रविवार, 1 जनवरी 2017

आर्थिक उदारीकरण या स्वदेशीकरण

भारत का एक बड़ा प्रभावी वर्ग आर्थिक विकास के नाम पर उदारीकरण और वैश्वीकरण का नारा बुलंद किए हुए है। उसका मानना है कि जब तक पर्याप्त पूंजी निवेश भारतीय क्षेत्र में नहीं होगा, चाहे वह विदेशी हो या देशी तब तक देश का आर्थिक विकास नहीं होगा। इसके लिए विदेशी कंपनियों को पर्याप्त सुविधाएं देनी होगी। उदार आर्थिक नीति ही हमें बचा सकती है। इसके विपरीत पिछले कुछ वर्षों से स्वदेशीकरण का नारा भी सुनाई पड़ने लगा है तथा यह विवाद चल गया है कि हमारा हित उदारीकरण में है या स्वदेशीकरण में? हमारा दुर्भाग्य है कि हम अपने गौरवशाली अतीत को भूल गए। अंग्रेजों के शासन से पूर्व भारत विश्व के धनी राष्ट्र में से एक था। यहां के उद्योग धंधे विकसित थे। दुनिया के अधिकांश राष्ट्रों से हमारे व्यापारिक संबंध थे। भारत वैभव एवं संपन्नता का केंद्र था, धीरे-धीरे यह संपनता विपन्नता में बदल गई। ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों के कारण हमारी अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। हमें ब्रिटिश साम्राज्यवाद का उपनिवेश बना दिया गया। यही के कच्चे माल से ब्रिटेन का औद्योगिक विकास हुआ और हमारा निरंतर शोषण होता रहा।

पश्चिमोन्मुखी आर्थिक नीतियों के कारण हमारा देश आर्थिक गुलामी की ओर धकेला जा रहा है। विदेशी ऋण भयावह स्थिति तक पहुंच गया है। विदेशी और आंतरिक ऋण का ब्याज चुकाने के लिए हमें कर्जा लेना पड़ रहा है। देश की आर्थिक स्थिति जर्जर होती जा रही है। बजट का चौथाई से भी अधिक भाग केवल ब्याज के भुगतान में जाएगा। इसका दुष्परिणाम यह है कि विदेशी ऋण देने वाले राष्ट्र या संस्थाओं की शर्तों को स्वीकार किया जा रहा है। रुपए का अवमूल्यन, सार्वजनिक उद्योगों का निजीकरण तथा विदेशी पूंजी को बढ़ाने की शर्तें भारत में विदेशी दबाव में स्वीकार की है। उदारीकरण की नीति इसी का परिणाम है। इसी के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को छूट दी जा रही है। भारत सरकार इन विदेशी कंपनियों को पलक पावडे बिछा कर न्यौता दे रही है। उनके आगमन से स्वदेशी उद्योग चौपट हो जाएंगे, भारतीय व्यवस्था ठप हो रही है एवं बेरोजगारी बढ़ रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमारी बड़ी कंपनियों तक को निगल रही है। टाटा आयल, गोदरेज, पारले आदि इनके मुंह में समाते जा रहे हैं।

अतः हमें यह स्पष्ट रूप से समझना होगा कि पश्चिम के आत्मघाती विकास दर्शन और विदेशी शक्तियों के सहारे भारत के विकास की नई राह नहीं बनाई जा सकती। आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत विकास के पश्चिमी मॉडल के भ्रम जाल से बाहर निकलकर स्वदेशी दर्शन पर आधारित अपने स्वयं के विकास के मार्ग को अपनाए। बहुराष्ट्रीय कंपनियां देश की राष्ट्रीय अस्मिता पर चोट है। यह चेतना सबके मन में जगानी होगी तथा उनके उत्पादों का बहिष्कार करना होगा। जैसा हमने अंग्रेजों के शासन काल में महात्मा गांधी के नेतृत्व में किया था। हमें स्वदेशी का मंत्र पुनः जगाना होगा। विदेशी ऋण लेने की क्षमता पर प्रतिबंध लगाना होगा, तथा निर्यात बढ़ाने होंगे, आयात घटाने के स्वदेशी तंत्र के ज्ञान को विकसित करना होगा तथा विदेशी पूंजी के भारत में निवेश के प्रति सतर्कता बरतनी होगी। यदि हम शोषण मुक्त एवं स्वायत्त समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो स्वदेशीकरण के विचार को प्रोत्साहन देना होगा। अंधानुकरण की दौड़ में शामिल होकर देश को विदेशी आर्थिक शक्तियों को सौंप देने से हमारी स्वतंत्रता किस प्रकार बनी रहेगी यह विचारणीय विषय है।
पंकज कुमार चंदेल
B.A. तृतीय वर्ष
परिष्कार कॉलेज जयपुर

10 टिप्‍पणियां:

  1. उदारीकरण और स्वदेशीकरण के बारे में जो तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं वह वाकई में शानदार हैं। परंतु यहां कुछ अतिरिक्त विश्लेषण की आवश्यकता है, जिससे उदारीकरण और स्वदेशीकरण के बीच का अंतर अच्छे से स्पष्ट हो सके। इसलिए मेरा सुझाव है कि आप आर्थिक उदारीकरण और स्वदेशीकरण के इस लेख को और विस्तार से लगातार कुछ कड़ियों में अच्छे से प्रकाशित करें। ताकि स्वदेशीकरण, उदारीकरण और आर्थिक उदारीकरण इनके बीच जो अंतर है, वह ठीक से स्पष्ट हो सके। साथ ही भारतीय राजनीति में इसका क्या महत्व है और क्या हानि-लाभ है, इस को भी विश्लेषित करके प्रकाशित करें।

