हम दूसरों के किये गए कार्य को गलत या सही ठहरा दे परन्तु महानता इसमे है कि गलत को सुधार उसे सही कैसे किया जाए। आज भारतीय राजनीति को इसी ध्येय पर कार्य करने की आवश्यकता है।</p>
<p dir="ltr">वर्तमान सरकार का ध्यान देश हित के बजाय धीरे धीरे चुनावों में विजय प्राप्ति तक सीमित होता जा रहा है। वर्तमान भारतीय राजनीति तुष्टिकरण की राजनीति बनती जा रही है। जिसके कई उदाहरण हमने हाल ही में हुए कुछ राज्यो के चुनावों में भी देखे है। अब आवश्यकता इस बात की है, कि तुष्टिकरण के बजाय देश हित मे काम किया जाए, पार्टी से ज्यादा देश को महत्व दिया जाए क्योकि जनमानस ने जनकल्याण के लिए एक दल को मौका दिया है, न कि दल की सर्वश्रेष्ठता का प्रदर्शन करने के लिए।</p>
<p dir="ltr">वही दूसरी तरफ देखा जाए तो वर्तमान भारतीय राजनीति को एक मजबूत विपक्ष की कमी भी खल रही हैं। लोकसभा में जहाँ विपक्ष के नाम पर कोई भी दल संवैधानिक दृष्टिकोण से योग्यता नही रखता है, परन्तु कांग्रेस और उसके सहयोगी दल विपक्ष में महज बैठने के अतिरिक्त कुछ नही कर पा रहे है, जिसकी कुछ वजह निम्नलिखित है-<br>
1. इच्छाशक्ति का अभाव,<br>
2. राजनीतिक विवशता (यथा- पूर्व में हुए घोटालों की विस्तृत जांच का भय)<br>
3. निहित राजनीतिक स्वार्थ, जो सम्भवतः सभी कारणों में प्रबल कारण प्रतीत होता है।<br>
4. दलीय हित को राष्ट्र हित से ज्यादा वरीयता देना।</p>
<p dir="ltr">उपरोक्त कुछ वजह है जिसके चलते आज <b>'विपक्ष केवल विपक्ष के लिए'</b> की ही भूमिका तक सीमित रह गया है। क्योंकि अगर ऐसा नही होता तो वो सरकार के हर प्रस्ताव का विरोध नही करता, सिवाय एक प्रस्ताव को छोड़कर (सांसदों के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी) जिसे हर बार बिना बहस और ध्वनिमत के साथ पारित किया जाता है। ऐसी ही कुछ बाते विपक्ष के दोहरे चरित्र को दर्शाती है। ऐसा केवल कांग्रेस के साथ ही नही है, बल्कि सत्तारूढ़ भाजपा ऐसा व्यवहार काफी समय तक दर्शा चुकी है। इसके कुछ उदाहरण भी है, जैसे-<br>
1. जिस GST बिल का विरोध भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए हमेशा किया, उसी बिल को एड़ी-चोटी का जोर लगा पारित करवा लिया।<br>
2. जिस आधार कार्ड योजना का हमेशा विरोध किया उसको सत्ता में आने के बाद हर योजना के लिए अनिवार्य कर दिया।<br>
3. उपरोक्त दोनों उदाहरण तो हो सकता है जनता की समझ से परे हो, परन्तु जिस पेट्रोल और सिलेंडर की मूल्य वृद्धि को लेकर भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए खूब सड़क प्रदर्शन किया था, आज वही भाजपा सत्ता में है तो इसी मूल्य वृद्धि पर मौन धारण किये हुए है।</p>
<p dir="ltr">राजनीतिक दलों का यह दोहरा चरित्र आज स्पष्टतः जगजाहिर है। इसलिए विपक्ष की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह राष्ट्रहित में कार्य करते हुए जनकल्याण के विधेयको में अपनी महत्ता सिद्ध करने के चक्कर के लिये अड़ंगा लगाने के बजाय सरकार का सहयोग करे और ईमानदारी पूर्वक सरकार के अनुचित कार्यों एवं नीतियों के प्रति जनता को सचेत करे।</p>
<p dir="ltr">अंत में इतना कहना चाहूंगा कि आज भारतीय राजनीति पतन की ओर बढ़ रही है और इस बात की महती आवश्यकता है कि इस देश का हर वर्ग चाहे वह युवा हो या वरिष्ठ, मध्यम हो या उच्च, सभी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे किसी दल या व्यक्ति के अंधभक्त न बनकर विवेक का उपयोग करते हुए देश की बागडोर जिम्मेदार और उत्तम चरित्र वाले व्यक्ति को सौंपे।<br>
<b>जय हिंद, जय भारत</b>।</p>
<p dir="ltr">सोनू सोनी </p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-55647750212955155872017-09-12T09:32:00.001-07:002017-09-12T09:32:51.132-07:00अनुच्छेद 370 क्या हैं ? <p dir="ltr">अनुच्छेद 370 क्या है ?     <br>
                                                <br>
जम्मू कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है जम्मू कश्मीर का राष्ट्रीय ध्वज अलग होता है ।<br>
जम्मू कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष एवं अन्य राज्यों के विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष होता है।<br>
जम्मू कश्मीर में राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं है।<br>
भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते हैं।<br>
भारत की संसद जम्मू कश्मीर के संबंध में अत्यंत सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।<br>
जम्मू कश्मीर की कोई भी महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाएगी इसके विपरीत यदि वह महिला पाकिस्तान के व्यक्ति से शादी कर ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल जाती है।<br>
जम्मू कश्मीर में RTI , RTE  और CAG लागू नहीं होता है।<br>
कश्मीर में महिलाओं पर शरिया कानून लागू होता है।<br>
कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं है।<br>
कश्मीर में चपरासी को 2500 रुपए ही मिलते हैं।<br>
कश्मीर में अल्पसंख्यकों को 16 प्रतिशत आरक्षण नहीं मिलता है।<br>
धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।<br>
धारा 370 की वजह से पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है, इसके लिए पाकिस्तानियों को केवल किसी कश्मीर की लड़की से शादी करनी पड़ती है।।    </p>
<p dir="ltr">     अनुच्छेद 370 पर मेरे अपने विचार :-<br>
अनुच्छेद 370 उस वक्त प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सबसे बड़ी भूल थी और उन्होंने किसी की नहीं सुनी धारा को लागू कर दिया  । धारा 370 एवं अनुच्छेद 35 से कश्मीर के लोगों को मेरे विचार से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है| जब इसके हटाने की बात आती है तो  वहां के नेता एवं अलगाववादी नेताओं के कान खड़े हो जाते हैं, क्योंकि सबसे ज्यादा लाभ इस तरह से नेताओं को ही होता है और उन्हें यह डर सताता है कि कहीं हमारी सुरक्षा सरकार द्वारा दिए गए लाभ हट नहीं जाए | भारत का कोई कानून कश्मीर में लागू नहीं हो सकता है इससे कश्मीर का विकास नहीं हो पाता है|  जवाहरलाल नेहरु ने कहा था कि यह धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा बल्कि उनका मत गलत साबित हो गया|  मैं एक भारत का आम नागरिक होने के कारण मैं इस बात का समर्थक हूं कि धारा 370 हटनी चाहिए| अन्यथा कश्मीर कभी भी विकास के पथ पर नहीं चल पाएगा और आने वाले दिनों में कहीं यह हमारे हाथों में से  चला न जाए| इसे एक विशेष दर्जा होने से देश में विभाजन की स्थिति फैल रही है|  इसी कारण कर्नाटक राज्य ने अपने अलग झंडे की मांग की ओर वह अच्छा हुआ कि खारिज हो गई|  कश्मीर में भारत के अन्य राज्यों के लोग वहां जाकर नहीं रह सकते हैं और नेहरु जी  अंतर्राष्ट्रीय नेता बनने के चक्कर में कश्मीर समस्या का अंत राष्ट्रीयकरण कर दिया|</p>
<p dir="ltr">जसवंतसिंह<br>
बी.ए. प्रथम वर्ष<br>
परिष्कार कॉलेज ऑफ ग्लोबल एक्सीलेंस<br>
जयपुर ( राज. )</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-65402547254014645952017-09-04T06:21:00.001-07:002017-09-04T06:23:38.874-07:00"नेहरू बहादुर" और चीन <p dir="ltr"><br>
1947-49 में जब आज़ाद हिंदुस्तान का संविधान बनाया जा रहा था, तभी चीन में 1949 की क्रांति हो गई और हुक़ूमत को माओत्से तुंग की "पीपुल्स रिवोल्यूशन" ने उखाड़ फेंका।</p>
<p dir="ltr">नेहरू हमेशा से चीन से बेहतर ताल्लुक़ चाहते थे और च्यांग काई शेक से उनकी अच्छी पटरी बैठती थी, लेकिन इस माओत्से तुंग का क्या करें! कौन है यह माओत्से तुंग और कैसा है इसका मिजाज़, यह जानना नेहरू के लिए ज़रूरी था। लिहाज़ा, उन्होंने अपने राजदूत को माओ से मिलने भेजा।</p>
<p dir="ltr">ये राजदूत वास्तव में एक इतिहासकार थे। प्रख्यात इतिहासविद् केएम पणिक्कर। वे इस भावना के साथ माओ से मिलने पहुंचे कि प्रधानमंत्री चीन के साथ अच्छे रिश्ते बरक़रार रखने के लिए बेताब हैं। लिहाज़ा, उन्होंने माओ से मिलने के बाद जो रिपोर्ट नेहरू को सौंपी, वो कुछ इस तरह से थी : </p>
<p dir="ltr">"मिस्टर चेयरमैन का चेहरा बहुत कृपालु है और उनकी आंखों से तो जैसे उदारता टपकती है। उनके हावभाव कोमलतापूर्ण हैं। उनका नज़रिया फ़िलॉस्फ़रों वाला है और उनकी छोटी-छोटी आंखें स्वप्न‍िल-सी जान पड़ती हैं। चीन का यह लीडर जाने कितने संघर्षों में तपकर यहां तक पहुंचा है, फिर भी उनके भीतर किसी तरह का रूखापन नहीं है। प्रधानमंत्री महोदय, मुझे तो उनको देखकर आपकी याद आई! वे भी आप ही की तरह गहरे अर्थों में "मानवतावादी" हैं!"</p>
<p dir="ltr">मनुष्यता के इतिहास के सबसे दुर्दान्त तानाशाहों में से एक माओत्से तुंग के बारे में यह निहायत ही हास्यास्पद और झूठी रिपोर्ट पणिक्कर महोदय द्वारा नेहरू बहादुर को सौंपी जा रही थी! </p>
<p dir="ltr">नेहरू बहादुर मुतमईन हो गए!</p>
<p dir="ltr">महज़ एक साल बाद चीन ने तिब्बत पर चढ़ाई कर दी और उस पर बलात कब्ज़ा कर लिया।</p>
