सोमवार, 12 दिसंबर 2016

ऐतिहासिक स्वदेशी आंदोलन की वर्तमान में आवश्यकता

स्वदेशी का अर्थ:-
' अपने देश का' अथवा अपने देश में निर्मित। गांधीजी ने स्वदेशी के बारे में कहा" स्वदेशी की भावना का अर्थ है हमारी वह भावना, जो हमें दूर को छोड़ कर अपने समीपवर्ती प्रदेश का ही उपयोग और सेवा करना सिखाती है।"
वह कहते थे कि अगर हम स्वदेशी के सिद्धांत का पालन करें तो हमारा और आपका यह कर्तव्य होगा कि हम उन बेरोजगार पड़ोसियों को ढूंढे, जो हमारी आवश्यकता की वस्तुएं हमें दे सकते हैं। ऐसा हो तो भारत का हर एक गांव लगभग एक स्वाश्रयी और स्वयंपूर्ण इकाई बन जाएगा।
स्वदेशी का व्रत लेने पर कुछ असुविधाएं तो भोगनी पड़ेगी, लेकिन उन असुविधाओं के बावजूद यदि समाज के विचारशील व्यक्ति स्वदेशी का व्रत अपना ले तो हम अनेक उन बुराइयों का निवारण कर सकते हैं, जिनसे हम पीड़ित हैं।

राष्ट्रीय आंदोलन में स्वदेशी का प्रयोग:-

स्वदेशी एक शब्द नहीं अपितु राष्ट्रीय आंदोलन की आत्मा रहा है। आत्मा इस संदर्भ में कि यह वो  शब्द है जिसने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। जिसने भारतीयों में अपनत्व, आत्म-गौरव का भाव उत्पन्न किया। दयानंद सरस्वती, तिलक, गांधी जी का प्रेरणा स्रोत रहा। आखिर क्या था स्वदेशी आंदोलन? आज क्यों आवश्यक है स्वदेशी? यह जानने से पहले हम इसके इतिहास में जाते हैं। दयानंद सरस्वती वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने स्वदेशी, स्वभाषा और स्वराज्य की बात की। आर्य समाज ने "भारत भारतीयों के लिए" का संदेश दिया, तिलक ने कहा "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा," तो गांधीजी इस स्वराज्य को स्वतंत्रता, स्वशासन तक ले गए।
स्वदेशी आंदोलन, बंगाल विभाजन (1905) से प्रारंभ हुआ था। स्वदेशी आंदोलन के तहत ही भारत में ब्रिटिश वस्तुओं (विदेशी वस्तुओं) का बहिष्कार एवं स्वदेश अर्थात् भारत में निर्मित वस्तुओं का प्रयोग किया गया। इससे ब्रिटिश सरकार को आर्थिक हानि हुई एवं भारत में रोजगार का सृजन एवं विकास हुआ।

स्वदेशी आंदोलन की आवश्यकता क्यों पड़ी:-

इस आंदोलन की आवश्यकता का प्रमुख कारण ब्रिटिश शासन को पराजित कर भारत को संपन्न बनाना था। ब्रिटिश शासन ने भारत को सोने की चिड़िया से गरीबों का देश बनाया था। उद्योग संपन्न देश को कृषि आधारित देश बनाया था। हमारी कुशलता के लिए कैलवर्टन ने लिखा "प्राचीनकाल में जब रोम के निजी एवं सार्वजनिक भवनों में भारतीय कपड़ों, दीवार-दरी, तामचीनी, मोज़ेक, हीरे-जवाहरात आदि का उपयोग होता था, उस वक्त से औद्योगिक क्रांति के प्रारंभ तक आकर्षक तथा सुंदर वस्तुओं के लिए सारा संसार भारत का मोहताज रहा।"
भारतीय सूती कपड़े का उपयोग बहुत अधिक होने के कारण डिफो (ब्रिटिशर) ने भी चिंता व्यक्त की, "यह भारतीय सूती कपड़ा हमारे घरों, निजी कमरों और शयन-कक्षों तक में प्रवेश पा गया, हमारे पर्दों, गद्दों, कुर्सियों और यहां तक कि हमारे बिस्तरों पर भी भारतीय कपड़े के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह गया।"
भारत की औद्योगिक उन्नति के बारे में कैलवर्टन ने लिखा "तीव्र बुद्धि, सूक्ष्म जानकारी और सृजनात्मक प्रतिभा के कारण भारतीय उद्योग पाश्चात्य देश की अपेक्षा आगे बढ़े हुए थे। शुरू की इन शताब्दियों में जब पाश्चात्य नौ-परिवहन सर्वथा अर्द्ध-विकसित अवस्था में था, तब भारत में भारी बोझ ढोने वाले समुद्री जहाज थे।"
यह तथ्य यहां इसलिए बताएं हैं ताकि हम जान सके कि हम निर्यातक देश थे जो आज हम आयातक देश बन कर रह गए। आजादी के 70 साल बाद भी हम कुछ नहीं कर पाये जो अंग्रेजी गुलामी के 50 सालों में ही कर दिया था उन्होंने-
1. 1700 में एक अधिनियम बनाकर ब्रिटेन में भारतीय कपड़े पर रोक लगा दी।
2. 1760 में इंग्लैंड में भारतीय कपड़े से बने सूती रुमाल का प्रयोग करने वाली महिला पर 200 पौंड का जुर्माना लगाया ताकि भारतीय कपड़ा ब्रिटेन में ना बिके।
3. ददनी प्रथा, व्यापारिक एकाधिकार, आयात शुल्क घटाकर भारतीय उद्योगों को मारा गया और हम देखते रहे।
      होरेस विल्सन ने लिखा है "भारतीय निर्माण उद्योग की बलि चढ़ा कर ही ब्रिटिश उद्योगों की सृष्टि की गई है। जिस तरह का प्रतिकार स्वाधीन रहने पर भारत कर सकता था, वैसा कोई आत्मरक्षक कार्य वह नहीं कर सका।............... अंततोगत्वा उन्हें पूरी तरह समाप्त कर दिया गया यद्यपि बराबर की लड़ाई में वे नहीं टिक पाते।"

