सोमवार, 2 जनवरी 2017

रेल बजट का अंत

सरकार ने नौ दशक से भी ज्यादा पुरानी परंपरा को खत्म करके रेल बजट को आम बजट के साथ पेश करने का फैसला लिया है।
★ 1924 के बाद यह पहला मौका होगा जब रेलवे के लिए अलग से बजट पेश नहीं किया जाएगा।
★ 1859 से पहले देश में बजट नामक कोई व्यवस्था नहीं थी।
★ जेम्स विल्सन ने 7 अप्रैल 1860 को पहली बार बजट पेश किया। इसमें रेलवे का लेखा जोखा भी शामिल था।
★ यह प्रक्रिया अगले 63 वर्ष तक इसी प्रकार चली।
★ फिर ईस्ट इंडिया रेलवे कमेटी के चेयरमैन "सर विलियम एकवर्थ" की सिफारिश पर 1924 में पहली बार रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया गया।
★ उनका यह मानना था कि अकेला रेल विभाग भारत की सबसे बड़ी आर्थिक गतिविधियों का संचालन करता है। वर्ष 1924 में पूरे देश के बजट में रेल बजट की हिस्सेदारी 70 फीसदी थी, इसलिए अधिक हिस्सेदारी को देखकर रेल बजट को अलग करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया।

रेल बजट के अंत का आधार:-
रेलवे बजट एक बड़ी आर्थिक गतिविधियों का संचालन करता है। लेकिन आज रक्षा और परिवहन जैसे कई क्षेत्रों का आकार रेलवे से कहीं बड़ा है, जबकि इनका बजट आम बजट में शामिल किया जाता है।
रेल बजट को आम बजट में मिलाए जाने के पीछे एक बड़ी सोच "मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस" का सिद्धांत भी है। यानी सरकार का आकार छोटे से छोटा हो, जबकि व्यवस्था ज्यादा बड़ी और सुचारु रुप से चल सके।

# रेलवे बजट को खत्म करने की बात नीति आयोग के सदस्य "विवेक देवराय" और आयोग के विशेष अधिकारी "किशोर देसाई" की एक रिपोर्ट Dispensing with the rail budget से शुरू हुई। रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से रेलवे बजट के अंत की बात कही। इस बारे में कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी। जिस की सिफारिशों के आधार पर कैबिनेट ने रेल बजट को आम बजट में मिलाए जाने के प्रस्ताव पर 21 सितम्बर को मुहर लगा दी।

# रेल बजट को खत्म करने की एक बड़ी वजह इस प्रक्रिया का 'राजनीतिकरण' भी है। रेल बजट लगातार राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोरता रहा। फिर धीरे धीरे राजनीतिक मंच बनता गया। जिसका इस्तेमाल सरकार की लोक लुभावन और आम आदमी के अनुकूलन वाली व्यवस्था की छवि तैयार करने के लिए होने लगा। नतीजा यह हुआ कि सालों-साल रेल बजट में रेलवे की वित्तीय स्थिति के बजाय इस बात पर जोर दिया गया कि - कितनी नई गाड़ियां, कितनी जगह पर नई पटरिया, मौजूदा गाड़ियों को कितनी जगह बढाया, कितनी नई परियोजना लाई गई आदि। इन सबसे रेलवे का भला होने के बजाए रेलवे को सामाजिक देनदारियों की वजह से करीब 33000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा।

केंद्र सरकार हर साल रेलवे को पूंजीगत खर्चों को पूरा करने के लिए बजटीय सहायता मुहैया कराती है। वहीं दूसरी ओर लाभांश के तौर पर एक निश्चित रकम रेलवे से ले ली जाती है। रेल बजट को खत्म करने की रिपोर्ट का कहना है कि दरअसल रेलवे की ओर से केंद्र सरकार को दिया जाने वाला लाभांश मिथ्या है। यह रकम ऐसे कर्जे के लिए दी जाती है, जिसमें मूल्य रकम कभी खत्म नहीं होती। इसलिए रिपोर्ट में लाभांश को खत्म करने की बात कही गई, जिसे कैबिनेट ने मान लिया।

हालाँकि संविधान में कहीं भी अलग से रेलवे बजट पेश करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए रेल बजट को खत्म करने के लिए संविधान में संशोधन या नियम कानून बदलने की जरूरत नहीं है।
यही कुछ वजह रही है कि कार्यकारिणी के एक फैसले से नौ दशक से भी ज्यादा समय से चली आ रही परंपरा खत्म करने का रास्ता खुला।

शीनू
बीए द्वितीय वर्ष
परिष्कार कॉलेज

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