सामान्यतः लोक प्रशासन वह यंत्र है जो नीतियों को क्रियान्वित करता है। कोई भी नीति तभी परिपूर्ण मानी जाती है जब उसका क्रियान्वन उसी स्वरूप में किया जाये जिस स्वरूप में उसे निर्मित किया गया है और इस कुशलतापूर्वक क्रियान्वन की जिम्मेदारी लोक प्रशासन की है।
लोक प्रशासन दो शब्दों से मिलकर बना है- लोक तथा प्रशासन। यहाँ लोक से तात्पर्य 'सरकार' से है अर्थात वह प्रशासन जो सरकार द्वारा संचालित हो और समस्त सरकारी गतिविधियों को निष्पादन हेतु उत्तरदायी हो। यह प्रशासन 'प्र' उपसर्ग लगने से सम्पूर्ण अर्थ देता है जिसका तात्पर्य उत्कृष्ट रीति से शासन करना है।
हालांकि सैद्धान्तिक रूप से लोक प्रशासन 1887 ई. में उदित हुआ जब वुडरो विल्सन ने Political Science Quarterly में 'The Study of Administration' नामक लेख प्रकाशित किया, परन्तु प्रक्रिया के रूप में इसका अस्तित्व राज्य द्वारा निर्धारित समस्त गतिविधियों के समन्वित संचालन के रूप में सदैव मौजूद रहा है, चाहे वह सिन्धु घाटी सभ्यता का काल हो या वर्तमान सूचना-प्रौद्योगिकी का काल। हाँ, इसका स्वरुप एवं प्रक्रियाएं समय के साथ निरंतर परिवर्तित होती रही है।
इसी सन्दर्भ में राज्य एवं उससे जुड़ी सम्पूर्ण घटनाओं का अध्ययन प्रारंभ से ही राजनीति विज्ञान का अध्ययन-क्षेत्र रहा है। परंतु राज्य के लक्ष्यों तथा जनसाधारण की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक ऐसे तंत्र की आवश्यकता हुई जो लोक प्रशासन द्वारा ही संभव है क्योंकि निष्पादन एक कुशल व विशिष्ट प्रक्रिया है। इस प्रकार वास्तव में लोक प्रशासन राज्य की इच्छाओं का संस्थागत तथा प्रक्रियात्मक स्वरुप है।
सुजाता सिंह (एसिस्टेन्ट प्रोफेसर, परिष्कार कॉलेज)
पूजा यादव (एसिस्टेन्ट प्रोफेसर, परिष्कार कॉलेज)
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