      यह कुछ दृष्टांत है जिनसे पता चलता है कि हमारे उद्योगों को नष्ट किया गया।
      इसी का बदला हमारे पूर्वजों ने स्वदेशी आंदोलन चला कर लिया। गांधीजी ने उस दौरान कहा कि हर वह व्यक्ति जो देश में निर्मित वस्तु की स्थान पर विदेशी वस्तुओं का प्रयोग करता है, देशद्रोही है। स्वदेशी आंदोलन (1905) असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि सभी में हमने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर आजादी पाई है।

प्रभाव:-
स्वदेशी आंदोलन के कारण 1904 में जोगेंद्र चंद्र घोष ने विद्यार्थियों के तकनीकी प्रशिक्षण के लिए संस्था खोली, 1906 में बंगलक्ष्मी कॉटन मिल्स की स्थापना हुई। चीनी मिट्टी के कारखाने (कलकता पोल्ट्री वर्क्स,1906)  क्रोम टैनिक, दियासलाई उद्योग बनाने में पर्याप्त सफल रहे।
स्वदेशी आंदोलन के कारण विदेशी कपड़े का आयात 1920-21 के 102 करोड से गिरकर 1921-22 में 57 करोड रुपए रह गया। राष्ट्रवादी स्वदेशी आंदोलन से कपड़ा उद्योग को निश्चय ही लाभ हुआ था। अक्टूबर 1912 में सूती कपड़ा मिलों का शेयर मूल्य 1913 में 100 मानते हुए 275 था, जबकि अन्य शेयर मूल्य औसत 248 था। इस तरह हम देखते हैं कि जहां भारतीय उत्पाद बाजार में बढ़े, भारतीय पैसा भारत में रहा और राष्ट्रीय आंदोलन को आर्थिक सफलता मिली।

वर्तमान में आवश्यकता क्यों:-

वर्तमान में यदि गरीबी से आजादी चाहिए तो हमें विनिर्माण उद्योग लगाने होंगे। यह उद्योग नए होने के कारण उतने अच्छे उत्पाद नहीं दे पाएंगे जो हमारे पूर्वज बनाते थे। तो कुछ समय के लिए हमें इनका संरक्षण करना है जैसे ब्रिटेन ने 1700, 1760 में किया था।
यदि वे हमारे उद्योगों को नष्ट कर भारत में अपने ब्रांड भेज सकते हैं तो हमें भी आज उस अत्याचार का बदला लेना होगा, जो गुलामी के कारण हम पर हुए।
सरकारें अंतर्राष्ट्रीय कानून से डरती होंगी, आमजन नहीं। हमें हमारे उद्योगों की ढाल बनना होगा एवं उद्योगों की रक्षा करनी होगी। उन पर विश्वास करना होगा। इसी दम पर वे इन अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों का मुकाबला कर पाएंगे जो हमारे खून से सनी है। आज फिर गरीबी से आजादी के लिए हमें त्याग करना होगा, अपनों को गले लगाकर स्वदेशी आंदोलन चलाना होगा।

आनंदी लाल शर्मा (असिस्टेंट प्रोफेसर, परिष्कार कॉलेज)

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही शानदार संदर्भो के साथ आपने स्वदेशी की अवधारणा को अभिव्यक्त किया है। आप निरंतर इस प्रकार के लेखों का प्रकाशन जारी रखें। ये लेख सैद्धान्तिक और व्यवहारिक दोनों पक्षों को ध्यान में रखते हुए उपयोगी है। आपको बहुत सारी शुभकामनाएं। ☺☺

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