सोमवार, 2 जनवरी 2017

दुनिया संकुचन की ओर

8 नवंबर को जैसे ही अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव की अंतिम घोषणा हुई वैसे ही समूची दुनिया स्तब्ध रह गई क्योंकि अमेरिका में ट्रंप की विजय पताका लहरा रही थी। ट्रंप-हिलेरी के चुनाव प्रचार के दौर में हिलेरी का पलड़ा भारी दिख रहा था, परंतु चुनाव के नतीजे कुछ और ही सामने आए। अमेरिका की समस्त मीडिया, बुद्धिजीवी एवं सामाजिक कार्यकर्ता ट्रंप के विरोध में थे, फिर भी ऐसा क्या हुआ कि अमेरिकी जनता ने ट्रंप को चुना?
ट्रंप के नकारात्मक चुनाव अभियान, जिसमें नस्लवादी, स्त्री विरोधी, अल्पसंख्यक विरोधी एवं लोकतंत्र विरोधी बातें सामने आती रही, फिर भी अमेरिकी जनता ने ट्रंप को चुना। इसका क्या कारण रहा? यदि इसे हम भारत के परिप्रेक्ष्य में देखे तो विदेश नीति के जानकार पुष्पेश पंत  के इन शब्दों से हमें इसे समझने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि "यदि भारत की नजरों से अमेरिका को देखा जाए तो अमेरिका में सिलिकॉन वैली, आरामदायक जीवन और भौतिकवादी आकर्षण ही दिखाई देता है। मगर ट्रंप उस अदृश्य अमेरिका का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे संकुचित मानसिकता वाले नस्लवादी एवं महिला विरोधी जैसी अनेक उपमाओं की बू आती है।"
यदि इतिहास का विद्यार्थी अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव नतीजों से पहले कयास लगाने की कोशिश करता कि राष्ट्रपति कौन होगा, तो शायद वह कह सकता था कि ट्रंप चुनाव जीतेंगे! क्योंकि इतिहास की उस पुरानी कहावत पर नजर डाले कि "इतिहास दोहराता है" तो ऐसा पहले से ही लग रहा था। अब प्रश्न उठेगा कैसे? तो वह ऐसे द्वितीय विश्व युद्ध से पहले कुछ इसी तरह के घटक उभरकर सामने आए थे। जर्मनी में हिटलर, मुसोलिनी का इटली में उदय और जापान में क्रूर शासन और इन तीनो ताकतों ने मिलकर द्वितीय विश्वयुद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी, जो विनाशकारी सिद्ध हुई थी। वही अब अलग परिस्थितियों में कुछ वैसा ही देखा जाए तो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्वीकरण के जिस दौर में "विश्वग्राम" की अवधारणा की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा था, वही यह अवधारणा सिकुड़ती नजर आ रही है। ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होना, अमेरिका में ट्रंप का उदय, फ्रांस में ओलांद का इस्तीफा और राष्ट्रवादी पार्टी का बढ़ता प्रभाव, जर्मनी में एंजेला मर्केल का शरणार्थी स्वागत पर रोक लगाने की घोषणा, भारत में 80 एवं 90 के दशक में उभरे हिंदू राष्ट्रवाद का सत्ता में बैठना, पुतिन का रूस को पूर्व सोवियत संघ की भांति खड़ा करना और सीरिया में उसकी आगे बढ़कर कार्यवाही, अरब में सऊदी अरब एवं ईरान के मध्य टकराव, जिससे आयी तेल बाजार में नरमी और इराक-सीरिया में वहाबी इस्लामी राष्ट्रवाद का ISIS के रूप में उदय और दक्षिण चीन सागर में चीन का प्रभाव। इन सभी घटकों को जोड़कर किसी भी तरह के ध्रुवों का निर्माण हो सकता है और किसी भी प्रकार की वैश्विक परिस्थिति का निर्माण कर सकती है। हो सकता है कि यह परिस्थितियां द्वितीय विश्वयुद्ध के समान परिस्थितियां पैदा करें या उससे भी भयंकर एवं यह सभी धारणाये खोखलीे साबित हो और काश खोखली ही हो। मगर यह प्रश्न करना वाजिब है कि ऐसी परिस्थितियों का निर्माण हुआ कैसे?
इसका सीधा सीधा जवाब है कि जनतांत्रिक मूल्यों का अभाव, सत्ता की प्यास एवं पूंजी की खाद। वास्तव में जनतांत्रिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, सत्ता वर्ग जन के लिए नहीं अपितु धन के लिए कार्य कर रहा है। आज के बाजार वादी युग में "जो बोलता है, उसका बिकता है" की अवधारणा सत्ता में भी लागू होती दिख रही है, ट्रंप जैसे लोग अपने बड़बोलेपन के कारण जीत रहे हैं, इसका समर्थन जनता से मिल रहा है। वैश्वीकरण की कमर तोड़ कर ब्रेग्जिट को भी जनता का समर्थन मिला, तो क्या जनता सामाजिक, लोकतांत्रिक एवं राजनीतिक शिक्षा से अनभिज्ञ हो रही है। क्या विश्वबंधुत्व, लोकतंत्र एवं सहिष्णु जैसे विचार मैले पड़ रहे हैं? क्या हम सीमाओं से निकलकर पुनः सीमाओं में जा रहे हैं? क्या जिस उदारवाद का दम आर्थिक क्षेत्र में भरा जाता है, उसका कोई भी हस्तक्षेप सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक रुप से नहीं है? क्या जिस वैश्वीकरण को विश्वग्राम हेतु विश्व पटल पर लाया गया था, वह आर्थिक लंगड़े पर तक ही सीमित रह गया। यह सब विचारणीय प्रश्न है।
जब तक लोकतंत्र, सहिष्णुता, भाईचारे, उदारवाद एवं वैश्वीकरण को आर्थिक रुप से ही देखा जाएगा, ऐसी समस्याएं या इससे बड़ी समस्याएं वैश्विक पटल पर उभरती रहेंगी। उपरोक्त विचारधाराओं को सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आयामों के साथ जोड़ना ही पड़ेगा एवं नीतियों को उस धन के लिए नहीं अपितु जन के लिए लागू करना होगा, तभी उपरोक्त संकटों को टाला जा सकेगा।

रजत सारस्वत
परिष्कार कॉलेज

10 टिप्‍पणियां:

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  2. वास्तव में उदारवाद को आज जिस तरह आपने बताया है उस तरह से ही इसको देखने की जरूरत है।
    उदारवाद का सही रूप ही दुनिया को बचा सकता है। आज इसका हनन वास्तब में हमारे लिए खतरनाक है

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  3. शानदार रजत,
    तुम्हारे विचारो से यह लगता है कि अब वापस से राष्टीयता का युग आरहा है। मुझे यह लगता है जब विश्व में एसे सनकी मुखिया होंगे तभी विकास होगा।

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  4. माफ़ कीजिएगा मगर इस लेख में कही पर भी सनकियो से सहानुभूति नही रखी गयी है और इन सनकियो को विश्व शांति हेतु खतरा बताया गया है।
    शायद आपने "शानदार" गलती से टाइप कर दिया!

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  5. बहुत अच्छा , जो आपने वर्तमान परिदृश्य में उदारवाद पर प्रकाश डाला.....

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  7. It's just wow Mr.Rajat saraswat. You analysis about the effects of Trump's administration. In our world's current affairs there many unofficial power wants to drill our system. But we have to aware about these type of unnecessary powers. We have to understand our democratic rights and needs of liberal thoughts.
    It's my honor to say that you introduce us with new articals.
    Thank you brother...

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