<p dir="ltr">तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के ग़ुस्से का कोई ठिकाना नहीं था और उन्होंने प्रधानमंत्री को जाकर बताया कि चीन ने आपके राजदूत को बहुत अच्छी तरह से मूर्ख बनाया है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन अब पहले से ज़्यादा मज़बूत हो गया है और उससे सावधान रहने की ज़रूरत है। नेहरू ने पटेल को पत्र लिखा और कहा, "तिब्बत के साथ चीन ने जो किया, वह ग़लत था, लेकिन हमें डरने की ज़रूरत नहीं। आख़िर हिमालय पर्वत स्वयं हमारी रक्षा कर रहा है। चीन कहां हिमालय की वादियों में भटकने के लिए आएगा!"</p>
<p dir="ltr">यह अक्तूबर 1950 की बात है। दिसंबर आते-आते सरदार पटेल चल बसे। अब नेहरू को मनमानी करने से रोकने वाला कोई नहीं था।</p>
<p dir="ltr">भारत और चीन की मीलों लंबी सीमाएं अभी तक अनिर्धारित थीं और किसी भी समय टकराव का कारण बन सकती थीं, ख़ासतौर पर चीन के मिजाज़ को देखते हुए। 1952 की गर्मियों में भारत सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल बीजिंग पहुंचा। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कौन कर रहा था? प्रधानमंत्री नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित!</p>
<p dir="ltr">अब विजयलक्ष्मी पंडित ने नेहरू को चिट्ठी लिखकर माओ के गुण गाए। उन्होंने कहा, "मिस्टर चेयरमैन का हास्यबोध कमाल का है और उनकी लोकप्रियता देखकर तो मुझे महात्मा गांधी की याद आई!" उन्होंने चाऊ एन लाई की भी तारीफ़ों के पुल बांधे। </p>
<p dir="ltr">नेहरू बहादुर फिर मुतमईन हुए!</p>
<p dir="ltr">1954 में भारत ने अधिकृत रूप से मान लिया कि तिब्बत चीन का हिस्सा है और चीन के सा‍थ "पंचशील" समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए।</p>
<p dir="ltr">लेकिन नेहरू के आत्मघाती तरक़श में केएम पणिक्कर और विजयलक्ष्मी पंडित ही नहीं थे। नेहरू के तरक़श में वी कृष्णा मेनन भी थे। भारत के रक्षामंत्री, जिनका अंतरराष्ट्रीय समुदाय में ख़ूब मज़ाक़ उड़ाया जाता था और जो एक बार "टाइम" मैग्ज़ीन के कवर पर संपेरे के रूप में भी चित्र‍ित किए जा चुके थे। भारत में भी उन्हें कोई पसंद नहीं करता था। लेकिन, जैसा कि स्वीडन के तत्कालीन राजदूत अल्वा मिर्डल ने चुटकी लेते हुए कहा था, "वीके कृष्णा मेनन केवल इसीलिए प्रधानमंत्री नेहरू के चहेते थे, क्योंकि एक वे ही थे, जिनसे प्रधानमंत्री कार्ल मार्क्स और चार्ल्स डिकेंस के बारे में बतिया सकते थे!"</p>
<p dir="ltr">रामचंद्र गुहा ने आधुनिक भारत का जो इतिहास लिखा है, उसमें उन्होंने तफ़सील से बताया है कि तब "साउथ ब्लॉक" में एक सर गिरिजा शंकर वाजपेयी हुआ करते थे, जो प्रधानमंत्री को लगातार आगाह करते रहे कि चीन से चौकस रहने की ज़रूरत है, लेकिन प्रधानमंत्री को लगता था कि सब ठीक है। वो "हिंदी चीनी भाई भाई" के नारे बुलंद करने के दिन थे।</p>
<p dir="ltr">1956 में चीन ने "अक्साई चीन" में सड़कें बनवाना शुरू कर दीं, नेहरू के कान पर जूं नहीं रेंगी। भारत-चीन के बीच जो "मैकमोहन" रेखा थी, उसे अंग्रेज़ इसलिए खींच गए थे ताकि असम के बाग़ानों को चीन ना हड़प ले, लेकिन "अक्साई चीन" को लेकर वैसी कोई सतर्कता भारत ने नहीं दिखाई। 1958 में चीन ने अपना जो नक़्शा जारी किया, उसमें "अक्साई चीन" में जहां-जहां उसने सड़कें बनवाई थीं, उस हिस्से को अपना बता दिया। 1959 में भारत ने दलाई लामा को अपने यहां शरण दी तो माओत्से तुंग ग़ुस्से से तमतमा उठा और उसने भारत की हरकतों पर कड़ी निगरानी रखने का हुक्म दे दिया।</p>
<p dir="ltr">1960 में चीनी प्रीमियर चाऊ एन लाई हिंदुस्तान आए और नेहरू से ऐसे गर्मजोशी से मिले, जैसे कोई बात ही ना हो। आज इंटरनेट पर चाऊ की यात्रा के फ़ुटेज उपलब्ध हैं, जिनमें हम इस यात्रा के विरोध में प्रदर्शन करने वालों को हाथों में यह तख़्‍ति‍यां लिए देख सकते हैं कि "चीन से ख़बरदार!" ऐसा लग रहा था कि जो बात अवाम को मालूम थी, उससे मुल्क के वज़ीरे-आज़म ही बेख़बर थे!</p>
<p dir="ltr">1961 में भारत की फ़ौज ने कुछ इस अंदाज़ में "फ़ॉरवर्ड पॉलिसी" अपनाई, मानो रक्षामंत्री मेनन को हालात की संजीदगी का रत्तीभर भी अंदाज़ा ना हो। लगभग ख़ुशफ़हमी के आलम में "मैकमोहन रेखा" पार कर चीनी क्षेत्र में भारत ने 43 चौकियां तैनात कर दीं। चीन तो जैसे मौक़े की ही तलाश में था। उसने इसे उकसावे की नीति माना और हिंदुस्तान पर ज़ोरदार हमला बोला। नेहरू बहादुर हक्के बक्के रह गए। "हिंदी चीनी भाई भाई" के शगूफ़े की हवा निकल गई। पंचशील "पंक्चर" हो गया। भारत को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। चीन ने अक्साई चीन में अपना झंडा गाड़ दिया। </p>
<p dir="ltr">कहते हैं 1962 के इस सदमे से नेहरू आख़िर तक उबर नहीं पाए थे।</p>
<p dir="ltr">पणिक्कर, विजयलक्ष्मी पंडित और वी कृष्णा मेनन : नेहरू की चीन नीति के ये तीन पिटे हुए मोहरे थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री को चीन के बारे में भ्रामक सूचनाएं दीं, क्योंकि प्रधानमंत्री हक़ीक़त सुनने के लिए तैयार नहीं थे। और जो लोग उन्हें हक़ीक़त बताना चाहते थे, उनकी अनसुनी की जा रही थी।</p>
<p dir="ltr">नेहरू बहादुर की पोलिटिकल, कल्चरल और डिप्लोमैटिक लेगसी में जितने भी छेद हैं, यह उनकी एक तस्वीर है। ऐसे ही छेद कश्मीर, पाकिस्तान, सुरक्षा परिषद, कॉमन सिविल कोड, महालनोबिस मॉडल, फ़ेबियन समाजवाद, पंचशील, गुटनिरपेक्षता, रूस से दोस्ती और अमरीका से दूरी, आदि अनेक मामलों से संबंधित नेहरू नीतियों में आपको मिलेंगे। </p>
<p dir="ltr">मेरा स्पष्ट मत है कि नेहरू बहादुर को हिंदुस्तान की पहली हुक़ूमत में "एचआरडी मिनिस्टर" होना चाहिए था। उनका इतिहासबोध आला दर्जे का था, लेकिन वर्तमान पर नज़र उतनी ही कमज़ोर। हुक़ूमत चलाना उनके बूते का रोग नहीं था। और हिंदुस्तान की पहली हुक़ूमत में जो जनाब "एचआरडी मिनिस्टर" थे, उन्हें होना चाहिए था अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री, ताकि स्कूली किताबों में "अकबर क्यों महान था" और "हिंदू धर्म की पांच बुराइयां बताइए", ऐसी चीज़ें नहीं पढ़ाई जातीं। और देश का प्रधानमंत्री आप राजगोपालाचारी या वल्लभभाई पटेल में से किसी एक को चुन सकते थे। राजाजी इसलिए कि उनकी नज़र बहुत "मार्केट फ्रेंडली" थी और "लाइसेंस राज" की जो समाजवादी विरासत नेहरू बहादुर चालीस सालों के लिए अपने पीछे छोड़ गए, उससे वे बहुत शुरुआत में ही मुक्त‍ि दिला सकते थे। और सरदार पटेल इसलिए कि हर लिहाज़ से वे नेहरू की तुलना में बेहतर प्रशासक थे!</p>
<p dir="ltr">ये तमाम बातें मौजूदा हालात में फिर याद हो आईं। चीन के साथ फिर से सीमाओं पर तनाव है और किसी भी तरह की ख़ुशफ़हमी नुक़सानदेह है। चीन आपसे गर्मजोशी से हाथ मिलाने के फ़ौरन बाद आप पर हमला बोल सकता है, ये उसकी फ़ितरत रही है। इतिहास गवाह है और वो इतिहासबोध किस काम का, जिससे हम सबक़ नहीं ले।<br></p>
<p dir="ltr">डॉ. नीता शर्मा<br>
परिष्कार कॉलेज, जयपुर</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-58086243371809313132017-03-22T22:47:00.001-07:002017-03-22T22:47:48.573-07:00नीति आयोग<p dir="ltr">नीति आयोग National Institution For Transforming India, पंडित  जवाहर लाल नेहरू के युग में शुरू की गई योजना आयोग का प्रतिस्थापन है।  नेहरू काल में शुरू किये गए योजना आयोग (15 मार्च, 1950) ने भारत के पंचवर्षीय विकास की योजना को कई सालो  तक लागू किया। भारत में लगभग 30 साल के बाद पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा सरकार ने वर्षों पुरानी योजना आयोग का नाम बदलकर 01जनवरी, 2015 को  नीति आयोग रख दिया है।</p>
<p dir="ltr">नीति आयोग का <b>उद्देश्य </b>है <br>
ऐसे सुदृढ़ राज्यो का निर्माण करना जो आपस में एकजुट होकर एक सुदृढ़ भारत का निर्माण करे।  </p>
<p dir="ltr">राज्यो और केंद्र की ज्ञान प्रणालियां विकसित करना। </p>
<p dir="ltr">नीति आयोग ने "नीति व्याख्यान: ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया" का शुभारंभ करने की घोषणा की है।</p>
<p dir="ltr">इस आयोग की <b> कार्य प्रणाली </b>में भी एक  बड़े स्तर पर बदलाव किया गया है।  इस नयी संस्था को थिंक  टैंक के रूप में वर्णित किया गया है। इस आयोग का प्रारंभिक कार्य सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर सरकार को सलाह देने का है ताकि सरकार ऐसी योजना का निर्माण करे जो लोगो के हित में हो।</p>
<p dir="ltr">नीति आयोग किस प्रकार <b>योजना आयोग से भिन्न</b> है:-</p>
<p dir="ltr">नीति आयोग ने लोगो के विकास के लिए नीति बनाने के लिए सहकारी संघवाद को शामिल  किया है।<br>
इसके आधार पर केंद्र के साथ राज्य की योजनओ को बनाने में अपनी राय रख सकेंगे। इसका उद्देश्य जमीनी हक़ीक़त के आधार पर योजना बनाना होगा।</p>
<p dir="ltr"><b>संरचना </b></p>
<p dir="ltr"><b>पदेन अध्यक्ष</b>: प्रधानमंत्री <b> </b><br>
<b>गवर्निंग कौंसिल</b>: राज्यो के मुख्यमंत्री और संघ शासित क्षेत्रों के लेफ्टिनेंट गवर्नर। <br>
<b>क्षेत्रीय परिषद्</b>: जरुरत के आधार पर गठित, मुख्यमंत्री एवं क्षेत्र के लेफ्टिनेंट को शामिल किया गया। <br>
<b>सदस्य</b>: पूर्णकालिक आधार पर। <br>
<b>अंशकालिक सदस्य</b>: अधिकतम 2 रोटेशनल, प्रासंगिक संस्थानों से <br>
