"हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 30 नवंबर 2016 को सिनेमाघरों में फिल्म की शुरूआत से पहले राष्ट्रगान बजने के वक्त सभी दर्शकों को राष्ट्रगान के सम्मान में अनिवार्य रूप से खड़ा होने का आदेश दिया गया है।" साथ ही राष्ट्रगान बजाते समय राष्ट्रध्वज को स्क्रीन पर दिखाया जाना चाहिए, साथ ही राष्ट्रगान के किसी भी तरह की कमर्शियल इस्तेमाल पर रोक लगाई गई है।
वास्तव में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मेरी राय में अच्छा एवं व्यवहारिक है क्योंकि देश के सम्मान के प्रतीक राष्ट्रगान के प्रति लोग अक्सर आदरभाव नहीं रखते हैं, बल्कि जाने अनजाने में इस का अनादर तक कर बैठते हैं। इस दिशा में केंद्र सरकार ने पूर्व में भी एक ऐसा कदम बढ़ाने का प्रयास किया था और 5 जनवरी,2015 को अपने एक आदेश में राष्ट्रगान के समय सावधान की मुद्रा में खड़े होने का नियम बनाया था।
संवैधानिक/ कानूनी प्रावधान:-
राष्ट्रगान के सन्दर्भ में 1971 के "प्रिवेंशन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट" के सेक्शन 3 के मुताबिक "जान-बूझकर किसी को राष्ट्रगान गाने से रोकने या गा रहे समूह को बाधा पंहुचाने पर 3 वर्ष तक की कैद सजा या जुर्माना भरना पड़ सकता है। अन्यथा दोनो एक साथ भी दी जा सकती है। हालांकि 1975 से पहले फिल्म के बाद राष्ट्रगान गाने की परंपरा थी, परंतु सिनेमाघर में लोग उचित सम्मान नहीं देते थे। अतः इस पर रोक लगा दी गई। कुछ वर्ष बाद केरल के सिनेमाघरों में यह परंपरा शुरू हुई, फिर इसके बाद महाराष्ट्र में भी यह परंपरा शुरू हुई।
राष्ट्रगान बजाने के नियम:-
1. नागरिक और सैन्य सेवाओं के कार्यक्रम की संवैधानिक शुरुआत के वक्त।
2. राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं लेफ्टिनेंट गवर्नर को सलामी के वक्त।
3. परेड के दौरान, चाहे विशिष्ट अतिथि उपस्थित हो या नहीं।
4. ऑल इंडिया रेडियो पर राष्ट्रपति का संबोधन से तत्काल पहले और उसके बाद।
5. सामान्यतः प्रधानमंत्री के लिए नहीं बजाया जाता केवल विशेष अवसर पर ही बजाया जाता है।
राष्ट्रगान का समूह गायन:-
1. राष्ट्रीय ध्वज फहराने के अवसर पर राष्ट्रगान का सामूहिक गायन अनिवार्य है।
2. सांस्कृतिक अवसरों पर या परेड के अलावा अन्य समारोह पूर्ण कार्यक्रमों में।
3. विद्यालयों में दिन के समय होने वाले कार्यक्रमों में राष्ट्रगान को सामूहिक रूप से गाकर कार्यक्रम आरम्भ किया जा सकता है।
4. राष्ट्रगान उन अवसरों पर गाया जाए जो पूरी तरह समारोह ना हो। अर्थात जिनमें मंत्री आदि की उपस्थिति होना शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मैं इत्तेफाक रखता हूं कि आज देश के नागरिक राष्ट्रगान का आदर करना भूल गए हैं। बहुतों को तो उसकी धुन भी याद नहीं है और कुछ को तो राष्ट्रगान के शब्द भी ठीक से याद नहीं होंगे। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए।
वैसे यह अजीब बात भी है कि हमें सिखाना पड़ रहा है कि हमें अपने राष्ट्र से प्रेम करना आना चाहिए और उसके सम्मान के प्रतीकों का आदर करना चाहिए। दरअसल में राष्ट्रगान केवल गाना भर नहीं है बल्कि यह हमारे राष्ट्र की पहचान है, जिसका गौरव के क्षणों को याद करते वक्त गायन वादन किया जाता है। यदि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राष्ट्र के प्रति आदर की भावना बलवती होती है और लोगों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होता है तो इस फैसले को सफल माना जाएगा।जय हिंद।
द्योजीराम फौजदार( एम.ए. फाइनल, परिष्कार कॉलेज)
Very nice topic with such very nice thoughts. Make it continue. 👌👏👏
जवाब देंहटाएंSooo much inspirational.. 👍👍👍👍
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