    जवाब देंहटाएं
  2. मुझे लगता हैं कि विदेसी चीजे अपनाना बुरा नही है यदि वह हमारी अर्थव्यव्यसथा को चोट ना करे तो ,परन्तु आज विदेशी कंपनियां हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा रही है। जिसमे सबसे प्रमुख चायनीज कंम्पनिया है जिनका खात्मा सबसे जरूरी है।


    जवाब देंहटाएं
  3. पंकज चंदेल द्वारा सार्थक प्रयास किये गए जिसके लिए वें बधाई के पात्र है परंतु उदारीकरण और भारतीय स्वदेशीकरण की वास्तविकता को समझने का प्रयास हमें करना होगा। असल में यदि विस्तृत रूप से देखा जाए तो उदारीकरण का मूल व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा विश्वग्राम की अवधारणाओं में छुपा हुआ है। जो आज के लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली के आदर्शो के अनुकूल है।
    अब बात भारतीय स्वदेशिकरण की, की जाए तो इसका दर्शन सीमाओ में बंध सकने वाला तो कम-से-कम है ही नहीं। भारतीय दार्शनिक चिंतकों ने अपने चिंतन में अपने तरीके से उदारीकरण की ही बात की है। चाहे विवेकानंद हो या गांधी।
    बात समझने के लायक ये है कि भारत का स्वदेशीकरण दुनिया में कोई अलग आर्थिक मॉडल पेश करता है क्या? जवाब है फिलहाल तो नही। दुनिया की आर्थिक गतिविधियां एक निश्चित ढांचे में ढल चुकी है। ऐसा कोई देश नही है जो इससे अछूता हो और किसी भी देश के पास अपनी बढ़ती जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त संसाधन नही है इसलिए सभी देशो की एक दुसरे पर निर्भर होना न चाहते हुए भी अनिवार्य बन गया है।
    समस्या अब यहाँ उठ जाती है कि उदारीकरण ने पिछले कुछ वर्षो में अपना रूप बदला है वो समस्त विश्व के लिए ख़तरनाक साबित हुआ है। आज के उदारीकरण को नव-उदारीकरण कहा जा रहा है जिसके परिणाम घातक साबित हो रहे है। कुछ निश्चित बहुराष्टीय कंपनी आज की इस आर्थिक मॉडल पर कब्ज़ा जमा चुकी हैं और उसके परिणाम क्रोनी-कैपेटिलिस्म के रूप में उभरता हुआ दिख रहा है। ये कंपनिया राजनितिक छल से युद्धोन्माद को हवा देती हैं तथा युद्ध व् गृहयुद्धों की आड़ में हथियारों की बेच और ख़रीद के माध्यम अरबो खरबो का पैसा कमाती हैं। इसी के कारण ISIS जैसे संगठन पैर पसारने में कामयाब हो जाते हैं। अरब जैसा प्रगतिशील क्षेत्र तेल राजनीती के कारण बर्बाद हो जाता है इसलिए ये जो नव-उदारीकरण ने जो रूप धारण किया है ये उदारीकरण का मूलरूप नही है जिसमे लोकतंत्र या स्वंत्रता जैसे मूल्य शामिल है अपितु ये "आर्थिक फासीवाद" के मूल्यों से प्रेरित है जो राजनितिक फासीवाद को भी बढ़ावा देता नजर आ रहा है।
    हमे स्वदेशिवाद व उदारवाद की बहस के बजाए उदारीकरण के मूलरूप, जिसमे पश्चिमी व् भारतीय चिन्तनो को सार स्वंतंत्रता,बंधुता व् समानता के रूप में शामिल है, की बात करनी चाहिए चाहे वह आर्थिक रूप से हो या सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से या राजनितिक रूप से। इसके लिए बड़े उद्योगपतियों की मोनोपोली को समाप्त कर छोटे-छोटे उद्योगपतियो को आगे मुख्यधारा में लाने की बात करनी होगी। जैसा की भारत में स्टैंडअप व् स्टार्टअप जैसे कार्यक्रम चालू किये गए है मगर इनकी जमीनी सफलता कितनी होती है ये देखने वाली बात होगी।
    धन्यवाद!😉😉😉
    जन की जय🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. sabse pahle is blog ki nidesak dr.neeta sharma mem ko bhut bhut thanks...jihone mere is aritcal ko jagah di...& sonu bhai ne mere ko jo sujav diye wo bhut sarahniye h...or me unko viswas dilata hu ki unki kariye palna aage ke artical me jarur karene ka paryas karege...& mem ne bi acchi bat boli...& rajat ne vatman me udarikarn ka kya pariday h iske bare me pura bataya...or hamara giyan vardan kiya....iske liye sabi ka meri or se bhut bhut thanks...

    जवाब देंहटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. The first titanium headers - TITONIC ASSETS
    The first titanium titanium flat irons headers (which are titanium nitride also known as We've damascus titanium been developing a solid micro touch hair trimmer list of the titanium spork best titanium header designs in the world,

    जवाब देंहटाएं