<b>पदेन सदस्य</b>: मंत्रियो की परिषद् से अधिकतम 4, प्रधानमंत्री द्वारा नामित <br>
<b>सी.ई.ओ.</b>: निश्चित अवधि के लिए प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त   <br>
<b>सचिवालय</b>: यदि आवश्यक हो <br></p>
<p dir="ltr">अंकिता पांडे <br>
B.A. IInd Year<br>
परिष्कार कॉलेज, जयपुर </p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-14903239228109543652017-02-18T01:12:00.001-08:002017-02-18T01:13:03.404-08:00ट्रिपल तलाक<p dir="ltr">भारत एक प्रगतिशील राष्ट्र है। भौगोलिक सीमा ही किसी राष्ट्र की  परिभाषा  तय नहीं करती।<br>
इसका आकलन मानव विकास सूचकांक सहित कई अन्य पैमानों पर किया जाता है। जिसमें समाज द्वारा महिलाओं के साथ होने वाला आचरण भी शामिल है।<br>
फिर वह ट्रिपल तलाक हो या अन्य समस्या-<br>
1. आज भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा मुस्लिम समुदाय है, इतनी बड़ी आबादी को निजी कानून की मनमानी पर छोड़ना उचित नहीं है। यह समाज और देश हित मे नहीं है एवं यह समाज व भारतीय संविधान के खिलाफ है।<br>
जिसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि नागरिकों को खासकर मुस्लिम महिलाओं को निजी रीति रिवाज सामाजिक प्रथाओं के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है।<br>
2. भारत में मुस्लिम महिलाओं की ट्रिपल तलाक से संबंधित समस्या एक गंभीर रूप लेती जा रही है।<br>
भारतीय मुस्लिम महिलाओं का मानना है कि मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने ट्रिपल तलाक देने की प्रक्रिया को वैध माना है। लेकिन यह पवित्र ग्रंथ कुरान के खिलाफ है।<br>
क्योंकि मुस्लिम बोर्ड के नियमों के अनुसार मुस्लिम व्यक्ति के द्वारा एक सांस मे तीन बार तलाक तलाक तलाक बोलने पर पति पत्नी का रिश्ता खत्म हो जाता है।<br>
क्या यह उचित है??<br>
जबकि इस्लाम धर्म में तलाक इतना आसान नहीं है, जितना भारतीय मुस्लिम लोगों ने बना रखा है।</p>
<p dir="ltr">यह तो मौलवी भी मानते हैं कि कुरान एक बार में तीन तलाक को गलत बताता है।<br>
पहली- दूसरी बार तलाक कहने के बाद 1 महीने 10 दिन और तीसरी बार तलाक कहने के बाद 3 महीने 10 दिन की मुद्दत के बाद ही तलाक पूरा माना जाना चाहिए।</p>
<p dir="ltr">3. लेकिन कुछ भारतीय मुस्लिम व लॉ बोर्ड का मानना है कि अगर व्यक्ति को इतना समय दिया गया तो वह दैत्य हो जाएगा।<br>
कुछ मौलवियों का यह भी मानना है कि इस्लाम धर्म में बहु विवाह और एक बार में तीन तलाक मुसलमानों का सांस्कृतिक और सामाजिक मामला है, इसलिए न्यायालय को इससे दूर रहना चाहिए।<br>
मौलवी और बदलाव विरोधी संस्था यह भूल गए कि ट्रिपल तलाक का यह मुद्दा मुस्लिम महिलाओं का है,उन्हें ही इसे भोगना पड़ता है।<br>
यह एकतरफा फैसला है, जो मुस्लिम महिलाओं को  अनुचित लगता है।<br>
इसलिए महिलाएं तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठा रही है, जनहित याचिका दायर कर रही है और सड़कों पर उतर रही है। जबकि भारत में मुस्लिम महिलाओं की मांग तलाक को खत्म करने की नहीं बल्कि ट्रिपल तलाक देने की प्रक्रिया को बदलने की है।<br>
मुस्लिम महिलाओं का मानना है कि समय के साथ बदलाव होना जरूरी है। फिर वह बदलाव धर्म में हो या सामाजिक प्रथा या रीति-रिवाजों में।</p>
<p dir="ltr"># अन्य देशो से तुलना....<br>
दुनिया की 22 इस्लामिक देश ट्रिपल तलाक को कब का रद्द कर चुके हैं। लेकिन भारत ऐसा एकमात्र जनतांत्रिक देश है, जहां ट्रिपल तलाक आज भी जारी है और मुस्लिम महिलाएं सुप्रीम कोर्ट से बराबरी का हक मांग रही हैं।<br>
जो मामला अभी गर्माया हुआ है, कुछ दिनों बाद उसमें उबाल भी आएगा, यह प्राकृतिक नियम है।</p>
<p dir="ltr">अभी हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि आधुनिक धर्मनिरपेक्ष देश में कानून का उद्देश्य सामाजिक बदलाव लाना है। फिर वह बदलाव किसी भी धर्म से संबंधित क्यों ना हो क्योंकि ऐसा ना किया गया ताे यह भारत की सफल देश बनने में बाधा हैं और यह व्यवहार या आचरण भारत को पीछे की तरफ धकेलता है।</p>
<p dir="ltr">न्यायालय ने  ट्रिपल तलाक की आलोचना करते हुए कहा "इस तरह से तुरंत तलाक देना सबसे ज्यादा अपमान जनक है,जो भारत को एक राष्ट्र बनाने में बाधक है।" अदालत ने कहा पूरा कुरान पत्नी को तब तक तलाक देने के बहाने से व्यक्ति को मना करता है जब तक विश्वसनीय रुप से पति की आज्ञा का पालन करती है।<br>
न्यायालय ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर ही  तीखी टिप्पणी की और कहा कोई भी पर्सनल लॉ बोर्ड संविधान से ऊपर नहीं है। कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को लेकर दो मुस्लिम महिलाओं की याचिका पर सुनवाई  में यह टिप्पणी की "न्यायलय का मानना है कि मजहब जो भी है, एक विश्वास है, यह तथ्य की संविधान धर्म से ऊपर है इसीलिए धर्म के नाम पर महिलाओं से भेदभाव नहीं होना चाहिए।"</p>
<p dir="ltr">जो सवाल न्यायालय को परेशान करता है वह यह कि.....<br>
- क्या मुस्लिम पत्नियों को हमेशा इस तरह की स्वेच्छाचारिता से पीड़ित रहना चाहिए??<br>
- क्या उनका निजी कानून इन दुर्भाग्यपूर्ण पत्नियों के प्रति  इतना कठोर होना चाहिए??<br>
- क्या इन यातनाओं को खत्म करने के लिए निजी कानून में उचित संशोधन नहीं होना चाहिए??<br>
न्यायिक आत्मा इन समस्याओं से परेशान हैं।</p>
<p dir="ltr">**सुझाव**<br>
इस्लाम धर्म में शादी एक अनुबंध है। मेरा मानना है कि मुस्लिम महिलाओं को उनके हक दिलाने के लिए मुस्लिम मैरिज एक्ट बनाया जाना चाहिए।<br>
इसमें निकाह से लेकर तलाक तक के प्रावधान हाे और उसका उल्लंघन करने वालों को सजा भी मिले।<br>
युवा मुस्लिम महिलाओं के सम्मान के लिए लगातार काम कर रहे हैं और इस्लाम के नाम पर गुमराह करने वाले लोगों को कहना चाहते हैं कि वे महिलाओं को उनके हक दिलाने के लिए आगे आएं एवं तलाक की वजह से टूटते परिवारों को बचाया जा सकता है।<br>
हमारे मुल्ला-मौलवी ऐसे मामलों में दंपत्तियों को समझाने का प्रयास भी करें।</p>
<p dir="ltr">राहुल शर्मा<br>
(MA final)</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-32261748709986295552017-02-18T01:10:00.001-08:002017-02-18T01:11:31.255-08:00दागियों पर लगाम<p dir="ltr">केंद्र सरकार आपराधिक छवि वाले नेताओं पर लगाम कसने जा रही है। विधि आयोग ने चुनाव आयोग तथा अन्य सम्बन्धित पक्षो से विचार विमर्श के बाद कुछ सिफारिशें प्रस्तुत की हैं। इनमें पांच साल या इससे अधिक की सजा वाले मामलों में चार्ज शीट दायर होने वाले नेताओं को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी।आयोग ने राजनीतिक दलों के नेताओं के खिलाफ चल रहे मामलों की सुनवाई के लिए फ़ास्ट ट्रैक अदालते गठित करने का सुझाव भी दिया है।<br>
इसके तहत ये अदालते  एक साल के भीतर मामलों पर फैसला सुना देंगी एवं विधि आयोग ने इसमें प्रावधान  यह भी रखा है कि, भले ही नेता ऊपरी अदालतों से बरी हो जाये, परंतु उनके चुनाव लड़ने पर रोक बरकरार रहेगी। ऐसे नेता भविष्य में न तो कोई राजनीतिक दल बना पाएंगे , और ना ही किसी राजनीतिक दल के पदाधिकारी बन पाएंगे।<br>
चुनाव सुधार को लेकर पिछले दो दशकों से कार्यवाही चल रही है, लेकिन कोई नतीजे सामने नहीं आये। विधि आयोग ने सिफारिशों के मसौदे को अंतिम रूप दे दिया है एवं सरकार भी इन सिफारिशों को लागू करने की अंतिम प्रक्रिया से गुजर रही है।<br>
देर से ही सही लेकिन अब भी ऐसी सिफारिशे लागू हो जाती है तो दूषित होती राजनीति में सुधार की उम्मीद जागती जरूर नजर आएगी।<br>
मेरी राय में यदि इन सिफारिशों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लागू किया जाये ।<br>
राजनीति के अपराधीकरण ने लोकतंत्र पर दाग लगाया है, उसे धोये बिना हम सबसे बड़े लोकतंत्र कहलाने के हकदार नहीं हो सकते।</p>
<p dir="ltr">द्योजीराम फौजदार<br>
M.A. Final, Political Science</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-24759629607561067152017-02-12T01:54:00.001-08:002017-02-12T01:55:24.450-08:00महिलाओं के कानूनी एवं सामाजिक अधिकार: वर्तमान परिदृश्य <p dir="ltr">भारतीय संविधान में महिला एवं पुरूष दोनों को समानता का अधिकार दिया गया है। शारीरिक और मानसिक तौर पर अगर कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार से भेदभाव करता है तो यह असंवैधानिक माना गया है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था- "जब तक महिलाओं की स्थिति नही सुधरती है, तब तक विश्व कल्याण की बात सोचना बेमानी होगी, क्योकि किसी पक्षी के लिए एक डैने से उड़ना सम्भव नही होता।"<br>
लेकिन भारत के पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं की स्थिति में बहुत ज्यादा बदलाव नही आये हैं। महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव की वजह से आधी आबादी को उन अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है, जिन्हें संविधान प्रदत्त प्रावधानों के अलावा समय समय पर बनाये गए कानूनों एवं उनमे किये गए संशोधनों के जरिये उपलब्ध कराये गए हैं।</p>
<p dir="ltr">भारतीय संविधान में महिलाओं के लिए अनुच्छेद:-<br>
