मंगलवार, 21 अगस्त 2018

आत्महत्या


आत्महत्या,
एक ऎसा हथियार या यूँ कहो कि रामबाण औषधि किसी मुसीबत से बचने का, खुद को निकाल कर अपने परिवारजन को दुःख देने का या फिर वास्तविकता कहूँ तो हिम्मत हार जाना।

एक सभ्य परिवार में रहते हुए, एक प्रगतिशील राष्ट्र के कर्तव्यनिष्ठ नागरिक होकर जो कि इस राष्ट्र को प्रगतिशील बनाने मे अहम भागीदारी निभा रहा है, एक ऎसा राष्ट्र जो हज़ारों परेशानियों से जूझ रहा है। किंतु फिर भी एक घायल जवान की भांति सीमा पर इसी उम्मीद में खड़ा हुआ है कि कभी ना कभी तो उसकी प्रजा बदलेगी, परंतु इस घायल जवान रूपी राष्ट्र को मिलता क्या है? सिर्फ "निराशा".... वो भी आत्महत्या के रूप में, बलात्कार के रूप में, भ्रष्टाचार के रूप में,अमानवता के रूप में.... न जाने कितने ही अनेको रूप है इस निराशा के। परंतु सभी समस्या को एक किनारे कर मैं बात करू "आत्महत्या " की तो आंकड़े आपको अंदर तक झकझोर देने वाले हैं। जी वास्तव में यही हाल है भारतीय सभ्य समाज का, एक ऎसे समाज का जिसे युवाओं का समाज कहा जा सकता है। लेकिन क्या इस सभ्य समाज का युवा इतना कमजोर है? या फिर इस युवा में सिर्फ निराशा भरी हुई है?

क्योंकि प्रत्येक छोर पर निराशा का अनंत समुद्र दीख पड़ता है।
और सवाल है क्यों.......? ये निराशा क्यों है, क्या समाज खुद अपने युवाओं में ये निराशावादी विचारधारा उत्पन्न कर रहा है? परंतु जहां तक मेरा मानना है तो ये युवा ही तो समाज है, तो क्यों युवा खुद से सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है?
क्या अब कोई उपाय दिखाई देता है इसका.......?
जी, जरूर! उपाय है, और वो मै हूँ, आप स्वयं है, आपका परिवार है और सबसे महत्वपूर्ण आपके और आपके परिवार के विचार है।
नहीं, नहीं मै आपको जागरूक नहीं कर रहा हूँ, बिल्कुल भी नहीं।
मैं तो सिर्फ एक बच्चा हूँ, जो खुद दुखी है इस "जागरूकता" से।
क्या वो 35 साल की महिला जागरूक नहीं थी जो IRS जैसे पद पर अधीनस्थ थी?
नहीं, नहीं मै समझदारी की भी बात नहीं कर रहा हूँ। अरे! मै तो सिर्फ एक बच्चा हूँ...... जो दुखी है ऎसी "समझदारी" से
परंतु क्या वो IAS अधिकारी भी समझदार नहीं था, जिसने ये कदम उठाने के लिए मजबूर किया।
विडम्बना देखिए जनाब इस समाज  कि जब "जागरूकता" और "समझदारी" का मिलन होता है तो उत्पन्न होती है, "आत्महत्या"।

इतनी असभ्यता इस सभ्य कथित समाज में, जिसकी महानता के नारे लगाये जाते रहे है।
परंतु विचार करने वाली बात यह है कि आज की युवा सभ्यता आने वाली युवा सभ्यता के लिए किस प्रकार का इतिहास छोड़ कर जाएगी ?   क्या असर होगा आने वाले युवाओं पर जो अपने जीवन के प्रारंभिक सफर में इन घटनाओं से सामना करने पर मज़बूर है।
इसलिए आवश्यक है कि जो जागरूकता और समझदारी आपके अंदर दबी पड़ी है उसे अमल में लाया जाये, साझा किया जाये, इसका सही उपयोग एवं सही तरीका समझाया जाये। ताकि जब इनका मिलन हो तो आत्महत्या नहीं बल्कि "आत्म सुरक्षा" उत्पन्न हो सके।
क्योंकि इस "आत्म सुरक्षा" से ना सिर्फ आपका अपितु आपके परिवार का, आपके समाज का आने वाली युवा पीढ़ी का भी भला हो सकेगा और शायद उस घायल जवान के घावों पर भी मल्हम लग जाये जो खड़ा हुआ है सीमा पर अपनी प्रजा के बदलने के इंतज़ार में..... याद तो है ना आपको!

एक चिन्तनशील एवं विचारणीय भावना.....

         ~  तुषार स्वर्णकार
       ~ बी.ए. प्रथम वर्ष
     परिष्कार कॉलेज ऑफ़ ग्लोबल एक्सीलेंस, जयपुर

6 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार प्रयास तुषार
    आप इसे और अधिक शानदार बनाने का प्रयास करे।
    उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद श्रीमान्..... मैं अवश्य ही इसे और अधिक शानदार बनाने की कोशिश करूंगा 🙏🙏

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  2. Great job brother keep it up. I know that you touch that level of success.best of luck

    जवाब देंहटाएं
  3. यह इतना गम्भीर चिन्ता का विषय है, की इस पर सभी युवाओं को ध्यान देना चाहिये। क्योंकि हमे भी कभी-न-कभी गृहस्थ जीवन में कदम रखना है। ंं(मेरे व्यक्तिगत विचार हैं )
    ंमुझे तो यह सोच कर भी डर लगता है कि क्या विवाहित व्यक्ति के जीवन में इतनी परेशानियाँ होती है कि उनका कोई समाधन ंंनही। ऐसा क्या है इस वैवाहिक जीवन में,,,,,।

    "जीवन में दिखावटी सफलता और आन्तरिक सफलता के बीच सामन्जस्य रखा जाये तो अवसाद की स्थिति से बचा जा सकता है।"
    यह कथन है हमरे बड़े बुजुर्गो का जिन्होंने अपना जीवन आत्मसंतुष्ट हो कर बिताया है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि क्या ये सब जानकर हमे कुछ ंंनही करना चाहिए, यदि अब कुछ ंंनही किया गया तो भविष्य की ऐसी समस्याओ के प्रति हम क्या कदम उठाएंगे,,?
    अन्ततः जिला प्रशासन /चिकित्सको से यही गुजारिश है कि इन घटनाओ को ध्यान ंंमे रखते हुये स्थनीय स्तर पर Anti Depression Camp लगाने चाहिये। (ंंमेरे विचार से)
    पोरस सैन
    बी ए प्रथम वर्ष
    परिष्कार कॉलेज ऑफ़ ग्लोबल एक्सीलेंस

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