1. अनुच्छेद 14 से 18 में देश के प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार।<br>
2. अनुच्छेद 15 (3) के अनुसार कोई बात राज्य की स्त्रियों एवं बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।<br>
3. अनुच्छेद 15 के अनुसार ही धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।<br>
4. अनुच्छेद 23 के अनुसार मानव का दुर्व्यापार, बेगार प्रथा इसी प्रकार का अन्य बलात श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है।<br>
5. अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के लड़के एवम लड़कियों को कारखाने या खान में या अन्य किसी परिसंकटमय नियोजन काम करवाना अपराध है।</p>
<p dir="ltr">भारतीय संविधान में महिलाओं के लिए बनाए गए प्रमुख कानून:-<br>
1. दहेज निवारक कानून:- यह कानून 1961 में पारित हुआ। इस कानून के अंतर्गत किसी भी महिला को दहेज लाने के लिए प्रताड़ित नहीं किया जा सकता तथा दहेज लेना एवं देना जुर्म है।<br>
2. घरेलू हिंसा रोकथाम कानून:- इस कानून के तहत कोई भी महिला जिस पर घरेलू हिंसा हुई है, वह पुलिस स्टेशन जाकर इसकी FIR दर्ज करा सकती है।<br>
3. प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का कानून:- अनुच्छेद 21 एवं 22 दैहिक स्वाधीनता का अधिकार प्रदान करते हैं एवं हर व्यक्ति को अपने शरीर एवं प्राण की सुरक्षा का हक है।<br>
4. स्वरोजगार का अधिकार:- संविधान के अनुच्छेद 16 में स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है हर व्यस्क लड़की एवं महिला को कामकाज के बदले वेतन प्राप्त करने का अधिकार पुरुषों के बराबर है।<br>
5. राजनीतिक अधिकार:- कोई भी महिला चुनाव प्रक्रिया में भाग ले सकती है तथा वोट देने के लिए पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त है।<br>
6. संपत्ति का अधिकार:- कोई भी बेटी अपने पिता की संपत्ति पर अपना अधिकार मांग सकती है तथा पिता भी अपनी इच्छा अनुसार अपनी संपत्ति अपनी पुत्री के नाम पर कर सकता है।<br>
7. कार्य स्थल पर सुरक्षा संबंधी कानून:- कार्यस्थल पर महिलाओं को सुरक्षित वातावरण प्रदान करने के लिए सरकार ने कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न रोकथाम निषेध और निवारण कानून बनाया है। इसके अंतर्गत एसिड हमला, यौन-उत्पीड़न, महिला के कपडे उतरवाना, छिपकर पीछा करना, नग्न घुमाना ऐसे विशिष्ट अपराधों के करने पर सजा हो सकती है।</p>
<p dir="ltr"><b>निष्कर्ष:- </b><br>
प्रत्येक देश की आधी आबादी महिलाओं पर आधारित होती है, लेकिन यह एक विडंबना ही है कि समाज में महिलाओं की स्थिति अत्यंत विरोधाभासी रही है। एक तरफ तो उसे शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है, वहीं दूसरी तरफ उसके खिलाफ अपराध और हिंसा की जाती है। इसलिए महिलाओं को जागरुक होकर उनके लिए बनाए गए कानूनों को जानकर उन्हें प्रयोग करना चाहिए तथा अपराधियों को सजा दिलवानी चाहिए।</p>
<p dir="ltr">हर्षित चंदेल<br>
B.A. Final<br>
परिष्कार कॉलेज</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-90803350936499889222017-02-03T20:37:00.001-08:002017-02-03T20:37:49.732-08:00क्यों है आर्थिक सर्वेक्षण की आवश्यकता<p dir="ltr">केंद्रीय बजट 2017-18, 1 फरवरी को पेश किया गया। बजट पेश करने से पहले हमेशा ही आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाता है। आर्थिक सर्वेक्षण, वित्त मंत्रालय द्वारा पेश की गई देश की आर्थिक स्थिति की जानकारी देता है। जहां बजट आगामी वर्ष का होता है। वही आर्थिक सर्वेक्षण बीते वर्ष का होता है। इस सर्वेक्षण के तहत देश की आर्थिक स्थिति का पूरा ब्यौरा पेश किया जाता है। इसमें बीते एक साल में देश के विकास, किस क्षेत्र में कितना निवेश, कितना विकास, योजनाओं का क्रियान्वन कैसा रहा जैसे कई अहम पहलूओ के बारे में जानकारी दी जाती है। वही सर्वे में अर्थव्यवस्था, पूर्वानुमान और नीतिगत स्तर पर की गई चुनौतियों पर विस्तृत जानकारी दी जाती है। साथ ही किस क्षेत्र की स्थिति कैसी है और सुधार के लिए क्या रूप रेखा या उपाय अपनाए जाए। आर्थिक सर्वेक्षण एक  तरह से भविष्य में बनाई जाने वाली नीतियों के एक दृष्टिकोण का काम करता है। यह एक तरह से देश की आर्थिक स्थिति का आईना होता है । ऐसे मे इसकी मदद से आगामी बजट में किन क्षेत्रों पर फोकस किया जाना है, इसकी एक झलक मिल जाती है। हालांकि यह सर्वेक्षण सिफारिशों के रुप में प्रस्तुत किया जाता है। जिसे मुख्य आर्थिक सलाहकार के साथ वित्त और आर्थिक मामलों की जानकारी रखने वाली टीम तैयार करती है। परंतु इस पर कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती है। इस वर्ष के लिए आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम है।</p>
<p dir="ltr">संगीता मेहरिया<br>
बी.ए. तृतीय वर्ष<br>
परिष्कार कॉलेज </p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-58121139214361522662017-02-01T21:06:00.001-08:002017-02-01T21:06:32.519-08:00M-Governance<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>Introduction:</b>- M-Governance is a sub-domain of E-governance. It ensures that electronics services are available to people via mobile technologies using clevises such as mobile phones. It refers to collection of services as the strategic use of government services
and applications which are only possible using cellular/mobile
telephones, laptop computers, personal digital assistants and wireless
internet infrastructure.<br />
<br />
<b>Benefits of M-Governance:- </b><br />
1. Cost reduction & Saving.<br />
2. Proficiency.<br />
3. Transformation of public sector.<br />
4. Better services to the citizens.<br />
5. Easy interaction.<br />
<br />
<b>Case of developing countries:-</b><br />
1. <b>Turkey</b>:- 23.3 million people out of 69.6 million people are mobile users.<br />
Increase in mobile phones users.<br />
Apps- MOBESE (Mobile electronics system integration)<br />
TBS (Traffic Information System)<br />
<br />
2. <b>Czech Republic:- </b>Mobile
phones have penetrated in 95% of 10 million population, one of the
highest in and probably in the world. Since the mobile technology is
very high, M-Government application are more effective and quick.<br />
Example:- One day critical information delivery for citizens.<br />
<br />
3. <b>Philippines:- </b>The
mobile phones penetration in Philippines is 23.8% which accounts to 20
million mobile phone users out of 84 million population.<br />
Example:- TXT CSC - SMS services launched by civil service commission to increase the efficiency and speed of service delivery.<br />
Reporting Criminal Offense.<br />
Polling coverage through SMS.<br />
<br />
<b>M-Governance in India:-</b>
Govt. of India aims to utilize the massive reach of mobile phones and
harness the potential of mobile applications to enable easy and round
the clock access to public services, especially in the rural areas and
to create unique infrastructure as well as application development
ecosystem for M-Governance in the country. <br />
The Govt. of India is
implementing the "Digital India" programme with a vision to transform
India into a digitally empowered society and a knowledge economy.<br />
<br />
Following are the main measures laid down by MEIT-<br />
* Websites of all government departments and agencies shall be made mobile-compliant, using the "One Web" approach.<br />
* Uniform/single pre-designated numbers shall be used for mobile-based services to ensure convenience.<br />
* All departments and agencies shall develop and deploy mobile application for providing all their public services.<br />
<br />
Today
the mobile phone is not used as a communication tool to instantly
communicate or send and get text and voice messages. It has emerged as
the strongest technology to bridge the digital divide between urban and
rural. Within two decades of its launch in India, mobile phones has
reached remote rural areas despite hurdles like lack of connectivity and
electricity and low level of literacy. On the other side it has created
lakhs of direct and indirect job opportunities for the youth.<br />
<br />
Sourabh Parihar<br />
B.A. IIIrd year<br />
Parishkar College</div>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-397216317225281312017-01-02T04:47:00.001-08:002017-01-29T23:30:00.587-08:00राज्यों में राज्यपाल की स्थिति एवं भूमिका<p dir="ltr">भारत का संविधान संघात्मक है। इसमें संघ तथा राज्यों के शासन के संबंध में प्रावधान किया गया है। संविधान के भाग 6 में राज्य शासन के लिए प्रावधान है। यह प्रावधान जम्मू कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों के लिए लागू होता है। जम्मू कश्मीर की विशेष स्थिति के कारण उसके लिए अलग संविधान है। संघ की तरह राज्य की भी शासन पद्धति संसदीय है। भारत में संघीय शासन की भांति राज्यों में भी कार्यपालिका के तीन रूप दिखाई देते हैं। <br>
★नाम मात्र की कार्यपालिका:- राज्यपाल के रूप में<br>
★ वास्तविक किन्तु राजनीतिक कार्यपालिका:- मुख्यमंत्री तथा मंत्रीपरिषद <br>
★वास्तविक किंतु प्रशासनिक कार्य पालिका:- कर्मचारी तंत्र</p>
<p dir="ltr"><b>राज्यपाल</b><br>
राज्य प्रशासन में सर्वोच्च पद राज्यपाल का होता है। भारत में राज्यपाल का चयन अमेरिका की भांति जनता द्वारा निर्वाचित पद्धति से नहीं होता है, बल्कि हमारे यहां राज्यपाल राष्ट्रपति द्वारा नामित व्यक्ति होता है। राजस्थान में उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को सन् 1952-55 तक राज्य का महाराज प्रमुख बनाया गया था। 1 नवंबर, 1956 से सभी राज्यों के गवर्नर राज्यपाल कहलाने लगे। दिल्ली, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह तथा पुदुच्चेरी में उप राज्यपाल का पद है। लक्षद्वीप, चंडीगढ़, दमन एवं दीव, दादरा एवं नगर हवेली में यह प्रशासक कहलाता है।</p>
<p dir="ltr"><i><b>राज्यपाल</b></i><i><b> </b></i><i><b>की</b></i><i><b> </b></i><i><b>नियुक्ति</b></i><br>
भारत में राज्यपाल का चयन कनाडा की भांति संघीय सरकार करती है। अनुच्छेद 155 के अनुसार राष्ट्रपति प्रत्यक्ष रुप से राज्यपाल की नियुक्ति करता है। नियुक्ति से संबंधित दो प्रथाएं प्रचलित हैं:-<br>
★किसी व्यक्ति को उस राज्य का राज्यपाल नहीं नियुक्त किया जाएगा, जिसका वह निवासी हो। <br>
★राज्यपाल की नियुक्ति से पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किया जाता है।</p>
<p dir="ltr"><i><b>कार्य</b></i><i><b> </b></i><i><b>अवधि</b></i><br>
राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधि होता है तथा राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद पर बना रहता है। वह कभी भी पद से हटाया जा सकता है। यद्यपि राज्यपाल की कार्य अवधि उसकेे पदग्रहण से 5 वर्ष तक होती है। इस 5 वर्ष की अवधि के समापन के बाद वह तब तक पद पर बना रहता है, जब तक उसके उत्तराधिकारी पदग्रहण नहीं करते।</p>
<p dir="ltr"><i><b>शक्तियां</b></i><i><b> </b></i><i><b>एवं</b></i><i><b> कार्य</b></i><br>
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। वह मंत्री परिषद की सलाह से कार्य करता है, परंतु उसकी संवैधानिक स्थिति मंत्रिपरिषद की तुलना में बहुत सुरक्षित है। वह राष्ट्रपति के समान असहाय नहीं है।<br>
★<i>विवेकाधीन</i><i> </i><i>शक्ति</i>:- परंपरा के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति को भेजी जाने वाली पाक्षिक रिपोर्ट के संबंध में निर्णय ले सकता है।  कुछ राज्यों के राज्यपालों को विशेष उत्तरदायित्व का निर्वाह करना होता है। विशेष उत्तरदायित्व का अर्थ है राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह तो ले परंतु इसे मानने हेतु बाध्य नहीं हो और नहीं उसे सलाह लेने की जरूरत पड़ती है।</p>
<p dir="ltr"><i><b>राज्यपाल</b></i><i><b> की वास्तविक </b></i><i><b>स्थिति</b></i><i><b> </b></i><i><b>एवं</b></i><i><b> </b></i><i><b>भूमिका</b></i><br>
भारत सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत राज्यपाल का पद वास्तविक शक्तियों से परिपूर्ण एक प्रभावी पद था। किन्तु नये संविधान में यह अंशतः प्रतीकात्मक पद बना दिया गया। इस संबंध में सरोजिनी नायडू ने राज्यपाल को "सोने के पिंजरे में कैद एक चिड़िया" के समान जबकि विजयलक्ष्मी पंडित ने इसे "वेतन का आकर्षण" बताया। राजस्थान की राज्यपाल मारग्रेट अल्वा का मत था कि राज्यपाल राज्य सरकारों के लिए "सिरदर्द" है, तो दूसरी ओर केंद्र सरकार भी इन्हें महत्व नहीं देती है।<br>
चूंकि राज्यपाल जनसाधारण द्वारा चुना हुआ व्यक्ति न होकर राष्ट्रपति द्वारा नामित व्यक्ति होता है, अतः वह अपना अधिकांश कार्य राज्य के मंत्रिमंडल के परामर्श के अनुरूप करता है। जहां तक स्वविवेकीय शक्तियों का प्रश्न है, उन का अवसर दैनंदिन नहीं होता है, बल्कि विशेष परिस्थिति, वह भी सीमित स्वतंत्रता के साथ होता है। अतः राज्यपाल की स्थिति संवैधानिक प्रमुख के रूप में सैद्धांतिक है। राज्यपाल की भूमिका 'केंद्र के <u>अभिकर्ता'</u> के रूप में है जो राजनीतिक मान्यताओं तथा स्वार्थों के आधार पर निर्णय करते हैं।</p>
<p dir="ltr"><i><b>राज्यपाल </b></i><i><b>के</b></i><i><b> </b></i><i><b>पद</b></i><i><b> से संबंधित समस्त </b></i><i><b>व्यवस्था</b></i><i><b> पर पुनर्विचार </b></i><i><b>की</b></i><i><b> </b></i><i><b>आवश्यकता</b></i><br>
भारतीय संविधान के द्वारा स्थापित राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत यदि किसी पद की गरिमा को सर्वाधिक आघात हुआ है, तो वह राज्यपाल का पद ही है। सर्वप्रथम:-<br>
◆ राज्यपाल पद पर सर्वमान्य योग्यता और प्रतिष्ठा के व्यक्तियों को नियुक्त किया जाना चाहिए। राजनीतिज्ञ को राज्यपाल पद पर नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। केवल ऐसे ही व्यक्ति को राज्यपाल के पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए, जिन्होंने राजनीति, प्रशासन, शिक्षा, समाज सेवा के क्षेत्रों में सम्मान प्राप्त किया हो और जो दलीय राजनीति से ऊपर उठकर परिस्थितियों का आकलन करने तथा स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं।<br>
◆ राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच संदेह, अविश्वास, मतभेद और तनाव की स्थिति उत्पन्न न हो; इसके लिए राज्यपाल की नियुक्ति के बारे में राज्य के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श की व्यवस्था को अनिवार्य कर देना चाहिये।<br>
◆ केंद्रीय सरकार द्वारा राज्यपाल के पद के संबंध में मर्यादित आचरण की स्थिति अपनाते हुए केंद्रीय सरकार द्वारा राज्यपाल की पदच्युति एवं मनमाने तौर पर राज्यपाल के एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरण के मार्ग संबंधित राजनीतिक विवादों से दूर रखने की चेष्टा की जानी चाहिए।</p>
<p dir="ltr">राजू धत्तरवाल <br>
बीए द्वितीय वर्ष <br>
परिष्कार कॉलेज</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-25807190493603790232017-01-02T04:10:00.001-08:002017-01-17T03:49:44.617-08:00रेल बजट का अंत<p dir="ltr">सरकार ने नौ दशक से भी ज्यादा पुरानी परंपरा को खत्म करके रेल बजट को आम बजट के साथ पेश करने का फैसला लिया है।<br>
★ 1924 के बाद यह पहला मौका होगा जब रेलवे के लिए अलग से बजट पेश नहीं किया जाएगा।<br>
★ 1859 से पहले देश में बजट नामक कोई व्यवस्था नहीं थी।<br>
★ जेम्स विल्सन ने 7 अप्रैल 1860 को पहली बार बजट पेश किया। इसमें रेलवे का लेखा जोखा भी शामिल था।<br>
★ यह प्रक्रिया अगले 63 वर्ष तक इसी प्रकार चली।<br>
★ फिर ईस्ट इंडिया रेलवे कमेटी के चेयरमैन "सर विलियम एकवर्थ" की सिफारिश पर 1924 में पहली बार रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया गया।<br>
★ उनका यह मानना था कि अकेला रेल विभाग भारत की सबसे बड़ी आर्थिक गतिविधियों का संचालन करता है। वर्ष 1924 में पूरे देश के बजट में रेल बजट की हिस्सेदारी 70 फीसदी थी, इसलिए अधिक हिस्सेदारी को देखकर रेल बजट को अलग करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।</p>
<p dir="ltr"><b>रेल</b><b> बजट </b><b>के</b><b> </b><b>अंत</b><b> </b><b>का</b><b> </b><b>आधार</b><b>:-</b><br>
रेलवे बजट एक बड़ी आर्थिक गतिविधियों का संचालन करता है। लेकिन आज रक्षा और परिवहन जैसे कई क्षेत्रों का आकार रेलवे से कहीं बड़ा है, जबकि इनका बजट आम बजट में शामिल किया जाता है।<br>
रेल बजट को आम बजट में मिलाए जाने के पीछे एक बड़ी सोच<i> </i>"<i>मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस"</i> का सिद्धांत भी है। यानी सरकार का आकार छोटे से छोटा हो, जबकि व्यवस्था ज्यादा बड़ी और सुचारु रुप से चल सके।</p>
<p dir="ltr"><b><i>#</i></b> रेलवे बजट को खत्म करने की बात नीति आयोग के सदस्य<b><i> </i></b><b><i>"</i></b><b><i>विवेक</i></b><b><i> देवराय"</i></b> और आयोग के विशेष अधिकारी <b><i>"</i></b><b><i>किशोर</i></b><b><i> </i></b><b><i>देसाई</i></b><b><i>"</i></b> की एक रिपोर्ट Dispensing with the rail budget से शुरू हुई। रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से रेलवे बजट के अंत की बात कही। इस बारे में कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी। जिस की सिफारिशों के आधार पर कैबिनेट ने रेल बजट को आम बजट में मिलाए जाने के प्रस्ताव पर 21 सितम्बर को मुहर लगा दी।</p>
<p dir="ltr"><b><i>#</i></b> रेल बजट को खत्म करने की एक बड़ी वजह इस प्रक्रिया का 'राजनीतिकरण' भी है। रेल बजट लगातार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरता रहा। फिर धीरे धीरे राजनीतिक मंच बनता गया। जिसका इस्तेमाल सरकार की लोक लुभावन और आम आदमी के अनुकूलन वाली व्यवस्था की छवि तैयार करने के लिए होने लगा। नतीजा यह हुआ कि सालों-साल रेल बजट में रेलवे की वित्तीय स्थिति के बजाय इस बात पर जोर दिया गया कि - कितनी नई गाड़ियां, कितनी जगह पर नई पटरिया, मौजूदा गाड़ियों को कितनी जगह बढाया, कितनी नई परियोजना लाई गई आदि। इन सबसे रेलवे का भला होने के बजाए रेलवे को सामाजिक देनदारियों की वजह से करीब 33000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।</p>
<p dir="ltr">केंद्र सरकार हर साल रेलवे को पूंजीगत खर्चों को पूरा करने के लिए बजटीय सहायता मुहैया कराती है। वहीं दूसरी ओर लाभांश के तौर पर एक निश्चित रकम रेलवे से ले ली जाती है। रेल बजट को खत्म करने की रिपोर्ट का कहना है कि दरअसल रेलवे की ओर से केंद्र सरकार को दिया जाने वाला लाभांश मिथ्या है। यह रकम ऐसे कर्जे के लिए दी जाती है, जिसमें मूल्य रकम कभी खत्म नहीं होती। इसलिए रिपोर्ट में लाभांश को खत्म करने की बात कही गई, जिसे कैबिनेट ने मान लिया।</p>
<p dir="ltr">हालाँकि संविधान में कहीं भी अलग से रेलवे बजट पेश करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए रेल बजट को खत्म करने के लिए संविधान में संशोधन या नियम कानून बदलने की जरूरत नहीं है। <br>
यही कुछ वजह रही है कि कार्यकारिणी के एक फैसले से नौ दशक से भी ज्यादा समय से चली आ रही परंपरा खत्म करने का रास्ता खुला।</p>
<p dir="ltr">शीनू<br>
बीए द्वितीय वर्ष <br>
परिष्कार कॉलेज</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-85833662068670571552017-01-02T00:03:00.001-08:002017-01-07T05:42:59.417-08:00दुनिया संकुचन की ओर<p dir="ltr">8 नवंबर को जैसे ही अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव की अंतिम घोषणा हुई वैसे ही समूची दुनिया स्तब्ध रह गई क्योंकि अमेरिका में ट्रंप की विजय पताका लहरा रही थी। ट्रंप-हिलेरी के चुनाव प्रचार के दौर में हिलेरी का पलड़ा भारी दिख रहा था, परंतु चुनाव के नतीजे कुछ और ही सामने आए। अमेरिका की समस्त मीडिया, बुद्धिजीवी एवं सामाजिक कार्यकर्ता ट्रंप के विरोध में थे, फिर भी ऐसा क्या हुआ कि अमेरिकी जनता ने ट्रंप को चुना?<br>
ट्रंप के नकारात्मक चुनाव अभियान, जिसमें नस्लवादी, स्त्री विरोधी, अल्पसंख्यक विरोधी एवं लोकतंत्र विरोधी बातें सामने आती रही, फिर भी अमेरिकी जनता ने ट्रंप को चुना। इसका क्या कारण रहा? यदि इसे हम भारत के परिप्रेक्ष्य में देखे तो विदेश नीति के जानकार <b><i>पुष्पेश</i></b><b><i> </i></b><b><i>पंत</i></b> के इन शब्दों से हमें इसे समझने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि "यदि भारत की नजरों से अमेरिका को देखा जाए तो अमेरिका में सिलिकॉन वैली, आरामदायक जीवन और भौतिकवादी आकर्षण ही दिखाई देता है। मगर ट्रंप उस अदृश्य अमेरिका का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे संकुचित मानसिकता वाले नस्लवादी एवं महिला विरोधी जैसी अनेक उपमाओं की बू आती है।"<br>
यदि इतिहास का विद्यार्थी अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव नतीजों से पहले कयास लगाने की कोशिश करता कि राष्ट्रपति कौन होगा, तो शायद वह कह सकता था कि ट्रंप चुनाव जीतेंगे! क्योंकि इतिहास की उस पुरानी कहावत पर नजर डाले कि "इतिहास दोहराता है" तो ऐसा पहले से ही लग रहा था। अब प्रश्न उठेगा कैसे? तो वह ऐसे द्वितीय विश्व युद्ध से पहले कुछ इसी तरह के घटक उभरकर सामने आए थे। जर्मनी में हिटलर, मुसोलिनी का इटली में उदय और जापान में क्रूर शासन और इन तीनो ताकतों ने मिलकर द्वितीय विश्वयुद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी, जो विनाशकारी सिद्ध हुई थी। वही अब अलग परिस्थितियों में कुछ वैसा ही देखा जाए तो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्वीकरण के जिस दौर में<b> </b>"<b>विश्वग्राम</b>" की अवधारणा की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा था, वही यह अवधारणा सिकुड़ती नजर आ रही है। ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होना, अमेरिका में ट्रंप का उदय, फ्रांस में ओलांद का इस्तीफा और राष्ट्रवादी पार्टी का बढ़ता प्रभाव, जर्मनी में एंजेला मर्केल का शरणार्थी स्वागत पर रोक लगाने की घोषणा, भारत में 80 एवं 90 के दशक में उभरे हिंदू राष्ट्रवाद का सत्ता में बैठना, पुतिन का रूस को पूर्व सोवियत संघ की भांति खड़ा करना और सीरिया में उसकी आगे बढ़कर कार्यवाही, अरब में सऊदी अरब एवं ईरान के मध्य टकराव, जिससे आयी तेल बाजार में नरमी और इराक-सीरिया में वहाबी इस्लामी राष्ट्रवाद का ISIS के रूप में उदय और दक्षिण चीन सागर में चीन का प्रभाव। इन सभी घटकों को जोड़कर किसी भी तरह के ध्रुवों का निर्माण हो सकता है और किसी भी प्रकार की वैश्विक परिस्थिति का निर्माण कर सकती है। हो सकता है कि यह परिस्थितियां द्वितीय विश्वयुद्ध के समान परिस्थितियां पैदा करें या उससे भी भयंकर एवं यह सभी धारणाये खोखलीे साबित हो और काश खोखली ही हो। मगर यह प्रश्न करना वाजिब है कि ऐसी परिस्थितियों का निर्माण हुआ कैसे?<br>
इसका सीधा सीधा जवाब है कि जनतांत्रिक मूल्यों का अभाव, सत्ता की प्यास एवं पूंजी की खाद। वास्तव में जनतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, सत्ता वर्ग जन के लिए नहीं अपितु धन के लिए कार्य कर रहा है। आज के बाजार वादी युग में "जो बोलता है, उसका बिकता है" की अवधारणा सत्ता में भी लागू होती दिख रही है, ट्रंप जैसे लोग अपने बड़बोलेपन के कारण जीत रहे हैं, इसका समर्थन जनता से मिल रहा है। वैश्वीकरण की कमर तोड़ कर ब्रेग्जिट को भी जनता का समर्थन मिला, तो क्या जनता सामाजिक, लोकतांत्रिक एवं राजनीतिक शिक्षा से अनभिज्ञ हो रही है। क्या विश्वबंधुत्व, लोकतंत्र एवं सहिष्णु जैसे विचार मैले पड़ रहे हैं? क्या हम सीमाओं से निकलकर पुनः सीमाओं में जा रहे हैं? क्या जिस उदारवाद का दम आर्थिक क्षेत्र में भरा जाता है, उसका कोई भी हस्तक्षेप सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक रुप से नहीं है? क्या जिस वैश्वीकरण को विश्वग्राम हेतु विश्व पटल पर लाया गया था, वह आर्थिक लंगड़े पर तक ही सीमित रह गया। यह सब विचारणीय प्रश्न है।<br>
जब तक लोकतंत्र, सहिष्णुता, भाईचारे, उदारवाद एवं वैश्वीकरण को आर्थिक रुप से ही देखा जाएगा, ऐसी समस्याएं या इससे बड़ी समस्याएं वैश्विक पटल पर उभरती रहेंगी। उपरोक्त विचारधाराओं को सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आयामों के साथ जोड़ना ही पड़ेगा एवं नीतियों को उस धन के लिए नहीं अपितु जन के लिए लागू करना होगा, तभी उपरोक्त संकटों को टाला जा सकेगा।</p>
<p dir="ltr">रजत सारस्वत <br>
परिष्कार कॉलेज</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-69718916110616750332017-01-01T08:32:00.001-08:002017-01-01T20:49:14.334-08:00आर्थिक उदारीकरण या स्वदेशीकरण<p dir="ltr">भारत का एक बड़ा प्रभावी वर्ग आर्थिक विकास के नाम पर उदारीकरण और वैश्वीकरण का नारा बुलंद किए हुए है। उसका मानना है कि जब तक पर्याप्त पूंजी निवेश भारतीय क्षेत्र में नहीं होगा, चाहे वह विदेशी हो या देशी तब तक देश का आर्थिक विकास नहीं होगा। इसके लिए विदेशी कंपनियों को पर्याप्त सुविधाएं देनी होगी। उदार आर्थिक नीति ही हमें बचा सकती है। इसके विपरीत पिछले कुछ वर्षों से स्वदेशीकरण का नारा भी सुनाई पड़ने लगा है तथा यह विवाद चल गया है कि हमारा हित उदारीकरण में है या स्वदेशीकरण में? हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपने गौरवशाली अतीत को भूल गए। अंग्रेजों के शासन से पूर्व भारत विश्व के धनी राष्ट्र में से एक था। यहां के उद्योग धंधे विकसित थे। दुनिया के अधिकांश राष्ट्रों से हमारे व्यापारिक संबंध थे। भारत वैभव एवं संपन्नता का केंद्र था, धीरे-धीरे यह संपनता विपन्नता में बदल गई। ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों के कारण हमारी अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। हमें ब्रिटिश साम्राज्यवाद का उपनिवेश बना दिया गया। यही के कच्चे माल से ब्रिटेन का औद्योगिक विकास हुआ और हमारा निरंतर शोषण होता रहा।</p>
<p dir="ltr">पश्चिमोन्मुखी आर्थिक नीतियों के कारण हमारा देश आर्थिक गुलामी की ओर धकेला जा रहा है। विदेशी ऋण भयावह स्थिति तक पहुंच गया है। विदेशी और आंतरिक ऋण का ब्याज चुकाने के लिए हमें कर्जा लेना पड़ रहा है। देश की आर्थिक स्थिति जर्जर होती जा रही है। बजट का चौथाई से भी अधिक भाग केवल ब्याज के भुगतान में जाएगा। इसका दुष्परिणाम यह है कि विदेशी ऋण देने वाले राष्ट्र या संस्थाओं की शर्तों को स्वीकार किया जा रहा है। रुपए का अवमूल्यन, सार्वजनिक उद्योगों का निजीकरण तथा विदेशी पूंजी को बढ़ाने की शर्तें भारत में विदेशी दबाव में स्वीकार की है। उदारीकरण की नीति इसी का परिणाम है। इसी के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को छूट दी जा रही है। भारत सरकार इन विदेशी कंपनियों को पलक पावडे बिछा कर न्यौता दे रही है। उनके आगमन से स्वदेशी उद्योग चौपट हो जाएंगे, भारतीय व्यवस्था ठप हो रही है एवं बेरोजगारी बढ़ रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारी बड़ी कंपनियों तक को निगल रही है। टाटा आयल, गोदरेज, पारले आदि इनके मुंह में समाते जा रहे हैं।</p>
<p dir="ltr">अतः हमें यह स्पष्ट रूप से समझना होगा कि पश्चिम के आत्मघाती विकास दर्शन और विदेशी शक्तियों के सहारे भारत के विकास की नई राह नहीं बनाई जा सकती। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत विकास के पश्चिमी मॉडल के भ्रम जाल से बाहर निकलकर स्वदेशी दर्शन पर आधारित अपने स्वयं के विकास के मार्ग को अपनाए। बहुराष्ट्रीय कंपनियां देश की राष्ट्रीय अस्मिता पर चोट है। यह चेतना सबके मन में जगानी होगी तथा उनके उत्पादों का बहिष्कार करना होगा। जैसा हमने अंग्रेजों के शासन काल में महात्मा गांधी के नेतृत्व में किया था। हमें स्वदेशी का मंत्र पुनः जगाना होगा। विदेशी ऋण लेने की क्षमता पर प्रतिबंध लगाना होगा, तथा निर्यात बढ़ाने होंगे, आयात घटाने के स्वदेशी तंत्र के ज्ञान को विकसित करना होगा तथा विदेशी पूंजी के भारत में निवेश के प्रति सतर्कता बरतनी होगी। यदि हम शोषण मुक्त एवं स्वायत्त समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो स्वदेशीकरण के विचार को प्रोत्साहन देना होगा। अंधानुकरण की दौड़ में शामिल होकर देश को विदेशी आर्थिक शक्तियों को सौंप देने से हमारी स्वतंत्रता किस प्रकार बनी रहेगी यह विचारणीय विषय है। <br>
पंकज कुमार चंदेल <br>
B.A. तृतीय वर्ष <br>
परिष्कार कॉलेज जयपुर</p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-68476741760939220372017-01-01T04:30:00.001-08:002017-08-27T08:18:54.429-07:00ग्लोबल वार्मिंग: वर्तमान परिदृश्य<p dir="ltr">ग्लोबल वार्मिंग, जो बहुत ही सुना सा शब्द लगता है, लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं देना चाहता। जिस तरह प्राकृतिक आपदा कभी भी, किसी को बोल कर नही आती और भारी जन धन की हानि देकर जाती है। जैसे- सुनामी, भूकम्प, अतिवृष्टि, भीषण गर्मी आदि। आज भी हम ग्लोबल वार्मिंग की समस्या देख तो रहे है, परन्तु उसे नजर अंदाज कर रहे है, जबकि आने वाले वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग का असर और भी ज्यादा दिखने लगेगा।</p>
<p dir="ltr">ग्लोबल वार्मिंग क्या है?<br>
ग्लोबल वार्मिंग जिसे सामान्य भाषा में भूमंडलीय तापमान में वृद्धि कहा जाता है। पृथ्वी पर ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होनी चाहिये, परन्तु बढ़ते प्रदूषण के साथ कॉर्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, जिसका असर ग्रीन हाउस पर पड़ रहा है। ग्रीन हाउस के असंतुलन के कारण ही ग्लोबल वार्मिंग हो रही है।</p>
<p dir="ltr">ग्रीन हाउस क्या है?<br>
सभी प्रकार की गैसों से, जिनका अपना एक प्रतिशत होता है, उन गैसों सेबना ऐसा आवरण है जो कि पृथ्वी पर सुरक्षा परत की तरह काम करता है, जिसके असंतुलित होते ही ग्लोबल वार्मिंग जैसी भीषण समस्या सामने आती है।</p>
<p dir="ltr">ग्लोबल वार्मिंग क्यों हो रही है?<br>
ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण प्रदूषण है। आज के समय के अनुसार प्रदूषण और उसके प्रकार बताना व्यर्थ है। हर जगह, हर क्षेत्र में यह बढ़ रहा है। जिससे कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, फलस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है। आधुनिकीकरण के कारण पेड़ो की कटाई, गाँवो का शहरीकरण में बदलाव, हर खाली जगह पर बिल्डिंग, कारखाना या अन्य कोई कमाई के स्रोत खोले जा रहे हैं। खुली एवं ताज़ी हवा के लिए कोई स्रोत नही छोड़े। गिनाने के लिए और भी कई कारण है। पृथ्वी पर हर चीज का एक चक्र चलता है, हर चीज एक दूसरे से कही ना कही जुड़ी रहती है। एक के हिलते ही पृथ्वी का पूरा चक्र हिल जाता है, जिसके कारण भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है।</p>
<p dir="ltr">ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव:-<br>
जिस तरह प्राकृतिक आपदा का प्रभाव पड़ता है, उससे भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बिल्कुल उसी तरह ग्लोबल वार्मिग एक ऐसी आपदा है जिसका प्रभाव धीरे धीरे होता है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि ग्लोबल वार्मिंग से हो रहे नुकसान की भरपाई मनुष्य अपनी अंतिम सांस तक नही कर सकता। जैसे- ग्लोबल वार्मिंग के चलते कई पशु-पक्षी एवं जीव-जंतुओं की प्रजाति विलुप्त हो गई है। बहुत ठंडी जगह जहाँ, बारह महीनों बर्फ की चादर ढकी रहती थी, वहां बर्फ पिघलने लगी, जिससे जल स्तर में वृद्धि होने लगी है। पृथ्वी पर मौसम के असंतुलन के कारण चाहे जब अति वर्षा, गर्मी व ठंड पड़ने लगी है या सूखा रहने लगा है, जिसका सबसे ज्यादा असर फसलों पर पद रहा है। जिससे पूरा देश आज की तारीख में महंगाई से लड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण का सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। जिस से हर व्यक्ति छोटी से लेकर बड़ी तक किसी ना किसी बीमारी से ग्रस्त है। शुद्ध ऑक्सीजन न मिलने के कारण व्यक्ति घुटन की जिंदगी जीने लगा है।</p>
<p dir="ltr">ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पर मेरे सुझाव:-<br>
ग्लोबल वार्मिंग के लिए बहुत आवश्यक है "पर्यावरण बचाओ, पृथ्वी बचेगी।" बहुत ही छोटे छोटे दैनिक जीवन में हो रहे कार्यों में बदलाव को सही दिशा में ले जाकर इस समस्या को सुलझाया जा सकता है।</p>
<p dir="ltr"># पेड़ों को अधिक से अधिक मात्रा में मौसम के अनुसार लगाये।<br>
# लंबी यात्रा के लिए कार की बजाय ट्रेन से यात्रा करे।<br>
# दैनिक जीवन में जहां तक संभव हो सके दुपहिया वाहनों की बजाय सार्वजनिक बसों या यातायात के साधनों का उपयोग करे।<br>
# बिजली से चलने वाले साधनों की अपेक्षा सौर ऊर्जा वाले साधनों का उपयोग करे।<br>
# जल का दुरूपयोग न करें, प्राचीन एवं प्राकृतिक जल संसाधनों का नवीनीकरण ऐसे न करें, जिससे वह नष्ट हो जाये।<br>
# आधुनिक वस्तुओं के उपयोग को कम कर घरेलु एवं देशी साधनों का उपयोग करे।</p>
<p dir="ltr">पंकज कुमार चंदेल<br>
B.A. Final Year<br>
परिष्कार <u>कॉलेज</u></p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-7232805879344408842016-12-18T05:15:00.001-08:002016-12-18T05:15:17.162-08:00जम्मू कश्मीर एवं भारत<p dir="ltr">भारत का इतिहास एक शांतिप्रिय देश के रूप में रहा है। लेकिन जब हम बात जम्मू कश्मीर पर करते हैं, जिसे भारत का दिल, स्वर्ग, सिरताज आदि नामों से संबोधित किया जाता है। आजादी से पहले जम्मू कश्मीर भी एक रियासत थी, लेकिन इसके ऊपर अंग्रेजों का सीधा नियंत्रण नहीं था। जब देश का विभाजन 14-15 अगस्त 1947 में हुआ तो इसके तत्कालीन राजा हरि सिंह ने यह घोषणा कि वह ना तो भारत में शामिल होंगे और ना ही पाकिस्तान में। परंतु 1948 में पाक ने कबाइलियों के माध्यम से जम्मू कश्मीर पर आक्रमण किया, उस समय राजा हरिसिंह ने भारत की सरकार से आर्थिक सहायता मांगी तो हिंदुस्तान ने उसकी मदद की, तो हरी सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया। परंतु वर्तमान में कुछ क्षेत्र पाकिस्तान के पास तथा कुछ भाग चीन के पास है। वैश्विक दृष्टि से यह एक ज्वलंत समस्या बन गई है, इसके समाधान के लिए निम्न बिंदु दिए जा सकते हैं:-</p>
<p dir="ltr"><b>i. </b>प्रत्येक गांव के लिए अलग से स्कूल होना चाहिए ताकि प्रत्येक बच्चे को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मिले।<br>
<b>ii</b><b>. </b>स्थानीय संसाधनों का समुचित विकास करना चाहिए जिससे लोगों का अपने सरकार के प्रति विश्वास उत्पन्न हो।<br>
<b>iii</b><b>.</b> प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार उपलब्ध करवाना क्योकि बेरोजगार व्यक्ति राज्य के विरुद्ध क्रांति के बारे में विचार करता है।<br>
<b>iv</b><b>. </b>धीरे धीरे परिवर्तन की लहर को पूरे राज्य में प्रसारित करने क्योकि यहाँ के अलगाववादी संगठन परिवर्तन का पुरजोर विरोध करते हैं।<br>
<b>v. </b>जम्मू कश्मीर की प्रत्येक महिला को पूर्ण शिक्षित करने की जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए क्योंकि एक महिला एक परिवार को शिक्षित करती है।<br>
<b>vi</b><b>. </b>जम्मू कश्मीर के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना का संचार करना होगा क्योंकि ये लोग आज भी अपने आप को मन से भारतीय नहीं मानते हैं।</p>
<p dir="ltr">अतः हम इस प्रकार कह सकते है जम्मू कश्मीर की समस्या एक जन समस्या बन गई है। जिसका समाधान बातचीत एवं स्थानीय विकासात्मक योजनाओं से किया जा सकता है। इसके लिए दोनों पक्षों के द्वारा एक दूसरे के नियमों का पालन करना एवं छद्म युद्ध को रोकना आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा दोनों देशों में तनाव उत्पन्न होता है।</p>
<p dir="ltr">सरिता वर्मा<br>
B.A. Final<br>
<u>परिष्कार कॉलेज</u></p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-38000562393135379352016-12-18T04:49:00.001-08:002016-12-18T04:49:40.314-08:00मुद्रा का नवीनीकरण<p dir="ltr">वर्तमान में कार्यरत एनडीए सरकार ने 8-9 अक्टूबर, 2016 की मध्यरात्रि को नोटबंदी का फैसला दिया। इसके अंतर्गत संपूर्ण देश में 500 एवं 1000 के नोटों को बंद करने का फैसला एवं नए नोटों का भारतीय अर्थव्यवस्था में चलन की घोषणा की गई।<br>
इस फैसले ने संपूर्ण देशवासियों को अचंभित कर दिया लेकिन यह फैसला क्यों लिया गया एवं कितना कारगर साबित होगा इस विषय में हम थोड़ी चर्चा करते हैं। </p>
<p dir="ltr">*ये विराट फैसला क्यों लिया गया?<br>
कालाधन इस फैसले का केंद्रीय बिंदु है।</p>
<p dir="ltr"><b>काला</b><b>धन</b> Black money is not black money it is a result of black activities.<br>
जनता द्वारा सरकार को स्वार्थवश नहीं चुकाया जाने वाला "कर" ही काला धन है।</p>
<p dir="ltr">अब तक मुद्रा नवीनीकरण का फ़ैसला<br>
1946 में रियासतों में चलने वाली मुद्रा का एकीकरण।<br>
1978 में मोरारजी देसाई की सरकार द्वारा 5000 एवं 10000 की नोट बंदी।<br>
2016 में 1000 एवं 500 के नोटों की बंदी।</p>
<p dir="ltr">यहां हम काले धन को एक उदाहरण से समझते हैं-<br>
माना वस्तु की उत्पादन लागत 100 रुपए हैं और अप्रत्यक्ष कर लगने के बाद उसकी कीमत 135 है, इस प्रकार 135 रुपए में 35 रुपए कर के रूप में है जो कि 135 रुपए का 26 प्रतिशत होता है।<br>
सरकार को अप्रत्यक्ष कर के रूप में 26 प्रतिशत मिलना चाहिए परन्तु जीडीपी में अप्रत्यक्ष कर का भाग मात्र 11.4% प्राप्त होता है। अतः बचा हुआ 14.7% ही कालाधन है। भारत की जीडीपी लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर की है।<br>
Note:- यदि हमारे जीडीपी का लगभग 15% प्रतिवर्ष कालाधन होता है तो 6 वर्षों में काला धन लगभग 1 वर्ष की हमारी जीडीपी के बराबर हो जाएगा।</p>
<p dir="ltr">अतः इस स्थिति को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री ने यह फैसला लिया, जिसके अंतर्गत भारत मुद्रा के 86 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले 1000 एवं 500 के नोटों का नवीनीकरण किया गया।</p>
<p dir="ltr">आइए अब हम जानते हैं कि इस फैसले का हमारे ऊपर क्या असर पड़ेगा-<br>
1.<b> </b><b>आर्थिक</b><b> </b><b>प्रभाव</b><b>-</b> इस फैसले से आर्थिक प्रभाव के दो पक्ष सामने है-<br>
<b>प्रथम</b><b> </b><b>दीर्घकालिक</b><b> </b><b>एवं</b><b> </b><b>सकारात्मक</b><br>
<b>i. </b>आधारभूत ढांचे का विकास:- इसके अंतर्गत आधारभूत सुविधाएं परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि का विकास किया जाएगा। जिस के निम्न परिणाम होंगे-<br>
भारत में आधारभूत सुविधाओं का विकास जिससे रोजगार में वृद्धि, रोजगार में वृद्धि से क्रय शक्ति में वृद्धि, क्रय शक्ति में वृद्धि से गरीबी में कमी आएगी।<br>
Note:- वर्तमान में कार्यरत सरकार का लक्ष्य है कि वह 10 लाख नौकरियां प्रतिमाह उपलब्ध करवाएगी जो आधारभूत विकास से ही संभव है।</p>
<p dir="ltr"><b>ii</b><b>. </b>कर में कमी:- हमारे देश में जीडीपी में अप्रत्यक्ष कर का 26 प्रतिशत सरकार को मिलना चाहिए लेकिन इसका मात्र 11.4 प्रतिशत ही सरकार को प्राप्त होता है जिसका कारण काला धन है। अतः काले धन को समाप्त होने से सरकार को अप्रत्यक्ष कर का 26 प्रतिशत मिलेगा। जिससे स्वतः ही सरकार जन सुविधाओं को ध्यान में रखकर कर की दरों में कमी करेगी।</p>
<p dir="ltr"><b>iii</b><b>.</b> कर्ज की ब्याज दरों में कमी:- इस योजना के कारण अप्रत्यक्ष रुप से बैंकों के एनपीए में कमी आएगी तथा बैंकों के पास जनता द्वारा जमाएं अधिक मात्रा में करवाने के कारण बैंकों के पास ऋण देने के लिए अधिक धन होगा। जिसके कारण वह अपनी ब्याज दर घटायेगा। जिसका एक प्रभाव निवेश में वृद्धि के रूप में होगा, जो आगे चलकर रोजगार के साथ आर्थिक विकास को बढ़ाएगा।</p>
<p dir="ltr"><b>iv</b><b>. </b>तकनीकी विकास:- नोट बंद के कारण भारत में प्लास्टिक मनी बढ़ेगी जिसके फलस्वरुप स्वत: ही भारत में इंटरनेट की बढ़ोतरी होगी और इंटरनेट के विस्तार से तकनीक का स्वत: ही विकास हो जाएगा।</p>
<p dir="ltr"><b>v. </b>कर प्रणाली का व्यवस्थित रूप:- अधिकांश लोगों द्वारा कर चोरी की जाती रही है। सरकार के इस सशक्त कदम के बाद अधिकांशत: कर चोरी की समस्या खत्म हो जाएगी एवं कम कर से प्रत्येक व्यक्ति संतुष्ट रहेगा एवं समय पर कर चुकाएगा।</p>
<p dir="ltr"><b>द्वितीय</b><b> अल्पकालीन एवं नकारात्मक </b><b>प्रभाव</b><b>:- </b></p>
<p dir="ltr"><b>i.</b> मुद्रा के चलन में कमी:- नए नोटों को जनता अपने पास द्रव रूप में रखना चाहती है, जिससे धन प्रवाह में कमी हुई है और यह समस्या लगभग जनवरी-फरवरी 2017 तक भारतीय अर्थव्यवस्था में बने रहने की संभावना है।</p>
<p dir="ltr"><b>ii</b><b>. </b>विकास दर में कमी:- लोगों के पास नई मुद्रा कम होने के कारण क्रय शक्ति में कमी हुई है। जिससे वृद्धि दर में अनुमानित 0.5 से 1% की कमी रहेगी।</p>
<p dir="ltr">2.<b> </b><b>रक्षात्मक</b><b> </b><b>प्रभाव</b></p>
<p dir="ltr"><b>i. </b>कश्मीर शांति:- नोट बंदी के फलस्वरूप अलगाववादियों द्वारा नवयुवकों को रुपयों का लालच देकर जो हिंसात्मक गतिविधियां करवाई जा रही थी उसमें कमी आई है।</p>
<p dir="ltr"><b>ii</b><b>. </b>नकली नोटों की छपाई पर पूर्णतया रोक:- आरबीआई द्वारा 1000 एवं 500 का कागज USA से लाया जा रहा था, जो अनुमान के अनुसार USA द्वारा पाकिस्तान एवं बांग्लादेश को भी उपलब्ध करवाया जा रहा है। जिससे नकली नोटों की छपाई एवं आतंकवादी गतिविधि में बढ़ोतरी हो रही थी।<br>
वर्तमान में प्रचलित 500 एवं 2000 के नोटों का कागज जर्मनी से मंगवाया जा रहा है, जिससे कि नकली नोटों के छपने पर पूर्णतया रोक लगेगी।</p>
<p dir="ltr">3.<b> </b><b>वैश्विक</b><b> </b><b>अर्थव्यवस्था</b><b> </b><b>पर</b><b> </b><b>प्रभाव</b><b>:- </b>अंतर्राष्ट्रीय व्यापार रुपयों में ना होकर डॉलर में होता है, अतः मुद्रा परिवर्तन से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। अतः सकारात्मक प्रभाव की बात करें तो...<br>
कर में कमी >अधिक आय> निवेश में वृद्धि> उत्पादन में वृद्धि> निर्यात में वृद्धि> विदेशी मुद्रा का अधिक अर्जन ।</p>
<p dir="ltr">मूल्यांकन:- किसी भी सरकार के द्वारा उठाया गया कदम तत्कालीन परिस्थितियों की देन होती है और प्रत्येक सरकार का उद्देश्य राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि रखना होता है। अतः हमें दो पार्टियों की तुलना नकारात्मक रूप में न करते हुए अपने देश हित में लिए गए सकारात्मक निर्णय का समर्थन करना चाहिए। हमें किसी पार्टी के समर्थन एवं विरोध में नहीं पड़कर इस फैसले पर अपने विवेकानुसार निर्णय लेने की क्षमता रखनी चाहिए। सरकार की कुछ कदम भविष्य उन्मुखी होते हैं, जिनका परिणाम भविष्य में ही दिखाई देता है। हालांकि नोट बंदी के कारण सामान्य जनता को कुछ समय के लिए परेशानी वाजिब है, पर एक स्वच्छ, भ्रष्टाचार मुक्त एवं सुनहरे भारत के लिए यह कदम अपरिहार्य है।</p>
<p dir="ltr">अंजलि वर्मा <br>
नरेश आमेटा<br>
(B.A. Final Year)<br>
परिष्कार कॉलेज </p>
Polity Parivimarshhttp://www.blogger.com/profile/16345008797279064794noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-3916216496572001581.post-21445824469176030882016-12-17T03:28:00.001-08:002016-12-26T03:46:19.182-08:00Girl's Education in India<p dir="ltr">It is rightly stated that “Educating a boy is educating a person but Educating a girl is educating a nation”. Some of the major barriers which stand for girls education are as follows-<br>
1. Lack of consciousness amongst the female members to be educated.<br>
2. Lack of safe transportation for girls to go to school.<br>
3. Financial constraints in the family.<br>
4. Conservative mentality.<br>
5. The task of performing domestic duties at home such as cleaning, washing, etc.<br>
6. The lack of women teachers in primary and middle schools has been a major factor for low enrolment of girls.<br>
7. Unwillingness of many parents to send their daughter to mixed schools.<br>
8. Early Marriage age in many states acts as an obstacle.</p>
<p dir="ltr">Some of the major initiatives for promotion of girl's education include Beti Bachao, Beti Padhao; Kasturba Gandhi Balika Vidyalayas (KGBV); Sarva Siksha Abhiyan. Further, the following suggestions you may write in your answers:<br>
Serious efforts must be made by the government in collaboration with civil society wherein awareness must be created amongst the parents for promoting girls education. Use of media in portraying a positive image of women.<br>
Financial assistance to poverty stricken families. Counselling of parents and children from unprivileged families.</p>
<p dir="ltr">Yogesh jangid<br>
M.A. Previous, Political Science</p>
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